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Rajasthan Famous Khatu Shayam Temple: इस मंदिर के प्रति लोगों में है असीम आस्था, जानिए श्रीकृष्ण से कलयुग के खाटू श्याम बनने की कथा

Rajasthan Famous Khatu Shayam Temple: जन्माष्टमी को लेकर पूरे देश में जश्न का माहौल है, इसको लेकर पूरे देश के कृष्ण मंदिरों को प्रेम से सजाया गया है। और इन मंदिरों का श्रीकृष्ण से साक्षात जुड़ाव भी रहा है। मान्यता के अनुसार इन मंदिरों में साक्षात कृष्ण का निवास रहता है।इन्ही एक है खाटू श्याम जो श्री कृष्ण का कलयुग रुप है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 18 Aug 2022 10:03 AM GMT (Updated on: 18 Aug 2022 10:28 AM GMT)
Rajasthan Famous Khatu Shayam Temple
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

Rajasthan Famous Khatu Shayam Temple

राजस्थान फेम खाटू श्याम मंदिर

राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम का मंदिर विश्व प्रसिद्ध है। खाटू श्यामजी का मंदिर शहर के मध्य में बना हुआ है। इसमें पूजा के लिए एक बड़ा हॉल है, जिसे जगमोहन के नाम से जाना जाता है। गर्भगृह के द्वार और उसके आसपास को चांदी की परत से सजाया गया है। गर्भगृह के अंदर बाबा का सिर है। शीश को हर तरफ से खूबसूरत फूलों से सजाया गया है। इस मंदिर के प्रति लोगों मे असीम आस्था है।

खाटू श्याम -कृष्ण का रुप और भीम के पौत्र

इस मंदिर में स्थापित खाटू श्याम को लोग कृष्ण का ही रूप मानते हैं। मतलब कि खाटू श्याम भगवान कृष्ण के कलियुगी अवतार हैं। मान्यता के अनुसार महाभारत काल में भीम के पौत्र थे, जिनका नाम बर्बरीक था। यही बर्बरीक अब खाटू श्याम हैं। कहते हैं कि श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में खाटू श्याम के नाम से पूजे जाने का वरदान दिया था। महाभारत में जब कौरवों ने लाक्षागृह में आग लगवा दी तो पांडव वहां से अपनी जान बचाकर भागे। इस दौरान वो वन-वन भटकते रहे। वन में ही भीम की मुलाकात हिडिंबा नाम की राक्षसी से हुआ। हिडिंबा ने भीम को देखते ही उन्हें मन ही मन में अपना पति स्वीकार कर लिया। बाद में हिडिंबा कुंती से मिली और भीम के साथ उनका विवाह हो गया। हिडिम्बा और भीम के एक पुत्र हुआ, जिसका नाम घटोत्कच था। इन्हीं घटोत्कच के पुत्र का नाम बर्बरीक है, जो ताकत में अपने पिता से भी ज्यादा मायावी था।

बर्बरीक से खाटू श्याम बनने की कथा

बर्बरीक ने तपस्या के बल पर देवी से तीन बाण प्राप्त किए। इनकी खासियत ये थी कि जब तक ये अपने लक्ष्य को भेद न दें तब तक उसके पीछे पड़े रहते थे। लक्ष्य भेदने के बाद ये तुणीर में लौट आते थे। इन बाणों की शक्ति से बर्बरीक अजेय हो गया। महाभारत में जब कौरव-पांडवों में युद्ध चल रहा था तो बर्बरीक कुरुक्षेत्र की तरफ आ रहा था। बर्बरीक हमेशा हारने वाले पक्ष की मदद करते थे और यद्ध में कौरव हार की तरफ बढ़ रहे थे। ऐसे में श्रीकृष्ण ने सोचा कि अगर बर्बरीक युद्ध में शामिल हुआ तो ठीक नहीं होगा। बर्बरीक को रोकने के भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धरा और उसके सामने पहुंच गए। इसके बाद कृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि तुम कौन हो और कुरुक्षेत्र क्यों जा रहे हो। इस पर बर्बरीक ने कहा कि वो हारने वाले पक्ष का साथ देंगे और अपने एक ही बाण से महाभारत का युद्ध खत्म कर देंगे।

इस पर कृष्ण ने उसकी परीक्षा लेनी चाही और कहा- अगर तुम श्रेष्ठ धनुर्धर हो तो सामने खड़े पीपल के पेड़ के सारे पत्ते एक ही तीर में गिराकर दिखाओ। बर्बरीक भगवान की बातों में आ गए और तीर चला दिया, जिससे कुछ क्षणों में सभी पत्ते गिर गए और तीर श्रीकृष्ण के पैरों के पास चक्कर लगाने लगा। दरअसल, कृष्ण ने एक पत्ता चुपके से अपने पैर के नीचे दबा लिया था। इस पर बर्बरीक ने कहा- आप अपना पैर हटा लें, ताकि तीर उस पत्ते को भी भेद सके। इसके बाद श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम तो बड़े शक्तिशाली हो। क्या मुझ ब्राह्मण को कुछ दान नहीं दोगे। इस पर बर्बरीक ने कहा- आप जो चाहें मांग लें। श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका सिर मांग लिया।

श्रीकृष्ण ने दिया बर्बरीक को श्याम नाम

बर्बरीक समझ गए कि ये कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है। इसके बाद श्रीकृष्ण अपने वास्तविक स्वरूप में आए तो बर्बरीक ने उन्हें अपना सिर काटकर भेंट कर दिया। वहीं उसके बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक से अपनी कोई इच्छा बतलाने को कहा। तब बर्बरीक ने कहा कि वो कटे हुए सिर के साथ ही महाभारत का पूरा युद्ध देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा पूरी की और बर्बरीक का सिर पास की ही एक पहाड़ी, जिसे खाटू कहा जाता था वहां स्थापित हो गया। यहीं से बर्बरीक ने पूरा युद्ध देखा। कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि वो कलियुग में मेरे ही एक नाम यानी श्याम से पूजे जाएंगे। वो हारे का सहारा बनेंगे।


खाटू का क्या अर्थ होता है?

महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक का शीश भगवान श्रीकृष्ण ने रूपवती नदी में प्रवाहित कर दिया था। कलयुग प्रारंभ होने के कई साल बाद बर्बरीक का सिर नदी में पाया गया, जिसे राजस्थान के सीकर जिले में दफनाया गया, तभी से इस स्थान का नाम खाटू पड़ा।

खाटूश्याम हर कामना करते हैं पूरी

इस तरह मान्यता है कि जो भी भक्त यदि सच्चे भाव से खाटूश्याम का नाम उच्चारण करता है, तो उसका उद्धार संभव है। यदि भक्त सच्ची आस्था, प्रेम-भाव से खाटूश्याम की पूजा-अर्चना करता है, तो उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। जिदंगी के सभी दुख-दर्द दूर होते हैं. हर कार्य सफल हो सकते हैं।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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