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Pran Pratishtha Kya Hoti Hai प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है? इसस प्रक्रिया से क्या सच में मूर्ति में होता है ईश्वरत्व का वास!
Pran Pratishtha Kya Hoti Hai प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है?: प्रतिष्ठा का अर्थ है, भगवान को स्थापित करना। जब भी कोई स्थापना होती है, तो उसके साथ मंत्रों का जाप होता है, अनुष्ठान और अन्य प्रक्रियाएं होती हैं। इससे मूर्ति में प्राण वायु पंचभूत समाहित होते हैं
Pran Pratishtha: प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है?: रामलला की प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम अयोध्या में संपन्न हो गया। देश के हर आम और खास इसके गवाह बने। वैसे तो किसी भी मूर्ति को मंदिर में स्थापित करने से पहले उसको इसी प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के बाद लोगों में इस प्रक्रिया को जानने की जिज्ञासा पैदा हो रही है कि आखिर प्राण प्रतिष्ठा क्या है तो बता दें कि प्राण प्रतिष्ठा एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसका विशिष्ट मंत्र द्वार प्राण शक्ति का आह्वान मूर्ति में किया जाता है। जिस देवता की प्राण प्रतिष्ठा करनी होती है उससे संबंधित कुछ विशेष मंत्र अनुष्ठान होते हैं जिनका विशेष नियम द्वार पालन करना होता है। जैसे स्नान, पवित्र वस्त्र धारण करना, व्रत रखना और नित्य इष्ट के पूजन जाप इत्यादी।साथ ही धरती पर सोने जैसे नियम भी होते हैं, कम से कम बोलना एवं स्वयं को संयमित रखना। सात्विक भोजन और फलाहार जैसा नियम का पालन भी करना होता है।
मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा क्यों जरूरी
धर्मानुसार किसी भी मंदिर में देवी-देवता की मूर्ति स्थापित करने से पहले उस मूर्ति की विधि-विधान से प्राण प्रतिष्ठा करना बेहद जरूरी होता है। प्राण प्रतिष्ठा का मतलब है कि मूर्ति में प्राणों की स्थापना करना या जीवन शक्ति को स्थापित करके किसी भी मूर्ति को भागवान के रूप में बदलना होता है। प्राण प्रतिष्ठा के दौरान मंत्रों का उच्चारण और विधि-विधान से पूजा करके मूर्ति में प्राण वायू का संचार होता है।किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करते समय कई चरणों से होकर गुजरना पड़ता है। इन सभी चरणों को अधिवास कहा जाता है धर्मग्रंथों और पुराणों प्राण प्रतिष्ठा का वर्णन है। हिंदू धर्मानुसार, बिना प्राण प्रतिष्ठा के किसी भी प्रतिमा की पूजा नहीं की जा सकती है। प्राण प्रतिष्ठा से पहले तक प्रतिमा निर्जीव रहती है और प्राण प्रतिष्ठा के बाद ही उसमें जीवन आता है और वह पूजनीय योग्य बन जाती है।
प्राण प्रतिष्ठा के अधिवास क्या है
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान कई चरण होते हैं, जिसे अधिवास कहा जाता है, प्राण प्रतिष्ठा से पहले कई अधिवास आयोजित किए जाते हैं। अधिवास वह प्रक्रिया है, जिसमें मूर्ति को कई सामग्रियों में डुबोया जाता है। इसके तहत एक रात के लिए, मूर्ति को पानी में रखा जाता है, जिसे जलाधिवास कहा जाता है। फिर इसे अनाज में डुबोया जाता है, जिसे धन्यधिवास कहा जाता है। कि ऐसी मान्यता है कि मूर्ति निर्माण के क्रम में जब किसी मूर्ति पर शिल्पकार के औजारों से चोटें आ जाती हैं, तो वह अधिवास के दौरान ठीक हो जाती हैं। मान्यता है कि यदि मूर्ति में कोई दोष है, या पत्थर अच्छी गुणवत्ता का नहीं है, तो अधिवास के क्रम में इसका पता चल जाता है। इसके बाद मूर्ति को अनुष्ठानिक स्नान कराया जाता है। इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से प्रतिमा का स्नान अभिषेक कराया जाता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियां शामिल हो सकती हैं, जिनमें पंचामृत, सुगंधित फूल व पत्तियों के रस, गाय के सींगों पर डाला गया पानी और गन्ने का रस शामिल होता है।
इस तरह अनुष्ठानिक स्नान कराने के बाद प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रतिमा को जगाने का समय आता है। इस दौरान कई मंत्रों का जाप किया जाता है, जिसमें विभिन्न देवताओं से मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन करने के लिए कहा जाता है। सूर्य देवता से आंखें, वायु देवता से कान, चंद्र देवता से मन आदि जागृत करने का आह्वान होता है।जिस तरह इस सृष्टि में पंच तत्व समाहित है प्राण प्रतिष्ठा के विधान में उनका ध्यान रखा जाता है
इसके बाद प्राण प्रतिष्ठा की पूजन क्रिया शुरू की जाती है। पूजा के वक्त मूर्ति का मुख पूर्व दिशा में रखा जाता है और इसके बाद सभी देवी-देवताओं का आह्वान करके उन्हें इस शुभ कार्य में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया जाता है. इस दौरान मंत्रों का उच्चारण किया जाता है।
इसके बाद पूजन की सभी क्रियाएं की जाती हैं। इस दौरान भगवान को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनका श्रृंगार किया जाता है। प्राण प्रतिष्ठा के बाद मूर्ति को आइना दिखाया जाता है. माना जाता है कि भगवान के आंखों में इतना तेज होता है कि उसका तेज सिर्फ भगवान खुद की सहन कर सकते हैं। अंत में आरती-अर्चना कर लोगों में प्रसाद वितरित किया जाता है।
बता दें कि आज 22 जनवरी 2024 के दिन अयोध्या में श्रीराम अपनी जन्मस्थली पर मंदिर के गर्भगृह में इस प्रक्रिया से स्थापित हुए। जिसकी पूजा 16 जनवरी शुरू हो गई थी। आजरामलला की प्राण-प्रतिष्ठा योग का शुभ मुहूर्त, पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी, विक्रम संवत 2080, यानी सोमवार,बहुत अद्भुत संजीवनी मुहूर्त में हुआ है।