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Radha Krishna Story: प्रेम की परिपूर्णता अद्वैत से ही है
Radha Krishna Story: भक्ति भी ऐसी होनी चाहिए कि जिसमे किसी भी प्रकार की कामना न हो
Radha Krishna Story: जिस धर्म से मनुष्य के दिल में श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति जागे,वो ही धर्म श्रेष्ठ है।
भक्ति भी ऐसी होनी चाहिए कि जिसमे किसी भी प्रकार की कामना न हो।
निष्काम एव् निरन्तर भक्ति से ह्रदय आनंद रूप परमात्मा की प्राप्ति करके कृत्यकृत्य हो जाता है।
सूतजी कहते है- जीवात्मा अंश है और परमात्मा अंशी। अंशी से अंश अलग हो गया इसलिए वह दुःखी है।
अंशी अर्थात परमात्मा में मिल जाने पर ही जीव कृतार्थ होता है।
परमात्मा कहते है - "ममैवांशो जीव लोके।" - तू मेरा अंश है,तू मुझसे मिलकर कृतार्थ होगा।
नर,नारायण का अंश है।
अंश(नर) अंशी (नारायण) में जब तक न मिल जाये, तब तक उसे शान्ति नहीं मिलेगी।
मनुष्य को निश्चय करना चाहिए- कि - "अपने परमात्मा का आश्रय लेकर उनके साथ मुझे एक होना है,”किसी भी प्रकार से ईश्वर के साथ एक होना है।
ज्ञानी ज्ञान से अभेद सिद्ध करता है।
तो वैष्णव महात्मा प्रेम द्वारा अद्वैत (अभेद) सिध्ध करते है।
प्रेम की परिपूर्णता अद्वैत में ही है।
भक्त और भगवान अंतमे तो- एक ही हो जाते है। जैसे-गोपी और श्री कृष्ण एक हो गए थे।