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राधा अष्टमी व्रत आज ( Radha Ashtami 2022 Aaj hai) है, राधा के बिना अधूरे हैं कृष्ण, पापों से मुक्ति दिलाता है ये पर्व, जानिए महिमा

Radha Ashtami 2022 Aaj Hai: राधाअष्टमी की पूजा के बिना जन्माष्टमी का व्रत करना व्यर्थ है। जिस तरह सांझ के बिना सबेरा नहीं हो सकता है, वैसे ही राधाजी की पूजा के बिना कृष्ण की पूजा अधूरी कही गई है। पुराणों के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते है। जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वो सभी पापों से मुक्ति पाते हैं।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 4 Sept 2022 7:45 AM IST (Updated on: 4 Sept 2022 9:44 AM IST)
राधा अष्टमी व्रत आज ( Radha Ashtami 2022 Aaj hai) है, राधा के बिना अधूरे हैं कृष्ण, पापों से मुक्ति दिलाता है ये पर्व, जानिए महिमा
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Radha Ashtami 2022 Aaj Hai

राधा अष्टमी 2022 आज है

भादो शुक्ल पक्ष की अष्टमी की तिथि को राधा अष्टमी भी कहा जाता है। राधा अष्टमी पर विशेष शुभ योग भी बन रहा है। इस साल राधा अष्टमी 4 सितंबर 2022 को मनाई जाएगी। कृष्ण जन्माष्टमी के 16 वें दिन भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को राधाष्टमी मनाया जाता है। इस साल 4 सितंबर को राधाष्टमी का पर्व है। राधा के बिना कृष्ण नाम का जप निर्थक है, इसलिए तो मनुष्य जन्म को सार्थक बनाने के लिए राधाजी का जन्म 16 वें दिन कृष्ण जन्म के बाद हुआ और इन दो नामों में सृष्टि में अमर निस्वार्थ प्रेम के बीज बोएं, जो जन्म-जन्मांतर चला आ रहा है।

राधाष्टमी के दिन श्रद्धालु बरसाना की ऊंची पहाड़ी पर स्थित गहवर वन की परिक्रमा करते हैं। इस दिन रात-दिन बरसाना में रौनक रहती है। राधा जी को राधिका, बृषभानुजा, हरिप्रिया, व्रजेश्वरी,व्रजरानी के नामों से भी जानते है। जो मां लक्ष्मी का अवतार थी ।

राधा अष्टमी का शुभ मुहूर्त (radha ashtami shubh muhurat)

इस साल 4 सितंबर को राधा अष्टमी मनाया जाएगा। जो रविवार को भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी है। इस योग को आयुष्मान योग का निर्माण हो रहा है। यानि राधा अष्टमी का व्रत और पूजा इसी योग में की जाएगी।

राधा अष्टमी शुभ योग

सवार्थसिद्धि योग- Sep 04 09:43 PM से 06:14 AM

राधा अष्टमी पर नक्षत्र-चंद्र

इस दिन ज्येष्ठा 09:43 PM तक रहेगा फिर मूल और 09:43 PM तक चन्द्रमा वृश्चिक उपरांत धनु राशि पर संचार करेगा । इस दिन प्रीति योग रहेगा।

इस दिन अभिजीत मुहूर्त – 12:01 PM से 12:50 PM तक रहेगा।

राधा अष्टमी की पूजा विधि (radha ashtami puja vidhi)

इस दिन सुबह शुद्ध मन से व्रत का पालन करना चाहिए। राधा जी की मूर्ति को पंचामृत से स्नान कराकर उनका श्रृंगार किया जाता है। राधा जी की सोने या किसी अन्य धातु से बनी हुई सुंदर मूर्ति को विग्रह में स्थापित करते हैं। दोपहर के समय श्रद्धा और भक्ति से राधाजी की आराधना की जाती है। धूप-दीप आदि से आरती करने के बाद अंत में भोग लगाया जाता है। कई ग्रंथों में राधाष्टमी के दिन राधा-कृष्ण की संयुक्त रुप से पूजा की बात कही गई है।

इसके अनुसार सबसे पहले राधाजी को पंचामृत से स्नान कराना चाहिए और उनका विधिवत रुप से श्रृंगार करना चाहिए। इस दिन मंदिरों में 27 पेड़ों की पत्तियों और 27 ही कुंओं का जल इकठ्ठा करना चाहिए। सवा मन दूध, दही, शुद्ध घी और औषधियों से मूल शांति करानी चाहिए। अंत में कई मन पंचामृत से वैदिक मंत्रों के साथ 'श्यामाश्याम' का अभिषेक किया जाता है। नारद पुराण के अनुसार 'राधाष्टमी' का व्रत करनेवाले भक्तगण ब्रज के दुर्लभ रहस्य को जान लेते है। जो व्यक्ति इस व्रत को विधिवत तरीके से करते हैं वो सभी पापों से मुक्ति पाते हैं। राधाजी वृंदावन की अधीश्वरी हैं। शास्त्रों में राधा जी को लक्ष्मी जी का अवतार माना गया है। इसलिए इस दिन लक्ष्मी पूजन भी करना चाहिए। ऐसा करने से आर्थिक समस्याएं खत्म होती हैं।

राधा अष्टमी पर ब्रज और बरसाना में उत्सव

वृंदावन, ब्रज और बरसाना में जन्माष्टमी की तरह राधाष्टमी भी एक बड़े त्यौहार की तरह मनाते है। मथुरा, वृन्दावन, बरसाना, रावल और मांट के राधा रानी मंदिरों इस दिन को उत्सव के रुप में मनाया जाता है। वृन्दावन के 'राधा बल्लभ मंदिर' में राधा जन्म की खुशी में गोस्वामी समाज के लोग भक्ति में झूम उठते हैं।

