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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी के व्रत से होता है पाप का नाश,मिलता है पुण्य, जरूर करें व्रत कथा का रसपान
Nirjala Ekadashi Vrat Katha निर्जला एकादशी व्रत कथा : धर्म शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन व्रत रखकर इन नियमों का पालन करना चाहिए । खुद भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के इस व्रत की महिमा बताई थी।
Nirjala Ekadashi Ki Katha
निर्जला एकादशी की कथा
इस साल 2023 में 31 मई को निर्जला एकादशी है। इस दिन कठोर नियमों का पालन करते हुए भगवान विष्णु का भजन-कीर्तन और उपवास किया जाता है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष के दिन पड़ने वाली एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता है। यह एकादशी सभी 24 एकादशियों में सबसे श्रेष्ठ एकादशी है। इसे भीमसैनी एकादशी भी कहते हैं। धर्म शास्त्रों के अनुसार निर्जला एकादशी के दिन व्रत रखकर इन नियमों का पालन करना चाहिए । खुद भगवान श्रीकृष्ण ने पांडवों के इस व्रत की महिमा बताई थी।
निर्जला एकादशी व्रत कथा ( Nirjala Ekadashi Vrat Katha)
निर्जला एकादशी की महत्ता के बारे महाराज युद्धिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था कि इस एकादशी के करने से क्या फल मिलता है, साथ में भीम ने भी इस व्रत को करके जन्म-जन्मांतर के पाप हर लिए थे।लेकिन 5 पांडवों में भीमसेन के लिए किसी भी व्रत को करना पहाड़ था, क्योंकि वो बिना खाएं नहीं रह सकते थे।
पांडव पुत्र भीम को भोजन पर नियंत्रण करना मुश्किल, तब उन्होंने अनजाने में इस एकादशी व्रत को किया था, इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं। एकबार भीम ने श्रीकृष्ण से पूछा - ! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता अतः आप मुझे कृपा करके बताएं की बिना व्रत किये एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
भीम के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने कहा ''हे पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में SSछ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
जो मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पिए रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसको वर्ष में जितनी भी एकादशी आती है उन सब एकादशी का फल इस निर्जला एकादशी के व्रत करने से मिल जाता है''।
श्रीकृष्ण के वचन सुनकर भीमसेन भी प्रभावित हुए और निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने लगे और पाप मुक्त हो गए।
निर्जला एकादशी व्रत कैसे किया जाता है
भगवान विष्णु को प्रिय एकादशी के दिन विधि-विधान से निर्जल रहकर पूजा करने पर उनकी कृपा बनी रहती है। यह एकादशी बहुत ही फलदायी हैं।
निर्जला एकादशी के एक दिन पहले दशमी को लहसुन, प्याज, मांस मदिरा का त्याग कर देना चाहिए है और जामुन या नीम के दातुन से दांत साफ करना चाहिए।
एकादशी को सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत और दान का संकल्प किया जाता हैं । वही पूजा करने के बाद कथा सुनकर श्रद्धा अनुसार दान करना शुभ माना जाता हैं।
इस व्रत में नमक नहीं खाया जाता हैं। सात्विक दिनचर्या के साथ नियमों का पालन कर के व्रत पूरा किया जाता हैं। इसके बाद ही रात में भजन कीर्तन के साथ जागरण किया जाता हैं।
इस व्रत के दिन दान में छाता, मिट्टी का मटका, सत्तू वस्त्र का दान किया जाता है।
निर्जला एकादशी के दिन झूठ नहीं बोलना चाहिए और ना ही बड़ो का अपमान करना चाहिए।
ऊं नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जप करना चाहिए।
फूल , अक्षत फल से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत में दान का महत्व
इस व्रत का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। निर्जला एकादशी जब सूर्य की तपिश चरम पर रहती है, नदी तलाब के जल सुख जाते हैं, दिन बड़ा होता है तब ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मिथुन संक्रांति में निर्जल रहकर व्रत का संकल्प लेने से मनुष्य के सारे पाप धूल जाते हैं और मोक्ष का मार्ग खुलता है। निर्जला एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। निर्जला एकादशी का व्रत करने वाला व्यक्ति मृत्यु के समय मानसिक और शारीरिक कष्ट नहीं झेलता है। इस एकादशी को द्रौपदी और पांडवों ने भी किया था। इससे उनके कष्टों का निवारण भी हुआ।
निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन ! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ।
इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।
जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता।
इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं।
जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।
हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए।
निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
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