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कुंडली:इस एक दोष की वजह से पीड़ित जातक को नहीं मिलता जीवनभर वैवाहिक सुख
जयपुर: पितृ दोष वैदिक ज्योतिष की दृष्टि मे बहुत महत्वपूर्ण होता है। जब सूर्य, चंद्रमा एवं गुरु, शनि, राहु व केतु से पीड़ित होकर लग्न, पंचम, नवम या दशम भाव में हो तो यह दोष होता है। इस दोष को लेकर भी बहुत सी भ्रांतियां है, जिससे साधारण आदमी को डराया जाता है, और कई तरह की पूजा करवाई जाती है। इसलिए बहुत ही जांच परखकर ही दोष का परिहार करना चाहिए। बहुत से ऋषि मुनियों का मत है कि इस दोष के होने से ज़ीवनभर परेशानियों व समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जातक को अपनी संतान से कष्ट होता है या किसी बुरी आदत एवं आपराधिक गतिविधियों की वजह से धन का नुकसान होता है।
जातक की कुंडली मे चंद्रमा सप्तम स्थान मे पीडित हो तो जातक ने पिछले जन्म मे अपनी पत्नी की वज़ह से अपनी माता को कष्ट दिया था,तभी उसका इस जन्म मे वैवाहिक सुख क्षीण हो जाता है। चतुर्थ भाव मे पीडि़त चंद्रमा होने से जातक ने पिछले जन्म मे अपनी माता को मारा होता है तभी वह इस जन्म मे माता से कष्ट पाता है और उसकी ज़ीवन भर किसी कारण सेवा कर अपना कर्ज़ चुकाता है। जातक को कई रोगियों का भी श्राप होता है, जिस कारण ज़ीवन भर किसी रोग को भुगतना पड़ता है।
जातक सरकारी कार्य में बेवजह उलझता है और कारावास में दंड पाता है। वंश वृद्धि और शिक्षा में गिरावट आती है। शारीरिक रोग और वैवाहिक सुख नहीं मिल पाता। सप्तम या अष्टम में गुरू होने से पिछले जन्म में स्त्री द्वारा अपने पति को धोखा देने के संकेत मिलते हैं। या जातक पारिवारिक दायित्व से बचने के लिए घर छोड़ चुका होता है। तभी उसको इस जन्म में गृहस्थ एवं पति सुख की प्राप्ति नहीं हो पाती।
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इस दोष में जातक के पितृ श्रापित होते हैं जिस कारण वह अपनी योनि मे तृप्त नहीं रह पाते और अपने वंशज़ों को भी इस का भुगतान करना पड़ता है। जिस तरह अपने पिता या दादा की सम्पत्ति का भुगतान उनकी संतान को करना पड़ता है, उसी तरह अपने पूर्वज़ों के अच्छे-बुरे कर्मों का भी भुगतान करना पड़ता है। जातक की कुंड़ली मे यह दोष इस जन्म में हो तो यह कई जन्मों के कर्मों के कारण होते हैं।
ऐसे जातक को प्रत्येक अमावस्या को घर मे भोज़न बनाकर दक्षिण की ओर मुख कर अपने पितरों से क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए और भोज़न किसी ब्राह्मण को खिलाना चाहिए। जातक अपने पिता एवं पिता समान पुरुष की इज़्ज़त करें उनके चरण स्पर्श करें और सूर्य को ज़ल चढाए। अमावस्या को पितृ हवन करें और 11 माला "ऊँ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरुवे नम:" का जाप करें।