TRENDING TAGS :

Aaj Ka Rashifal

Ramcharitmanas Katha: जै सियाराम: नवरात्र विशेष श्रृंखला- रचि महेस निज मानस राखा।।तीन।

Ramcharitmanas Katha: यह समस्त जीवों के कल्याण की कथा है। कथा के आरंभ में जब गुरु की वंदना के साथ वह महात्म्य का वर्णन करते हैं तो उसमें भी चार तत्वों की प्राप्ति की बात करते है

Sanjay Tiwari
Written By Sanjay Tiwari
Published on: 17 April 2024 9:31 PM IST
Ramcharitmanas Katha
X

 Ramcharitmanas Katha 

Ramcharitmanas Katha: श्रीरामचरित मानस में चार का अतिमहत्व है। चार वेद। चार पुरुषार्थ। चार वर्ण। चार आश्रम। महाराज दशरथ के चार पुत्र। स्वयं गोस्वामी जी स्वान्तः सुखाय रघुनाथ गाथा लिख रहे हैं। जब रामकथा का ज्ञान उन्हें था ही तो कथा का सुख तो उनके अंतःकरण में पहले से ही था। विद्वान आचार्यों ने स्व के चार अर्थ बताए है। स्व अर्थ आत्म । स्व अर्थात आत्मीय। स्व अर्थात जाति। स्व अर्थात सेवक। तात्पर्य यह कि आत्म यानी स्वयं के अलावा अपने सभी आत्मीय, अपनी समस्त मानव जाति और सृष्टि में एक दूसरे की सेवा में लगे समस्त चर अचर के सुख और कल्याण के लिए भगवान शिव के मानस में रची जा चुकी कथा को गोस्वामी जी ने लोकभाषा में व्यक्त किया है। यह समस्त जीवों के कल्याण की कथा है। कथा के आरंभ में जब गुरु की वंदना के साथ वह महात्म्य का वर्णन करते हैं तो उसमें भी चार तत्वों की प्राप्ति की बात करते है।

बंदउँ गुरुपद पदुम परागा।

सुरुचि, सुबास, सरस अनुरागा।।

चार तत्व यानी सुरुचि, सुबास अर्थात सुगंध और सरस के साथ अनुराग की प्राप्ति। रुचि अर्थात चाह सुंदर हो। शरीर मे सत्व की उपस्थिति हो। जीवन मे भगवान की भक्ति से रस हो। भगवान रसोवैसः। जीवन मे अनुराग हो। यह अनुराग घर परिवार से राग को खत्म कर के नही बल्कि राग में रहते हुए हो। राग से अनुराग तक सगुण साकार से जुड़ने का सुख और आनंद मिले। इसी के आगे की यात्रा वैराग्य की होती है जो निर्गुण निराकार से जोड़ती है। अनुराग की महत्ता को गोस्वामी जी ने कई बार निरूपित किया है। भगवान शंकर और गरुण जी के संवाद में वह कहते है-

मिलहिं न रघुपति बिनु अनुरागा।।

यह शिवसूत्र है। इसी की स्थापना में मानस की गंगा प्रवाहित हो रही है। महाराज जनक को विदेह कहा जाता है। वह निर्गुण निराकार ब्रह्म के परम उपासक हैं लेकिन वह जब ब्रह्म को सगुण साकार रूप में देखते हैं तो वैराग्य से एक पग नीचे अनुराग में उतार पड़ते है। राम को देखने के बाद वह बेचैन होकर विश्वामित्र जी से पूछने लगते है-

