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Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी व्रत के प्रभाव से पांडवपुत्र भीम हुए थे पाप मुक्त, जानिए और भी रहस्य
Nirjala Ekadashi Vrat Katha: निर्जला एकादशी व्रत का पालन करके पांडवपुत्र भीम जन्म-जन्म के पाप मुक्त हुए थे। इस दिन व्रत कर जल से भरा घड़ा वस्त्र से ढंक कर स्वर्ण दान करना चाहिए।
निर्जला एकादशी व्रत कथा ( Nirjala Ekadashi Vrat Katha)
निर्जला एकादशी की महत्ता के बारे महाराज युद्धिष्ठिर ने श्रीकृष्ण से पूछा था कि इस एकादशी के करने से क्या फल मिलता है, साथ में भीम ने भी इस व्रत को करके जन्म-जन्मांतर के पाप हर लिए थे।लेकिन 5 पांडवों में भीमसेन के लिए किसी भी व्रत को करना पहाड़ था, क्योंकि वो बिना खाएं नहीं रह सकते थे।
पांडव पुत्र भीम को भोजन पर नियंत्रण करना मुश्किल, तब उन्होंने अनजाने में इस एकादशी व्रत को किया था, इसलिए इसे भीमसेन एकादशी भी कहते हैं। एकबार भीम ने श्रीकृष्ण से पूछा - ! भ्राता युधिष्ठिर, माता कुंती, द्रोपदी, अर्जुन, नकुल और सहदेव आदि सब एकादशी का व्रत करने को कहते हैं, परंतु महाराज मैं उनसे कहता हूँ कि भाई मैं भगवान की शक्ति पूजा आदि तो कर सकता हूँ, दान भी दे सकता हूँ परंतु भोजन के बिना नहीं रह सकता अतः आप मुझे कृपा करके बताएं की बिना व्रत किये एकादशी का फल कैसे प्राप्त किया जा सकता है।
भीम के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने कहा ''हे पुत्र तुम निर्जला एकादशी का व्रत करो, इस दिन अन्न और जल दोनों का त्याग करना पड़ता है। वृषभ और मिथुन की संक्रांति के बीच ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की जो एकादशी आती है, उसका नाम निर्जला है। तुम उस एकादशी का व्रत करो। इस एकादशी के व्रत में स्नान और आचमन के सिवा जल वर्जित है। आचमन में SSछ: मासे से अधिक जल नहीं होना चाहिए अन्यथा वह मद्यपान के सदृश हो जाता है। इस दिन भोजन नहीं करना चाहिए, क्योंकि भोजन करने से व्रत नष्ट हो जाता है।
जो मनुष्य एकादशी तिथि के सूर्योदय से द्वादशी तिथि के सूर्योदय तक बिना पानी पिए रहता है और सच्ची श्रद्धा से निर्जला व्रत का पालन करता है, उसको वर्ष में जितनी भी एकादशी आती है उन सब एकादशी का फल इस निर्जला एकादशी के व्रत करने से मिल जाता है''।
श्रीकृष्ण के वचन सुनकर भीमसेन भी प्रभावित हुए और निर्जला एकादशी व्रत का पालन करने लगे और पाप मुक्त हो गए।
निर्जला एकादशी व्रत में दान का महत्व
- निर्जला व्रत करने से पूर्व भगवान से प्रार्थना करें कि हे भगवन ! आज मैं निर्जला व्रत करता हूँ, दूसरे दिन भोजन करूँगा। मैं इस व्रत को श्रद्धापूर्वक करूँगा, अत: आपकी कृपा से मेरे सब पाप नष्ट हो जाएँ।
- इस दिन जल से भरा हुआ एक घड़ा वस्त्र से ढँक कर स्वर्ण सहित दान करना चाहिए।
- जो मनुष्य इस व्रत को करते हैं उनको करोड़ पल सोने के दान का फल मिलता है और जो इस दिन यज्ञादिक करते हैं उनका फल तो वर्णन ही नहीं किया जा सकता।
- इस एकादशी के व्रत से मनुष्य विष्णुलोक को प्राप्त होता है। जो मनुष्य इस दिन अन्न खाते हैं, वे चांडाल के समान हैं। वे अंत में नरक में जाते हैं।
- जिसने निर्जला एकादशी का व्रत किया है वह चाहे ब्रह्म हत्यारा हो, मद्यपान करता हो, चोरी की हो या गुरु के साथ द्वेष किया हो मगर इस व्रत के प्रभाव से स्वर्ग जाता है।
- हे कुंतीपुत्र! जो पुरुष या स्त्री श्रद्धापूर्वक इस व्रत को करते हैं उन्हें अग्रलिखित कर्म करने चाहिए। प्रथम भगवान का पूजन, फिर गौदान, ब्राह्मणों को मिष्ठान्न व दक्षिणा देनी चाहिए तथा जल से भरे कलश का दान अवश्य करना चाहिए।
- निर्जला के दिन अन्न, वस्त्र, उपाहन (जूती) आदि का दान भी करना चाहिए। जो मनुष्य भक्तिपूर्वक इस कथा को पढ़ते या सुनते हैं, उन्हें निश्चय ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
निर्जला एकादशी का शुभ मुहूर्त और पारण
एकादशी तिथि का प्रारंभ: 20 जून 04.21 PM – 21 जून 01.31 PM
एकादशी तिथि का समापन : 21 जून 01:31 PM –22 जून 10.44 AM
ब्रह्म मुहूर्त: 04. 09 AM – 04.52 AM
अमृत काल : 08.43 AM – 10.11 AM
अभिजीत मुहूर्त: 12.00 PM – 12.55 PM
पारण का समय : 22 जून सुबह 5.21 AM से 08.12 AM तक