Rama Ekadashi Ka Mahatva: रमा एकादशी, करे पापों का नाश

Rama Ekadashi Ka Mahatva: कहते हैं कि इस दिन की पूजा से कान्हा से साक्षात्कार भी संभव हैं।इस एकादशी का व्रत रखने से पापों का नाश तो होता ही है,साथ में महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान भी मिलता है।

Sankata Prasad Dwived
Published on: 1 Nov 2024 1:51 PM GMT
Rama Ekadashi Ka Mathav in Hindi
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Rama Ekadashi Ka Mathav in Hindi  (photo: social media )

Rama Ekadashi Ka Mathav in Hindi: कार्तिक महीने के कृष्णपक्ष में पड़ने वाली एकादशी को रमा एकादशी कहते है।ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान कृष्ण की उपासना करने और व्रत रखने से मनवांछित कामना पूरी होती है।रमा एकादशी को रम्भा एकादशी भी कहते हैं।इस दिन वासुदेव श्री कृष्ण के केशव रूप की उपासना की जाती है।

कहते हैं कि इस दिन की पूजा से कान्हा से साक्षात्कार भी संभव हैं।इस एकादशी का व्रत रखने से पापों का नाश तो होता ही है,साथ में महिलाओं को सुखद वैवाहिक जीवन का वरदान भी मिलता है।

रमा एकादशी पूजा विधि

1-सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें और भगवान कृष्ण या केशव का पूजन करें।

2-पूजा करने के बाद मस्तक पर सफेद चन्दन लगाएं। इससे मस्तिष्क शांत रहेगा।

3-भगवान कृष्ण को पंचामृत, फूल और मौसमी फल अर्पित करें।

4-श्री कृष्ण के मन्त्रों का जाप करें।

5-पूजा के दौरान गीता का पाठ भी अवश्य करें।

6-एकादशी के दिन रात्रि में सोने का विधान नहीं है।

कहा जाता है कि एकादशी का पूर्ण फल प्राप्त करने के लिए रात्रि में जागरण करें।

7-एकादशी और द्वादशी के दिन दान पुण्य का कार्य करें।

8-खासतौर से भगवान के कार्यों में दान करना श्रेष्ठ माना जाता है।

9-द्वादशी के दिन व्रत का पारण करें।

रमा एकादशी व्रत कथा

पद्म पुराण से...युधिष्ठिर ने पूछा :जनार्दन !मुझ पर आपका स्नेह है,अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है ?भगवान श्रीकृष्ण बोले : राजन् ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में ‘रमा’ नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है । यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरने वाली है ।पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं,जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे ।अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करने वाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई ।राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया ।एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि:’एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे ।’

इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा :’प्रिये !अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो ।’ चन्द्रभागा बोली :प्रभो ! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते। प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी ।इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये ।

शोभन ने कहा :प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है ।मैं भी उपवास करुँगा ।दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा ।भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते होते उनका प्राणान्त हो गया । राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया ।चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।

नृपश्रेष्ठ !उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए ।वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे ।एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये,जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये ।

राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये ।शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया ।फिर क्रमश : अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा ।

सोमशर्मा ने कहा : राजन् ! वहाँ सब कुशल हैं ।आश्चर्य है ! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसी ने भी नहीं देखा होगा। बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई? शोभन बोले : द्विजेन्द्र ! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है,उसी का व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है ।

ब्रह्मन् ! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है ।आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा ।शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया ।

सोमशर्मा बोले :शुभे ! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा ।इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है ।तुम उसको स्थिर बनाओ ।

चन्द्रभागा ने कहा :ब्रह्मर्षे ! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है। आप मुझे वहाँ ले चलिये ।मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी ।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं :राजन् ! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये ।वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली । इसके बाद वह पति के समीप गयी ।

अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई ।उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया ।तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा:’नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये ।जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी, तब से लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा ।’

नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है ।

राजन् ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है ।यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करने वाली है ।

एकादशी सेवा

मान्यता है की रमा एकादशी के शुभ अवसर पे धर्म कार्य में दान-पुण्य का कार्य करने से सुख और सौभाग्य की प्राप्ति होती है और घर में सुख, शांति और समृद्धि की वृद्धि होती हैं।इसलिए इस शुभ एकादशी पे धर्म कार्य में दान पुण्य का कार्य अवश्य करें। भगवान श्री विष्णु की कृपा से संपूर्ण सृष्टि का कल्याण हो,सभी का जीवन संकट मुक्त, सुख-समृद्धि एवं आरोग्यता से परिपूर्ण हो,यही प्रार्थना है।

( लेखक प्रख्यात ज्योतिषाचार्य हैं ।)

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