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मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई Navratri Maa Durga Ki Utpatti Kaise Hui: जानिए उनके जन्म की कथा और कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

Navratri Maa Durga Ki Utpatti Kaise Hui मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई: शारदीय नवरात्रि में शक्ति की पूजा की जाती है। शक्ति का प्रतिक नारी के रुप में मां दुर्गा के नव रुप की पूजा की जाती है जो त्रिदेव और सृष्टि के समस्त देवताओं के तेज से अवतरित हुई थी, जानते हैं मां दुर्गा से जुड़ा प्रसंग....

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 26 Sept 2022 6:00 AM IST (Updated on: 26 Sept 2022 8:02 AM IST)
Maa Durga Ki Utpatti Kaise Hui
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Maa Durga Ki Utpatti Kaise Hui

मां दुर्गा की उत्पत्ति कैसे हुई

नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त महालया के बाद आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाली नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। मान्यता है कि कलश में त्रिदेव का वास होता है और कलश स्थापित कर भगवान गणेश समेत ब्रह्मा विष्णु का आह्वान किया जाता है। नवरात्रि नव शक्ति की आराधना का त्योहार नवरात्रि 26 सितंबर से शुरू हो रहा है। लोग नौ दिन तक व्रत रखकर देवी की आराधना करते हैं। जानते हैं कैसी हुई थी देवी दुर्गा की उत्पति।

मां दुर्गा की उत्पत्ति

मार्कण्डेय पुराण के अनुसार दुर्गा अपने पूर्व जन्म में प्रजापति रक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुई थीं। जब दुर्गा का नाम सती था। इनका विवाह भगवान शंकर से हुआ था। नवदुर्गा सप्तशती के दूसरे अध्याय से जब दानव राज महिषासुर ने अपने राक्षसी सेना के साथ देवताओ पर सैकड़ो साल चले युद्ध में विजय प्राप्त कर ली और स्वर्ग का राजाधिराज बन चुका था | सभी देवता स्वर्ग से निकाले जा चुके थे | वे सभी त्रिदेव (ब्रम्हा,विष्णु और महेश) के पास जाकर अपने दु:खद वेदना सुनाते है | पूरा वृंतान्त सुनकर त्रिदेव बड़े क्रोधित होते है और उनके मुख मंडल से एक तेज निकलता है जो एक सुन्दर देवी में परिवर्तित हो जाता है | भगवान शिव के तेज से देवी का मुख,यमराज के तेज से सर के बाल,श्री विष्णु के तेज से बलशाली भुजाये,चंद्रमा के तेज से स्तन,धरती के तेज से नितम्ब,इंद्र के तेज से मध्य भाग,वायु से कान,संध्या के तेज से भोहै,कुबेर के तेज से नासिका,अग्नि के तेज से तीनो नेत्र आचार्य कौशलेन्द्र पाण्डेय कहते है कि देवताओ के द्वारा ही शक्ति का संचार भी देवी दुर्गा में हुआ शिवजी ने देवी को अपना त्रिशूल,विष्णु से अपना चक्र,वरुण से अपना शंख,वायु ने धनुष और बाण,अग्नि ने शक्ति,बह्रमा ने कमण्डलु,इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह,कुबेर ने मधुपान,विश्वकर्मा में फरसा और ना मुरझाने वाले कमल भेट किये , और इस तरह सभी देवताओ ने माँ भगवती में अपनी अपनी शक्तिया प्रदान की |

माँ दुर्गा के नौ स्वरूप को किसने बनाया

जब ब्रह्मा, विष्णु और शिव की त्रिमूर्ति दस भुजाओं वाली एक शक्तिशाली महिला रूप बनाने के लिए एक साथ आई। जब दुर्गा पवित्र गंगा के जल से एक आत्मा के रूप में निकलीं, तो उन्हें सभी देवताओं द्वारा एक साथ मिलाकर एक भौतिक रूप दिया गया। उसका चेहरा भगवान शिव द्वारा बनाया गया था और उसका धड़ इंद्र द्वारा तैयार किया गया था ।

