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Bhagwan Shri Ram Story: कैकेई ने इसलिए माँगा था राम के लिए वनवास

Bhagwan Shri Ram Story: ऐसा अमृत के समान सुखप्रद वचन सब नहीं सुना सकते। तूने यह वचन सुनाया है इसके लिए तू जो चाहे सो पुरस्कार मांग ले मैं तुझे देती हूं।

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Published on: 11 March 2024 10:45 AM GMT
Ramayan Katha Manthare
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Ramayan Katha Manthare

Bhagwan Shri Ram Story: मंथरे! तूने मुझको यह बड़ा ही प्रिय संवाद सुनाया है, इसके लिए मैं तेरा और क्या उपकार करूं? यद्यपि भरत को राज्य देने की बात हुई थी, फिर भी राम और भरत में मैं कोई भेद नहीं देखती। मैं इस बात से बहुत प्रसन्न हूं कि महाराज कल राम का राज्याभिषेक करेंगे।

हे प्रिय वादिनी! राम के राज्याभिषेक संवाद सुनने से बढ़कर मुझे अन्य कुछ भी प्रिय नहीं है। ऐसा अमृत के समान सुखप्रद वचन सब नहीं सुना सकते। तूने यह वचन सुनाया है इसके लिए तू जो चाहे सो पुरस्कार मांग ले मैं तुझे देती हूं।

इस पर मंथरा गहने को फेंक कर कैकई को बहुत कुछ उल्टा-सीधा समझाती है; परंतु फिर भी केकई तो श्री राम के गुणों की प्रशंसा करती हुई यही कहती है कि श्री रामचंद्र धर्मज्ञ, गुणवान, सत्यव्रती और पवित्र हैं। वे राजा के जेष्ठ पुत्र हैं, अतएव हमारी कुल प्रथा के अनुसार उन्हें युवराज पद का अधिकार है। मंथरा तू ऐसे रामचंद्र के अभिषेक की बात सुनकर क्यों दुखी हो रही है? ऐसे समय में तू जल क्यों रही है? इस भावी कल्याण में तू क्यों दुख कर रही है?

मंथरे मुझे भरत जितना प्यारा है उससे कहीं अधिक प्यारे राम है; क्योंकि राम मेरी सेवा कौशल्या से भी अधिक करते हैं। राम को यदि राज मिलता है तो वह भरत को ही मिलता है ऐसा समझना चाहिए। क्योंकि राम सब भाइयों को अपने ही समान समझते हैं।

इस पर जब मंथरा महाराज दशरथ की निंदा करके केकई को फिर उभाडने लगी, तब तो केकई ने बड़ी बुरी तरह उसे फटकार दिया।

पुनि अस कबहु कहसि घरफोरी

तौ धरि जीभ कढावउ तोरी॥


इस प्रसंग से पता लगता है कि केकई श्रीराम को कितना अधिक प्यार करती थी और उन्हें श्रीराम के राज्यभेषक में कितना बड़ा सुख था।

परंतु विचार करने की बात है कि श्रीराम को इतना चाहने वाली परम सुशीला केकई ने राज्य लोभ से ऐसा अनर्थ क्यों किया । और राम तथा दशरथ की निंदा करने पर, भरत को राज्य देने की प्रतिज्ञा जानने पर भी, मंथरा को " घर फोरी " कहकर उसकी जीभ निकलवाना चाहती थी, वही जरा सी देर में इतनी कैसे बदल जाती है कि वे राम को चौदह साल के लिए बनके दुख सहन करने के लिए भेज देती है । और भरत के शील-स्वभाव को जानते हुए भी उनके लिए राज्य का वरदान चाहती है?

इसमें रहस्य है; वह रहस्य यह है कि केकई का जन्म भगवान श्री राम की लीला में प्रधान कार्य करने के लिए हुआ था। केकई भगवान श्रीराम को परब्रह्म परमात्मा समझती थी और श्रीराम के लीला कार्य में सहायक बनने के लिए उन्होंने श्री राम की रूचि के अनुसार यह जहर की घूंट पी थी। यदि केकई श्री राम को वन भिजवाने में कारण न बनती तो श्रीराम का लीला कार्य संपन्न ना होता। न सीता हरण होता और न राक्षस राज रावण अपनी सेना सहित मरता । श्रीराम ने अवतार धारण किया दुष्टों का विनाश करके साधुओं का परित्राण करने के लिए।

पर इस के लिए भी कारण चाहिए, वह कारण था सीता हरण। इसके सिवा अनेक शाप वरदानो को भी सच्चा करना था । परंतु वन गए बिना सीता हरण होता कैसे ? राज्याभिषेक हो जाता तो वन जाने का कोई कारण नहीं रह जाता। महाराज दशरथ की मृत्यु का समय समीप आ पहुंचा था,उनके लिए भी किसी निमित्त की रचना करनी थी । अतएव इस निमित्त के लिए देवी केकई का चुनाव किया गया और महाराज दशरथ की मृत्यु एवं रावण का वध इन दोनों कार्यों के लिए केकई के द्वारा राम बनवास की व्यवस्था कराई गई।

Shalini Rai

Shalini Rai

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