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Paush Maas Start Date: पौष माह कब से हो रहा है शुरू, जानिए उपायों को जिनसे मिलेगा लाभ और इस माह की महिमा
Paush Maas Start Date: पौष माह कब से हो रहा है शुरू इस माह में क्या करना चाहिए क्या नहीं करना चाहिए। जानिए इसका महत्व...
Paush Maas Start Date पौष मास कब से हो रहा शुरू नौ ग्रहों के सबसे प्रमुख ग्रह सूर्य की पूजा करने के लिए पौष माह सबसे उत्तम मास है। इस माह आप सूर्य की पूजा कर सब कुछ पा सकते है। सूर्योदय से पहले उठकर पौष माह में सूर्य की पूजा का विधान है। मार्गशीर्ष के बाद दसवें मास के रूप में पौष मास का आरंभ 27 दिसंबर 2023 से हो रहा है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पौष के महीने में सूर्य देव की पूजा करने से शुभ फल मिलते हैं। ये मास 27दिसंबर बुधवार से शुरू हो रहा है। पौष मास की पूर्णिमा को चन्द्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है और इसी कारण इस महीने को पौष का मास कहते हैं। इस महीने में भगवान सूर्यनारायण की विशेष पूजा अर्चना से उत्तम स्वास्थ्य और मान सम्मान की प्राप्ति होती है।
पौष का महीना कब से कब तक है?
हिंदू पंचांग के अनुसार पौष मास का आरंभ 27 दिसंबर 2023 से हो रहा है और 25 जनवरी 2024 तक रहेगा। ज्योतिष शास्त्र में पौष के महीने में सूर्य देव की पूजा करने से शुभ फल प्राप्त होते हैं। जिन लोगों की जन्म कुंडली में सूर्य अशुभ या कमजोर हैं उन्हें पौष मास में सूर्य भगवान की विशेष पूजा करनी चाहिए।
पौष मास में वर्जित काम
पौष मास में कहते हैं कि सूर्य देव की आराधना की जाए तो व्यक्ति को 11 हजार रश्मियों के साथ अच्छा स्वास्थ्य मिलता है। पौष मास में सूर्य की उपासना का विशेष महत्व है। पौष मास में पूजा-अर्चना और उपासना करने से मनुष्य को फल की प्राप्ति तुरंत हो जाती है। जिस कारण इस मास में किसी भी तरह का शुभ कार्य करना वर्जित होता है। कुछ किंवदंतियों के अनुसार इस मास को धनु मलमास के नाम से भी जाना जाता है। तो वहीं इसे खरमास भी कहा जाता है। ज्योतिष विद्वानों के अनुसार इस मास में सूर्य की 11 हज़ार किरणें इंसान को ऊर्जा और स्वास्थ्य प्रदान करती हैं।इस माह में किसी भी तरह के मांगलिक कार्य, विवाह आदि जैसे कार्य या संस्कार नहीं किए जाते हैं। हालांकि, इस दौरान अगर तीर्थ यात्रा की जाए तो सबसे बेहतर होता है।लेकिन किसी तरह का बिजनेस शुरू नहीं करना चाहिए। किसी की मौत भी इस मास मे ंहो जाये तो अच्छा नहीं होता है।
पौष मास के उपाय
आदित्य पुराण के अनुसार पौष माह के प्रत्येक रविवार को तांबे के बर्तन में जल, लाल चंदन और लाल फूल डालकर सूर्य को अर्घ्य देना चाहिए तथा 'ऊँ सूर्याय नम:' मंत्र का जाप करना चाहिए। अगर संभव हो तो रविवार को सूर्यदेव के निमित्त व्रत भी करें और तिल-चावल की खिचड़ी का दान करें । व्रत के दौरान नमक का सेवन ना करने और व्रत का पारण शाम के समय किसी मीठे भोजन से करें ।
इस महीने दो एकादाशियां आएंगी पहली कृष्ण पक्ष को सफला एकादशी और दूसरी शुक्ल पक्ष को पुत्रदा एकादशी। पौष अमावस्या और पौष पूर्णिमा का भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है। इस दिन को पितृदोष, कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिये उपवास रखने के साथ-साथ विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
नारंगी और लाल रंग का अधिक से अधिक प्रयोग करें। रविवार के दिन सुबह के समय तांबे के बर्तन/गुड़ और लाल वस्त्र का दान करें। अपने माता पिता के चरण स्पर्श रोज करें।
गायत्री मंत्र भोजपत्र पर तीन बार गायत्री मंत्र लाल चंदन से लिखकर अपने पर्स में रखें।लाल चंदन की माला से गायत्री मंत्र का सूर्य के समक्ष जाप करें।अगर किसी व्यक्ति को इस मास में नौकरी, व्यापार आदि से जुड़ी कोई दिक्कत आए तो इस माह में शिव जी को गुड़ और जल चढ़ाना चाहिए।
पौष मास के दौरान जातक को प्रत्येक सोमवार को शिव जी की पूजा करनी चाहिए और इन पर बेलपत्र भी अर्पित करनी चाहिए। इसके अलावा हो सके तो इस दौरान बेलपत्र की जड़ या लकड़ी को लाल धागे में गले में धारण करना चाहिए। अपनी क्षमता अनुसार इस मास में जातक को तांबे का दान अवश्य करना चाहिए।
ज्ञान वृद्धि के लिए सूर्यदेव को गुड़हल के फूल चढ़ाने चाहिए, इसके अतिरिक्त मान-सम्मान के लिए रोज़ाना सूर्य देव को कर्पूर ओर केसर सूर्य अर्पित करें।कारोबार या ऑफिस में तरक्की के लिए पानी में लाल चंदन मिलाकर सूर्य देव को अर्पित करें।
तांबे के लोटे में जल भरकर भी रखें और ॐ मन्त्र 27 बार उच्च स्वर में जपें व फिर इस जल को सारे घर में छिड़क दें। ऐसा लगातार 27 दिन तक करें । कार्यों में तेज़ी आएगी और रुका हुआ धन भी जरूर मिलेगा। सुबह के समय जल्दी उठें और उगते हुए भगवान सूर्य नारायण को तांबे के लोटे में जल और गुड़ मिलाकर अर्घ्य दें तथा तीन परिक्रमा करें।
पौष मास में सूर्य को ईश्वर का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने व इनका उपवास रखने का विशेष महत्व माना गया है।
पौष माह का महत्व
जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है। पौराणिक ग्रंथों की मान्यता अनुसार पौष मास में सूर्य देव की उपासना उनके नाम से करनी चाहिये। सुबह सूर्य उदय होने से पहले उठे और स्नान करके हल्के लाल रंग के कपड़े पहने। एक लाल आसन पर बैठकर रुद्राक्ष की माला से 108 बार सूर्य के मन्त्र ॐ घृणि सूर्याय नमः का पाठ करें।इस माह में कोई शुभ कार्य करना वर्जित होता है लेकिन आप अगर गुरु की उपासना के लिये, आध्यात्मिक कार्यों जैसे हवन, पूजा-पाठ या किसी तीर्थ स्थल की यात्रा करना इस दौरान बड़ा ही शुभ फलदायी है। सूर्य की धनु संक्रांति से पौष मास के पूरे शुक्ल पक्ष के दौरान सूर्य धनु संक्रांति में रहता है। इसीलिए इस माह के दौरान किया गया पूजा-पाठ बहुत लाभदायक होता है।