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Ram Lala Pran Pratishtha Adhiwas: जानिए 18 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा विधान के बारे में, क्या है इस दिन के 4 अधिवास

Ram Lala Pran Pratishtha Adhiwas: 18 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम: राम मंदिर के लिए, प्राण प्रतिष्ठा से पहले सात दिवसीय अनुष्ठान में कई विधान शामिल हैं। जानते 18 जनवरी को होने वाले विधान के बारे में...

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 18 Jan 2024 7:16 AM IST (Updated on: 19 Jan 2024 10:12 AM IST)
Ram Lala Pran Pratishtha Adhiwas: जानिए 18 जनवरी को होने वाले प्राण प्रतिष्ठा विधान के बारे में, क्या है इस दिन के 4 अधिवास
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18 January Ke Pran Pratishtha Adhiwas18 जनवरी के प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम: 22 जनवरी 2024 के दिन अयोध्या में श्रीराम अपनी जन्मस्थली पर मंदिर के गर्भगृह में स्थापित होंगे। 16 जनवरी 2024 से प्राण प्रतिष्ठा तक कई कार्यक्रम और पूजाशुरू हो गई है। इसको लेकर 7 दिन के कार्यक्रम भी है राम लाल के प्राण प्रतिष्ठा कैसे होगी। श्री रामलला की प्राण-प्रतिष्ठा योग का शुभ मुहूर्त, पौष शुक्ल कूर्म द्वादशी, विक्रम संवत 2080, यानी सोमवार, 22 जनवरी, 2024 को आ रहा है।

प्राण प्रतिष्ठा का शाब्दिक अर्थ तो प्रतिमा में प्राण की स्थापना करना है लेकिन इस अनुष्ठान का धार्मिक महत्व इसके अर्थ से ज्यादा है।हिंदू धर्म में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान है, जो किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवता या देवी का आह्वान कर उसे पवित्र या दिव्य बनाने के लिए किया जाता है। 'प्राण' शब्द का अर्थ है जीवन जबकि प्रतिष्ठा का अर्थ है 'स्थापना। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है 'प्राण शक्ति की स्थापना' या 'देवता को जीवंत स्थापित करना।' शास्त्रों में प्राण प्रतिष्ठा की एक प्रकिया है। किसी भी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करने के लिए कई रीति-रिवाजों का पालन करना पड़ता है। राम मंदिर के लिए, प्राण प्रतिष्ठा से पहले सात दिवसीय अनुष्ठान होगा। इसमें कई विधान शामिल हैं।

जो इस तरह है,....

16 जनवरी: प्रायश्चित्त और कर्मकूटि पूजन

17 जनवरी: मूर्ति का परिसर प्रवेश

18 जनवरी (सायं)-तीर्थ पूजन, जल यात्रा, जलाधिवास और गंधाधिवास

19 जनवरी (सायं): धान्याधिवास

-20 जनवरी (प्रातः): शर्कराधिवास, फलाधिवास

-20 जनवरी (सायं): पुष्पाधिवास

-21 जनवरी (प्रातः): मध्याधिवास

जानते हैं 18 जनवरी को होने वाले अधिवास के बारे में

18 जनवरी (सायं): तीर्थ पूजन, जल यात्रा, जलाधिवास और गंधाधिवास

प्राण प्रतिष्ठा से पहले कई अधिवास आयोजित किए जाते हैं। अधिवास वह प्रक्रिया है, जिसमें मूर्ति को कई सामग्रियों में डुबोया जाता है। इसके तहत एक रात के लिए, मूर्ति को पानी में रखा जाता है, जिसे जलाधिवास कहा जाता है। फिर इसे अनाज में डुबोया जाता है, जिसे धन्यधिवास कहा जाता है। कि ऐसी मान्यता है कि मूर्ति निर्माण के क्रम में जब किसी मूर्ति पर शिल्पकार के औजारों से चोटें आ जाती हैं, तो वह अधिवास के दौरान ठीक हो जाती हैं। मान्यता है कि यदि मूर्ति में कोई दोष है, या पत्थर अच्छी गुणवत्ता का नहीं है, तो अधिवास के क्रम में इसका पता चल जाता है। इसके बाद मूर्ति को अनुष्‍ठानिक स्‍नान कराया जाता है। इस दौरान अलग-अलग सामग्रियों से प्रतिमा का स्नान अभिषेक कराया जाता है। इस संस्कार में 108 प्रकार की सामग्रियां शामिल हो सकती हैं, जिनमें पंचामृत, सुगंधित फूल व पत्तियों के रस, गाय के सींगों पर डाला गया पानी और गन्‍ने का रस शामिल होता है।

तीर्थ पूजन- मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रायश्चित्त और कर्मकूटि पूजन,मूर्ति का परिसर प्रवेश कराया जाता। फिर उसके बाद तीर्थ पूजन का समय आता है। इसमें सभी तीर्थों धामों और सभी पवित्र नदियों का आहवान किया जाता है।

जल यात्रा-तीर्थ पूजन के बाद जल यात्रा निकाली जाती है, इसमें कलश में जल भरकर यात्रा की जाती है। इस दौरान प्रतिष्ठा मे ंरखी जाने वाली मूर्ति को 11 या 21 या 108 कलश के जल के साथ नगर भ्रमण कराया जाता है।

जलाधिवास-तीर्थ पूजन , जल यात्रा के बाद जलाधिवास होता है। यह क्रम में मूर्ति को जल के अंदर रखा जाएगा। और मंत्रोंच्चार से उसे जीवन किया जायेगा। इससे मूर्ति में तेज आता है।

गंधाधिवास-तीर्थ पूजन , जल यात्रा, जलाधिवास के गंधाधिवास किया जाता है। इस विधान में सुंगधित द्रव्य और पुष्पों में मूर्ति को रखा जाता है। ये सारे विधान 18 जनवरी को किये जायेंगे।

औषधाधिवास- मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रायश्चित्त और कर्मकूटि पूजन,मूर्ति का परिसर प्रवेश कराया जाता। फिर उसके बाद तीर्थ पूजन , जल यात्रा, जलाधिवास के गंधाधिवास किया जाता है। फिर मूर्ति को सभी औषधियों के बीच डूबो कर रखा जाता है।

केसराधिवास-तीर्थ पूजन , जल यात्रा, जलाधिवास के गंधाधिवास औषधाधिवास के बाद केसरधिवास होगा। इसमें केसर मे मूर्ति को डूबो कर रखा जाता है।

घृताधिवास- घृतधिवास का मतलब होता है मूर्ति को घी में डूबोकर रखना, ये सब मूर्ति में प्राण वायु के संचार का विधान है।

धान्याधिवास-धान्यधिवास में सभी तरह के अनाजों में मूर्ति को दबाकर रखा जाता है। इसके बाद शर्कराधिवास, फलाधिवास होता है जो अगले दिन होता है।ये सारे विधान 19 जनवरी को किये जायेंगे।

इस तरह अनुष्ठानिक स्नान कराने के बाद प्राण प्रतिष्ठा से पहले प्रतिमा को जगाने का समय आता है। इस दौरान कई मंत्रों का जाप किया जाता है, जिसमें विभिन्न देवताओं से मूर्ति के विभिन्न हिस्सों को चेतन करने के लिए कहा जाता है। सूर्य देवता से आंखें, वायु देवता से कान, चंद्र देवता से मन आदि जागृत करने का आह्वान होता है।जिस तरह इस सृष्टि में पंच तत्व समाहित है प्राण प्रतिष्ठा के विधान में उनका ध्यान रखा जाता है

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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