मंदिर में बनी हौदियों में हल्दी मिश्रित दही को इकठ्ठा किया जाता है और इस हल्दी मिली दही को गोस्वामियों पर उड़ेला जाता है। इस पर वह और अधिक झूमने लगते हैं और नृत्य करने लगते हैं।राधाजी के भोग के लिए मंदिर के पट बंद होने के बाद, बधाई गायन के होता है।

राधा अष्टमी का महत्व

राधा नाम का अर्थ है जन्म-जन्मातंर के पापों से मुक्ति, प्रेम मिलन, और बंधन से मुक्ति का मार्ग जो दें वो हा राधा जी। कहते हैं कि राधा जी की पूजा से श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं। जो भी साधक भक्ति भाव से राधा जी को पूजता है। वह इस लोक के सुख को भोग को परमधाम को प्राप्त करता है।राधा जी के पूजन से निसंतान के संतान और वैवाहिक जीवन में प्रेम रस की प्रधानता रहती है। जन्माष्टमी कथा का श्रवण करने से भक्त सुखी, धनी और सर्वगुणसंपन्न बनता है, भक्तिपूर्वक श्री राधाजी का मंत्र जाप और स्मरण मोक्ष प्रदान करता है। श्रीमद देवी भागवत में कहा गया है कि जो राधा की पूजा करता है उसे ही कृष्ण की पूजा का अधिकार है। राधा अष्टमी का व्रत विशेष पुण्य प्रदान करने वाला माना गया है। इस व्रत को सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने वाला बताया गया है। सुहागिन स्त्रियां इस दिन व्रत रखकर राधा जी की विशेष पूजा करती हैं। इस दिन पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है। राधा अष्टमी का पर्व जीवन में आने वाली धन की समस्या की भी दूर करता है। राधा जी की इस दिन पूजा करने भगवान श्रीकृष्ण का भी आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को रखने से जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है ।

राधा अष्टमी की धार्मिक कथा

राधाष्टमी कथा, राधा जी के जन्म से संबंधित है। राधाजी, वृषभानु गोप की पुत्री थी। राधाजी की माता का नाम कीर्ति था। पद्मपुराण में राधाजी को राजा वृषभानु की पुत्री बताया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार जब राजा यज्ञ के लिए भूमि साफ कर रहे थे, तब भूमि कन्या के रुप में इन्हें राधाजी मिली थी। राजा ने इस कन्या को अपनी पुत्री मानकर इसका लालन-पालन किया।

सके साथ ही ये कथा भी मिलती है कि भगवान विष्णु ने कृष्ण अवतार में जन्म लेते समय अपने परिवार के अन्य सदस्यों से पृथ्वी पर अवतार लेने के लिए कहा था, तब विष्णु जी की पत्नी लक्ष्मी जी, राधा के रुप में पृथ्वी पर आई थी। ब्रह्म वैवर्त पुराण के अनुसार राधाजी, श्रीकृष्ण की सखी थी। लेकिन उनका विवाह रापाण या रायाण नाम के व्यक्ति के साथ सम्पन्न हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि राधाजी अपने जन्म के समय ही वयस्क हो गई थी। राधाजी को श्रीकृष्ण की प्रेमिका माना जाता है।

ऐसी मान्यता है कि इसी दिन व्रज में श्रीकृष्ण के प्रेयसी राधा का जन्म हुआ था। पुराणों के अनुसार, राधा भी श्रीकृष्ण की तरह ही अनादि और अजन्मी हैं, उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ। इस पुराण में राधा के संबंध में बहुत ही ऐसी बातें बताई गई हैं जो बहुत कम लोग जानते हैं। राधाजी का जन्म जन्माष्टमी के बाद ब्रज के रावल गांव में राधा जी का जन्म हुआ । कहते हैं कि जो राधा अष्टमी का व्रत नहीं रखता, उसे जन्माष्टमी व्रत का फल नहीं मिलता। भाद्रपद शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को राधाष्टमी व्रत रखा जाता है। पुराणों में राधा-रुक्मिणी को एक ही माना जाता है। जो लोग राधा अष्टमी के दिन राधा जी की उपासना करते हैं, उनका घर धन संपदा से सदा भरा रहता है। राधा अष्टमी के दिन ही महालक्ष्मी व्रत का आरंभ भी होता है।


राधा अष्टमी पर मंत्र जाप

राधाष्टमी के दिन यदि राधा रानी की पूरे विधि विधान से पूजा अर्चना की जाए और कुछ विशेष मंत्रों का जाप किया जाए तो भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और कष्टों का निवारण होता है।

मंत्रैर्बहुभिर्विन्श्वर्फलैरायाससाधयैर्मखै: किंचिल्लेपविधानमात्रविफलै: संसारदु:खावहै।

एक: सन्तपि सर्वमंत्रफलदो लोपादिदोषोंझित:, श्रीकृष्ण शरणं ममेति परमो मन्त्रोड्यमष्टाक्षर।।

आपको धन संबंधी समस्या है तो राधा अष्टमी के दिन राधा रानी के इस सप्ताक्षर मंत्र का सवा लाख बार जप करेंगे तो लाभ मिलेगा।

ओम ह्रीं राधिकायै नम:।

ओम ह्रीं श्रीराधायै स्वाहा।


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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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