13 जून की एकादशी का है बहुत महत्व, व्रत कर पाएं इसका पुण्यफल

समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। भीम इस एकादशी का विधिवत व्रत करने के लिए तैयार हो गए। उनके व्रत रहने से निर्जला एकादशी को लोक में भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

suman
Published on: 9 Jun 2019 11:32 PM GMT
13 जून की एकादशी का है बहुत महत्व, व्रत कर पाएं इसका पुण्यफल
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जयपुर:साल की 24 बार एकादशियां आती हैं। प्रत्येक एकादशी पर व्रत का विधान है। यदि इनमें कभी किसी एकादशी पर व्रत उपवास न किया हो तो कोई बात नहीं। निर्जला एकादशी (इस बार 13 जून) का व्रत कर भी वर्ष भर की एकादशियों का पुण्यफल पाया जा सकता है।मान्यता है कि व्रत का अनुष्ठान सर्वप्रथम देवर्षि नारद ने किया था। राजा अंबरीष ने इस एकादशी का महत्व तीनों लोकों में पहुंचाया। पौराणिक कथा है कि चक्रवर्ती राजा अम्बरीश 'एकादशी' का व्रत रखने वाले भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे। इस व्रत के पुण्यप्रभाव से एक उन्होंने महर्षि दुर्वाषा के अहंकार दूर किया।

एकादशी विष्णु प्रिया हैं अतः इसदिन जप-तप पूजा पाठ करने से प्राणी जीवन-मरण क बंधन से मुक्त हो जाता है। देवलोक में भी इस व्रत को सविधि करते हैं। तभी इस व्रत को देवव्रत' कहा गया है।कालांतर में महर्षि व्यास ने इस व्रत के महत्व को पांडवों को बताया था। जब वेदव्यास पांडवों को धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष देने वाले एकादशी व्रत का महत्व बताते हुए संकल्प कराया तो पांडुपुत्र भीम ने पूछा कि हे! महर्षि!

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मेरे पेट में 'वृक' नाम की जो अग्नि है, उसे शांत रखने के लिए मुझे कई लोगों के बराबर और कई बार भोजन करना पड़ता है तो क्या मैं एकादशी जैसे पुण्यव्रत से वंचित रह जाऊँगा? महर्षि व्यास ने कहा कि तुम ज्येष्ठ मास की शुक्लपक्ष की निर्जला नाम की एकादशी का व्रत करो।समस्त एकादशियों का फल प्राप्त होगा। भीम इस एकादशी का विधिवत व्रत करने के लिए तैयार हो गए। उनके व्रत रहने से निर्जला एकादशी को लोक में भीमसेनी एकादशी भी कहा जाता है।

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