इन्हहि बिलोकत अति अनुरागा।

बरबस ब्रह्म सुखहिं मन त्यागा।।

यानी सुरुचि, सुबास, सरस और अनुराग की प्राप्ति के लिए गुरु नितांत आवश्यक है।

गुरु बिनु भवनिधि तरइ न कोई

जो बिरंचि संकर सम होइ।।

आजकल लोग गुरु की महत्ता को जीवन से गौण कर रहे हैं। यह उचित नही है। जीवन मे मार्गदर्शक और अभिभावक एक ऐसे तत्व की अत्यंत आवश्यकता है जिससे मन के संशय मिटाने में सहयोग मिले और उसका एक डर, उसकी मर्यादा के भय भी उपस्थित हो।मानस में चार की संख्या को अति महत्व दिया गया है। गोस्वामी जी स्वयं मानस को एक ऐसे सरोवर की उपमा देते हैं जिसके चार घाट हैं। इसमे राम के जीवन और उनकी लीला की कथा को चार वक्ता अलग अलग चार प्रकार से कह रहे है। गोस्वामी जी स्वयं काशी के अस्सी घाट पर गंगा के सम्मुख कथा का गान करते हुए इस घाट को शरणागति की संज्ञा देते है। जो कथा वह सुना रहे है उस कथा को उन्होंने वहां से प्राप्त किया है जिस कथा को प्रयागराज में याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज जी को सुना रहे हैं। यह दूसरा घाट है प्रयाग , इसको कर्मकांड घाट कहा गया है। याज्ञवल्क्य जी उस कथा को सुना रहे है जिसको भगवान शिव ने माता पार्वती को कैलाश में सुनाया है। यह ज्ञान घाट है। कागभुशुण्डि जी इसी कथा को नीलगिरी पर्वत पर सुना रहे हैं, श्रोता हैं पक्षियों के राजा गरुण जी। चार घाट, चार वक्ता , चार श्रोता।

बाल कांड के 36वें दोहे में गोस्वामी जी लिखते है-

सुठि सुंदर संबाद बर ,बिरचे बुध्दि बिचारि ।

तेइ एहि पावन सुभग सर घाट मनोहर चारि ।।

गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस की तुलना एक सरोवर से करते है। जिस प्रकार सरोवर में चार घाट होते है- गौघाट ,पंचायती घाट, राजघाट, पनघट (स्त्री घाट )। गौघाट अर्थात् सबके लिए सुलभ दीन हीन सबके लिए, पंचायती घाट अर्थात् जनसाधारण के लिए उपलब्ध, राजघाट अर्थात् विशेष जन के लिए आरक्षित, पनघट(यहाँ पर पनघट का विशेष अर्थ है- प्रण पूर्ण , ऐसी पतिव्रता जो पराये पुरूष का छाया भी न स्पर्श करें) सती नारियों के लिए आरक्षित घाट । मानस सरोवर के चार घाट, चार संवाद। शिव-पार्वती संवाद को ज्ञान घाट कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के राजघाट से किया गया है। कागभुशुण्डि -गरूड़ संवाद को भक्ति यानि उपासना घाट कहा गया है तथा इसकी तुलना सरोवर के पनघाट से किया गया है। याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद को मानस में कर्म घाट कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के पंचायती घाट से किया गया है । तुलसीदास (स्वयं)- संतसमाज को दैन्य घाट ( दीनता के भाव से ) कहा गया है और इसकी तुलना सरोवर के गौघाट से किया गया है।श्री रामचरितमानस में विभिन्न गूढ़ शब्दो व भावो का समावेश गोस्वामी जी ने किया है उन्ही प्रसंगों में से एक है ये रामचरितमानस के चार घाट । विद्वतजन कहते है , रामकथा का प्रथम वर्णन भगवान भोलेनाथ ने मां भवानी के समक्ष प्रस्तुत किया -

रचि महेस निज मानस राखा

पाइ सुसमय सिवा सन भाखा ॥

परन्तु मानस में कथा का क्रम देखें तो कथा कुछ इस प्रकार चलता है। गोस्वामी जी संत समाज को कथा सुनाते है तो याज्ञवल्क्य भारद्वाज संवाद का आधार लेते है और जव याज्ञवल्क्य जी कथा सुनाते है तो शिव पार्वती संवाद का आधार लेते है और जब शिव जी माता पार्वती को कथा सुनाते है तो कागभुशुण्डि गरूड़ संवाद को आधार बनाते है।किसी किसी के मन में शंका पैदा होती है ऐसा क्यों ? जिज्ञासु जन विज्ञ हो कि रामचरितमानस में गोस्वामी जी ने चार कल्प की कथा को एकसाथ पिरोया है । यह ध्यान देने वाला तथ्य है कि मानस के चार घाट अर्थात् चार संवाद में चार कल्प की रामकथा है । संवाद दोनो पक्ष से हो रहा है । जिज्ञासु प्रश्न करते है विज्ञ समाधान करते है । चारो जिज्ञासु का उद्देश्य राम को जानना ( राम कवन मैं पूछव तोही) है। यह कितनी सुंदर स्थापना है कि सरोवर में जल किसी भी घाट से लिया जाय, उसके स्वाद और प्रभाव में कोई अलगाव नही होता। इसीलिए गोस्वामी जी पहले ही लिख देते है-

