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Ram Navami 2022 Kab Hai : रामनवमी कब है, जानिए शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और महत्व
Ram Navami 2022 Kab Hai: त्रेतायुग में अयोध्या के राजा दशरथ के घर चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को श्रीरामजी का जन्म हुआ था। धर्म ग्रंथों के मतानुसार यह भगवान विष्णु का सातवां अवतार था । तब से लेकर आज तक इस तिथि को राम जन्मोत्सव के रूप में मनाते है।
Ram Navami 2022 Kab Hai
रामनवमी कब है
त्रेतायुग में अयोध्या ( Ayodhya )के राजा दशरथ के घर चैत्र मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को श्रीरामजी का जन्म हुआ था। धर्म ग्रंथों के मतानुसार यह भगवान विष्णु का सातवां अवतार था । तब से लेकर आज तक इस तिथि को राम जन्मोत्सव के रूप में मनाते है। इस साल भी रामनवमी का त्योहार 10 अप्रैल 2022 रविवार ( Sunday) को मनाया जायेगा।
चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रत्येक तिथि का धर्मशास्त्रों में विशेष महत्व है। इसकी प्रतिपदा से चैत नवरात्रि शुरू होती है। इस दौरान नवरात्रि के साथ रामनवमी ( Ram navami) होने से महत्व दोगुना हो जाता है। कहा गया है कि त्रेता युग में इसी दिन मर्यादा पुरुषोत्म राम का जन्म हुआ था। रघुकुल शिरोमणि महाराज दशरथ और महारानी कौशल्या के आंगन में दिन के 12 बजे श्रीरामजी की किलकारी गुजी थी।
जिसे देखकर सब विस्मित हो गए थे। उस वक्त उनके सौंदर्य और तेज को देखकर किसी के नेत्र तृप्त नहीं हो रहे थे। श्रीराम के जन्मोत्सव को देखकर देवलोक भी अवध के सामने फीका लग रहा था। देवता, ऋषि, किन्नर, चारण सभी जन्मोत्सव में शामिल होकर आनंद उठा रहे थे। उसी समय से हर साल चैत्र शुक्ल नवमी को राम जन्मोत्सव मनाया जाता हैं । इस दिन को ही रामनवमी कहते है।
रामनवमी शुभ मुहूर्त काल
भगवान राम का जन्म नवमी को दोपहर में हुआ था इसलिए इस दिन दोपहर में पूजा का विधान है
श्रीराम जन्म का मध्याह्न समय 12.32 बजे
नवमी प्रारंभः 01.23 PM (10 अप्रैल, रविवार, 2022) से
नवमी समाप्तः 03.15 PM (11 अप्रैल, सोमवार, 2022) तक। इस दिन पूजा का विशेष मुहूर्त 11.15 से 1.32 तक रहेगा।
रामनवमी की कथा व रामचरित मानस की रचना
पुराणों के अनुसार रामनवमी के दिन राम जी का जन्म राक्षसों का संहार और रावण के वध के लिए हुआ था। उस वक्त शिवभक्त रावण का अत्याचार चरम पर था। उसके अत्याचार से पूरी जनता व देवतागण त्रस्त थी, यहाँ तक की रावण ने ब्रह्मा जी से अमर होने का वरदान ले लिया था। उसके अत्याचार से तंग होकर देवतागण भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना करने लगे। तब भगवान विष्णु से ने सूर्यवंशी दयालू प्रतापी राजा दशरथ के घर कौशल्या की कोख से जन्म लिये। सातवे अवतार के रूप में भगवान विष्णु ने राम के रूप में रावण को परास्त करने हेतु जन्म लिया। उस दिन चैत्र की नवमी तिथि थी उसी दिन से रामनवमी शुरू हुई।रामनवमी के दिन ही गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना का श्रीगणेश किया था। इस दिन जो व्यक्ति दिनभर उपवास रहकर और रात को जागरण करता है, भगवान श्रीराम की पूजा करता है, औरअपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार दान-पुण्य करता है।
वह अनेक जन्मों के पापों को भस्म करने में समर्थ होता है। ये त्योहार हर दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रि का समापन भी होता है। इस तथ्य से ज्ञात होता है कि भगवान श्री रामजी ने भी देवी दुर्गा की पूजा की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा ने उन्हें धर्म युद्ध में उन्हें विजय प्राप्त हुई थी।
रामनवमी पर कैसे करें पूजन, दान पुण्य
इस दिन सुबह स्नानादि आदि कर्म के बाद श्री राम की षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करने की परंपरा है। इस दिन कुछ घरों में अष्टमी से नवमी तक अखण्ड पाठ या रामायण का आयोजन किया जाता है, वहीं कुछ घरों में राम रक्षा स्त्रोत पढ़ा जाता है। रामनवमी के दिन आठों प्रहर उपवास रखने का विधान है। यानी सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत के सभी नियमों का पालन करना जरूरी होता है।
रामनवमी को हिंदू धर्म का बहुत ही पवित्र दिन माना जाता है।पूरे दिन पवित्र मुहूर्त का होता है। इस दिन पूजन, दान और पुण्य करने से मोक्ष मिलता हैं। भगवान श्रीराम की पूजा-अर्चना करने से विशेष पुण्य मिलता है। इस दिन नए घर, दुकान या प्रतिष्ठान में प्रवेश किया जा सकता है।
रामनवमी के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करके रामजी की मूर्ति को गंगाजल स्नान कराएं। फिर उस पर कुंकुम, हल्दी, चंदन का तिलक लगाए। भगवान राम को खीर या मेवे का भोग लगाएं। भगवान राम की पूजा करते वक्त रामरक्षस्त्रोत का पाठ अवश्य करें। राममंत्र, सुंदरकांड का पाठ भी अवश्य करना चाहिए। नवमी के दिन कुंवारी कन्याओं को भोजन कराएं। किसी प्रकार के शुभ कार्य करने की दृष्टि से ये एक महत्वपूर्ण दिन है। इससे अक्षय पुण्य मिलता है। किसी भी नए कार्य की शुरुआत इस दिन से किया जा सकता हैं। रामनवमी के दिन पास के किसी राम मंदिर में जाकर दिया जलाएं और प्रसाद चढ़ाएं।
राममनवमी का व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को सुबह उठना चाहिए। घर की सफाई कर गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए। इसके बाद स्नान करके व्रत का संकल्प लेना चाहिए। एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सतिया बनाकर एक जल से भरा गिलास रखना चाहिए और अपनी अंगुली से चांदी का छल्ला निकाल कर रखना चाहिए। इसे गणेशजी का प्रतीक माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूं-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व है।
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