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Shri Krishna Story: प्रेम की पूर्णता वियोग में ही है

Shri Krishna Story: प्रेम में डूबे लोग प्रिय से वियोग की कल्पना भी करना नहीं चाहते।वियोग के दिन सामने आ जाँय तब भी मन को झुठलाते रहते हैं कि 'वह' कही नहीं जा रहा।

Sankata Prasad Dwived
Published on: 29 Jun 2024 10:14 AM GMT
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Shri Krishna Story: प्रेम की पूर्णता वियोग में ही और अचानक एक दिन कन्हैया ने चिढ़ कर कहा,”यूँ बार बार मइया से शिकायत करोगी तो सबको छोड़ कर चला जाऊंगा। फिर रोते रहना कन्हैया कन्हैया कर के फिर न आऊंगा कभी।प्रेम में डूबे लोग प्रिय से वियोग की कल्पना भी करना नहीं चाहते।वियोग के दिन सामने आ जाँय तब भी मन को झुठलाते रहते हैं कि 'वह' कही नहीं जा रहा। प्रेम में जी रहा मनुष्य एक हद तक भरम में जीता है।कन्हैया कहीं जा भी सकता है,नन्दगाँव में इसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता था।ललिता ने छेड़ते हुए कहा, “कहाँ जाओगे माखनचोर महाराज?*नन्दगाँव के अतिरिक्त अन्य कहीं टिक नहीं पाओगे तुम और चले भी गए तो यहाँ कोई नहीं रोयेगा कन्हैया कन्हैया कह के।

ललिता ने अपनी बात हँसते हुए शुरू की थी,पर बात समाप्त होते होते उसकी आंखें भीगने लगी थीं।कुछ पल चुप रहने के बाद उसने भारी स्वर में कहा,”चला जाऊंगा कहने में तेरी जीभ न कांपी रे छलिये?” नन्दगाँव का कण कण तुम पर न्योछावर होता है,अब और कितना प्रेम चाहिये रे? दो कटोरी माखन खा जाने पर तो दिन भर चोर चोर कहती फिरती हो तुमलोग,प्रेम कहाँ है रे झूठी?इतने मासूम तो नहीं हो कन्हैया कि यह भी न समझ सको कि तुम्हारी शिकायत बस तुम्हारी चर्चा करते रहने का बहाना मात्र है। अब तो तुम्हारे अतिरिक्त और कुछ सूझता भी नहीं नन्दगाँव वालों को।तुम्हारे या तुम्हारी मइया के सामने शिकायत करते हैं और दूसरी जगह केवल तुम्हारी बड़ाई करते रहते हैं।अधरों पर तुम्हारे नाम के अतिरिक्त और कुछ आता ही नहीं, यह प्रेम नहीं तो और क्या है रे?

तो तनिक सोच तो ग्वालन! न भागा तो क्या यह प्रेम इसी तरह बना रह पाएगा? सोच कर देख तो-ललिता एकाएक सन्न रह गई।देर तक निहारती रही उस बालक का मुख।फिर वही मन को झुठलाने वाला भाव, “प्रेम क्यों न रहेगा रे?” बाद में क्या हम किसी अन्य से प्रेम करने लगेंगे?क्या उलूल जुलूल बोलते रहते हो तुम? कृष्ण ने एक गम्भीर दृष्टि डाली ललिता पर, और कुछ देर बाद कहा, “इस प्रेम की रक्षा के लिए भी मुझे जाना होगा।” यदि न गया तो यह प्रेम नहीं बचेगा।

प्रेम की पूर्णता साथ में नहीं है, प्रेम की पूर्णता वियोग में ही है।ललिता की आंखें अनायास ही बरसने लगी थीं।अचानक कन्हैया के भाव बदले और उन्होंने झिड़कते हुए कहा,”यदि आज भी तुमलोगों ने मइया से मेरी शिकायत की तो कल ही भाग जाऊंगा मैंमुझे पता है, तुमलोग आज भी झूठमूठ ही कहोगी कि कन्हैया ने हमारी मटकी फोड़ी है।हैं?? अर्थात तुम आज भी हमारी मटकी फोड़ोगे? हाँ तो आज तुम्हारा सर फोड़ देंगे हम,” ललिता ने झपट कर कृष्ण को पकड़ना चाहा, पर वे तो अभी यहाँ, अभी कहाँ।” क्रोध से कांपती ललिता ने कहा, "रुक जा तू, अभी कहते हैं मइया से।” भरम फिर प्रभावी हो गया।

Shalini singh

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