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Nirjala Ekadashi 2022: कब है निर्जला एकादशी ? जानें दिन, शुभ मुहूर्त, पारण का समय, व्रत नियम और व्रत कथा

Nirjala Ekadashi 2022: हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी 10 जून को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर प्रारंभ होगी।

Preeti Mishra
Written By Preeti Mishra
Published on: 9 Jun 2022 7:57 PM IST
Nirjala Ekadashi
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Nirjala Ekadashi 2022। (Social Media)

Nirjala Ekadashi 2022: हिंदू धर्म में एकादशी व्रत व पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। बता दें कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा -अर्चना की जाती है। यूं तो पुरे साल में कुल 24 एकादशी तिथियां आती हैं, लेकिन ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को सर्वोत्तम माना गया है। इस एकादशी को निर्जला एकादशी या भीमसेनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी 10 जून को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर प्रारंभ होगी। जिसका समापन 11 जून को शाम 05 बजकर 45 मिनट पर होगा।

इस एकादशी का संबंध महाभारत की कथा से भी है। हिन्दू धर्म में इस एकादशी का विशेष महत्त्व बताया गया है। कहा जाता है कि यह एकादशी करने से सम्पूर्ण पापों से मुक्ति मिल जाती है। गौरतलब है कि जैसा की इसके नाम से ही स्पष्ट है कि इस व्रत में जल का बिलकुल त्याग किया जाता है। निर्जला यानी बिना जल के होने वाला व्रत। इस एकादशी को करने वाले व्रती इस दिन जल ग्रहण नहीं करते हैं।

निर्जला एकादशी 2022 का शुभ मुहर्त :

  • प्रारंभ: 10 जून को सुबह 07 बजकर 25 मिनट पर
  • समापन : 11 जून को शाम 05 बजकर 45 मिनट
  • चूँकि 10 और 11 जून दोनों ही दिन एकादशी तिथि पहुंचने के कारण भक्त व्रत को दोनों दिन भी रख सकते है। लेकिन ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, 11 जून को एकादशी व्रत सर्वोत्तम रहेगा।

कब है निर्जला एकादशी का पारण ?

निर्जला एकादशी व्रत में पारण का भी विशेष महत्व है। मान्यता है कि एकादशी व्रत का पारण अगर विधिवत नहीं किया जाता है तो व्रत का पूर्ण लाभ नहीं मिल पाता है। बता दें कि एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि को किया जाता है।

निर्जला एकादशी व्रत पारण का शुभ समय-

  • निर्जला एकादशी व्रत पारण का शुभ समय 11 जून को सुबह 05 बजकर 49 मिनट से सुबह 08 बजकर 29 मिनट तक रहेगा।
  • ज्यादा गर्मी हो तो ऐसे पी सकते हैं निर्जला एकादशी पर जल

निर्जला एकादशी मनाने का विशेष है कारण :

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, निर्जला एकादशी का व्रत करने से व्यक्ति को सभी पापों से मुक्ति मिल जाती है। इसे सभी व्रतों में से सबसे कठिन व्रत माना गया है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस व्रत को करने वाले व्यक्ति के लिए स्वर्ग के द्वार आसानी से खुल जाते हैं। इस एकादशी की विशेष महत्ता होने के कारण लोग सालभर इस व्रत इंतजार करते हैं।

निर्जला एकादशी भूल कर भी ना करें ये काम :

  • मांस-मदिरा का सेवन बिलकुल ना करें।
  • व्रत करने वालों को निर्जला एकादशी के दिन जल ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • वाद-विवाद से बचें।
  • इस शुभ दिन काम, मोह, लालच और ईर्ष्या जैसी बुरी आदतों से खुद को दूर रहना चाहिए।

निर्जला एकादशी की व्रत कथा:

एक बार भीम ने वेद व्यास जी से कहा कि उनकी माता और सभी भाई एकादशी व्रत रखने का सुझाव देते हैं, लेकिन उनके लिए यह कहां संभव है। वह पूजा पाठ, दान आदि कर सकते हैं, लेकिन व्रत में भूखा नहीं रह सकते। इस पर वेद व्यास जी ने कहा कि भीम, यदि तुम नरक और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हो, तो प्रत्येक माह में आने वाली दोनों एकादशी के दिन अन्न ग्रहण मत करो। तब भीम ने कहा कि यदि पूरे वर्ष में कोई एक व्रत हो तो वह रह भी सकते हैं, लेकिन हर माह व्रत रखना संभव नहीं है क्योंकि उनको भूख बहुत लगती है।

उन्होंने वेद व्यास जी से निवेदन किया कि कोई ऐसा व्रत हो, जो पूरे एक साल में एक दिन ही रहना हो और उससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए, तो उसके बारे में बताने का कष्ट करें। तब व्यास जी ने कहा कि ज्येष्ठ शुक्ल एकादशी यानी निर्जला एकादशी एक ऐसा व्रत है, जो तुम्हें करनी चाहिए।

इस व्रत में पानी पीना मना है. इसमें स्नान करना और आचमन करने की अनुमति है। इस दिन भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है। यदि निर्जला एकादशी के सूर्योदय से लेकर द्वादशी के सूर्योदय तक जल ग्रहण न करें, तो पूरे साल के एकादशी व्रतों का पुण्य इस व्रत को करने से मिलता है।

द्वादशी को सूर्योदय बाद स्नान करके ब्राह्मणों को दान दें, भूखों को भोजन कराएं और फिर स्वयं भोजन करके व्रत का पारण करें। इस प्रकार से यह एकादशी व्रत पूर्ण होता है। इस निर्जला एकादशी व्रत का पुण्य सभी दानों और तीर्थों के पुण्यों से कहीं अधिक है। यह भगवान ने स्वयं उनसे बताया था। व्यास जी की बातों को सुनने के बाद भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत रखने को राजी हुए. उन्होंने निर्जला एकादशी व्रत किया। इस वजह से यह भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी कहलाने लगी।



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Deepak Kumar

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