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Ramayan Katha: भगवान के लंका में प्रवेश करने का आध्यात्मिक विवेचना
Ramayan Katha: जिनका सदुपयोग तथा दुरुपयोग दोनों हो सकता है।परतंत्रता की अनुभूति में व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है तथा स्वतंत्रता के अतिरेक में व्यक्ति अत्याचार कर सकता है
Ramayan Katha: लंका से लौटकर हनुमान जी प्रभु श्रीराम से कहते हैं मेरे मन में यह दुविधा थी कि लंका जलाना है कि नहीं संत की बात माने या भगवान की।लेकिन रावण ने जब कहा कि बंदर को मारा तो नहीं जाएगा, पर उसकी पुँछ में कपड़ा लपेट करके, घी तेल डाल करके आग लगा दो, तो मैं समझ गया कि लगता है त्रिजटा का स्वप्न ही ठीक है।क्योंकि लंका जलाने के लिए न तो मेरे पास तेल था, न कपड़ा और न ही आग,परंतु वह प्रबंध भी आपने किसी और से न कराकर रावण से ही करा दिया।मैं तो समझ रहा था कि विभीषण के द्वारा ही आपने मेरी रक्षा की।लेकिन सत्य तो यह है कि रावण के द्वारा भी आप अपना कार्य करा लेते हैं।इसलिए आपने रावण को ऐसी प्रेरणा कर दी वस्तुतः स्वतंत्रता तथा परतंत्रता के रूप में अंतःकरण की ये विभिन्न स्थितियों है।जिनका सदुपयोग तथा दुरुपयोग दोनों हो सकता है।परतंत्रता की अनुभूति में व्यक्ति आत्महत्या कर सकता है तथा स्वतंत्रता के अतिरेक में व्यक्ति अत्याचार कर सकता है।पर उचित यह है कि दोनों का सदुपयोग होना चाहिए।
अगर स्वतंत्रता है तो हृदय को अयोध्या बनाकर,उसमें भगवान को प्रकट कीजिए और यदि अंतःकरण में परतंत्रता है तो भी कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि मथुरा तो बनी बनाई है ही जब भगवान श्रीराम लंका में पहुंचे, तो उस समय प्रभु की झांकी को देखकर तुलसीदासजी ने कहा -
धन्य ते नर एहिं ध्यान जे रहत सदा लयलीन।
वे मनुष्य धन्य हैं जो सर्वदा इस ध्यान में तल्लीन रहते हैं।
भगवान श्रीराघवेंद्र ने तुलसीदासजी से पूछा कि आपने ऐसा वाक्य मेरे लिए न तो अयोध्या में लिखा,न मिथिला में और न हीं चित्रकूट की किसी झांकी के लिए कहा,किंतु लंका में आपको इतना आनंद क्यों आया गोस्वामीजी ने कहा,महाराज इसके पीछे मेरा स्वार्थ था। क्योंकि अयोध्या वाला रूप यदि हम हृदय में बसाना चाहें,तो हृदय को पहले अयोध्या बनाना पड़ेगा इसी तरह से अगर मिथिला या चित्रकूट वाली झांकी हृदय में बसानी हो,तो उससे पहले हृदय को मिथिला या चित्रकूट बनाना पड़ेगा।लेकिन सत्य यह है कि हृदय को अयोध्या मिथिला अथवा चित्रकूट बनाना आसान नहीं है।पर जब मैंने देखा कि आप लंका में भी बिना बुलाए आ गए तो मैं निश्चिंत हो गया कि हृदय को लंका बनाना नहीं है,वह तो पहले से ही बनी-बनाई है।आप लंका में भी आ सकते हैं।यह हमारे लिए बहुत बड़ा आश्वासन है।