  • पहला स्वरुप जन्म ग्रहण करती हुई कन्या "शैलपुत्री" स्वरूप है।
  • दूसरा स्वरुप कौमार्य अवस्था तक "ब्रह्मचारिणी" का रूप है।
  • तीसरा स्वरुप विवाह से पूर्व तक चंद्रमा के समान निर्मल होने से वह "चंद्रघंटा" समान है।
  • चौथा स्वरुप नए जीव को जन्म देने के लिए गर्भ धारण करने पर वह "कूष्मांडा" स्वरूप में है।
  • पांचवां स्वरुपसंतान को जन्म देने के बाद वही स्त्री "स्कन्दमाता" हो जाती है।
  • छठा स्वरुप. संयम व साधना को धारण करने वाली स्त्री "कात्यायनी" रूप है।
  • सातवां स्वरुप अपने संकल्प से पति की अकाल मृत्यु को भी जीत लेने से वह "कालरात्रि" जैसी है।
  • आठवांं स्वरुप. संसार (कुटुंब ही उसके लिए संसार है) का उपकार करने से "महागौरी" हो जाती है।
  • नौवा स्वरुप धरती को छोड़कर स्वर्ग प्रयाण करने से पहले संसार में अपनी संतान को सिद्धि(समस्त सुख-संपदा) का आशीर्वाद देने वाली "सिद्धिदात्री" हो जाती है।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

मां दुर्गा के जन्म की कथा

मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है और जानते है कि इस शक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई थी। इसके लिए मां दुर्गा की उत्पत्ति से जुडी पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं, जिसका वर्णन देवी पुराण में है। आदिशक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई, पौराणिक कथा के अनुसार महिसासुर, शुभ-निशुंभ, रक्तबीज जैसे असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने त्रिदेव की आराधना की। जब देवताओं ने ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं। फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।

इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।

इस तरह मां दुर्गा में समस्त देवताओं की शक्ति से पूर्ण स्वयं की शक्ति है। जिसका कोई भी मुकाबला नही कर सकता है। इसलिए देवी दुर्गा की आराधना करके हम मां से अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और सदगति की राह पर चलने की प्रेरणा लेते है।

शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

इस दिन शुभ मुहूर्त में सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर मां दुर्गा के आहवान से पहले कलश स्थापित करने का विधान है। कलश स्थापित करने के लिए घर के मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं।उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं। एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, कलावा बांधे. एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें। कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें। अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें। नारियल रखते हुए मां दुर्गा का आवाह्न करना न भूलें। अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें। फिर उसके बाद नौ दिनों के व्रत करने का मन हो तो संकल्प लेकर सप्तशती की पाठ करें।

शारदीय नवरात्रि कलश स्थापना मुहूर्त

शारदीय नवरात्रि की शुरुआता 26 सितंबर 2022 सोमवार से होगी। इस दौरान मां दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि का समापन 5 अक्टूबर 2022 को दशहरा के साथ होगा।

प्रतिपदा तिथि आरंभ- 26 सितंबर 2022,सुबह 03.23 मिनट से शुरू

प्रतिपदा तिथि समापन - 27 सितम्बर 2022, सुबह 03.08 मिनट तक

सुबह का मुहूर्त - सुबह 06.17 am से 07. 30am

अभिजीत मुहूर्त - सुबह 11:54am से 12:42 pm

ब्रह्म मुहूर्त - सुबह 04:41 am से 05:29 ms

विजय मुहूर्त - 02:18 pm से 03:07 pm

गोधूलि मुहूर्त - 06:07 pm से 06:31pm

शारदीय नवरात्रि पर शुभ योग

इस बार शारदीय नवरात्रि की शुरुआत शुक्ल और ब्रह्म योग से हो रही है । जो क्रमश: ब्रह्म - 26 सितंबर को सुबह 08.06 से 27 सितंबर 2022, सुबह 06.44 तक रहेगा। और शुक्ल योग - 25 सितंबर से सुबह 09.06 से 26 सितंबर 2022, सुबह 08.06 तक है। इस बार नवरात्रि पर आश्विन शुक्ल प्रतिपदा तिथि को सुबह सूर्योदय के समय सर्वार्थ सिद्धि नामक शुभ योग रहेगा। इसके साथ ही अमृत सिद्धि योग भी प्रभाव में रहेगा। इन सबके बीच अति उत्तम संयोग यह है कि हस्त नक्षत्र इस दिन पूरे दिन रहेगा। और मां दुर्गा हाथी पर इस बार आएंगी और अंतिम दिन भी मां दुर्गा की विदाई हाथी पर ही होगी जो धन-वैभव देने वाला है।


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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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