सीय राम मैं सब जग जानीं।

जिसे प्यास लगी हो वह किसी घाट से जल लेकर अपनी प्यास बुझा ले। सरोवर के जल को चारो घाटों के माध्यम से प्राप्त कर सकते है । जो जैसा पाना चाहे सरोवर का जल सुलभ होता है । रामचरितमानस रूपी सरोवर में राम रूपी शीतल पावन जल को पाने का अर्थात् राम को जानने समझने के लिए चार संवाद (जिसे चार घाट कहा गया है ) है । ये चार घाट की जो महत्ता है वो हमें राम को पाने का मार्ग भी बताते है। ज्ञान प्राप्ति के माध्यम से , कर्मरत रहकर, उपासना द्वारा या फिर दीन भाव से याचक बनकर । आप जैसा पाना चाहे राम सर्व व्यापी है । रामचरितमानस में रामघाट ,ज्ञानघाट ,भक्ति घाट , मुक्ति घाट ,वैराग्य घाट ,नाम घाट आदि भावों का भी दर्शन होते है परन्तु जब जहाँ पर जिस भाव से आया है उसे वहीं उसी भाव से ग्रहण करना चाहिए । अंत में बस यही कहना चाहूंगा कि सभी प्रसंगों दृषटान्तों का मानस में एक ही उद्देश्य है मानव को सन्मार्ग के लिए प्रेरित करना और मधुमय जीवन प्रदान कर अर्थ,धर्म, काम ,मोक्ष के पुरूषार्थ को प्राप्त करने में सहायक बनना।

चार घाट वाले इस कथा सरोवर के दर्शन कराते हुए गोस्वामी जी लिखते हैं-

सप्त प्रबंध सुभग सोपाना।

ग्यान नयन निरखत मन माना॥

रघुपति महिमा अगुन अबाधा।

बरनब सोइ बर बारि अगाधा॥

सात काण्ड ही इस मानस सरोवर की सुंदर सात सीढ़ियाँ हैं, जिनको ज्ञान रूपी नेत्रों से देखते ही मन प्रसन्न हो जाता है। श्री रघुनाथजी की निर्गुण (प्राकृतिक गुणों से अतीत) और निर्बाध (एकरस) महिमा का जो वर्णन किया जाएगा, वही इस सुंदर जल की अथाह गहराई है।

राम सीय जस सलिल सुधासम।

उपमा बीचि बिलास मनोरम॥

पुरइनि सघन चारु चौपाई।

जुगुति मंजु मनि सीप सुहाई॥

रामचन्द्रजी और सीताजी का यश अमृत के समान जल है। इसमें जो उपमाएँ दी गई हैं, वही तरंगों का मनोहर विलास है। सुंदर चौपाइयाँ ही इसमें घनी फैली हुई पुरइन (कमलिनी) हैं और कविता की युक्तियाँ सुंदर मणि (मोती) उत्पन्न करने वाली सुहावनी सीपियाँ हैं।

छंद सोरठा सुंदर दोहा।

सोइ बहुरंग कमल कुल सोहा॥

अरथ अनूप सुभाव सुभासा।

सोइ पराग मकरंद सुबासा॥

जो सुंदर छन्द, सोरठे और दोहे हैं, वही इसमें बहुरंगे कमलों के समूह सुशोभित हैं। अनुपम अर्थ, ऊँचे भाव और सुंदर भाषा ही पराग (पुष्परज), मकरंद (पुष्परस) और सुगंध हैं॥

सुकृत पुंज मंजुल अलि माला।

ग्यान बिराग बिचार मराला॥

धुनि अवरेब कबित गुन जाती।

मीन मनोहर ते बहुभाँती॥

सत्कर्मों (पुण्यों) के पुंज भौंरों की सुंदर पंक्तियाँ हैं, ज्ञान, वैराग्य और विचार हंस हैं। कविता की ध्वनि वक्रोक्ति, गुण और जाति ही अनेकों प्रकार की मनोहर मछलियाँ हैं।

अरथ धरम कामादिक चारी।

कहब ग्यान बिग्यान बिचारी॥

नव रस जप तप जोग बिरागा।

ते सब जलचर चारु तड़ागा॥

अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष- ये चारों, ज्ञान-विज्ञान का विचार के कहना, काव्य के नौ रस, जप, तप, योग और वैराग्य के प्रसंग- ये सब इस सरोवर के सुंदर जलचर जीव हैं

सुकृती साधु नाम गुन गाना।

ते बिचित्र जलबिहग समाना॥

संतसभा चहुँ दिसि अवँराई।

श्रद्धा रितु बसंत सम गाई॥

सुकृती (पुण्यात्मा) जनों के, साधुओं के और श्री रामनाम के गुणों का गान ही विचित्र जल पक्षियों के समान है। संतों की सभा ही इस सरोवर के चारों ओर की अमराई (आम की बगीचियाँ) हैं और श्रद्धा वसन्त ऋतु के समान कही गई है।



\
Shalini singh

Shalini singh

Next Story