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एक ऐसा गांव जहां 60 साल से नहीं हुई रामलीला, मंचन के दौरान हो जाती है मौत

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Published on: 28 Sep 2017 5:52 AM GMT
एक ऐसा गांव जहां 60 साल से नहीं हुई रामलीला, मंचन के दौरान हो जाती है मौत
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नोएडा: बिसरख ऋषि विश्रवा की तपोस्थली है। यहीं रावण का जन्म भी हुआ था। वेद पुराणों के अनुसार ऋषि विश्रवा उनकी तपोस्थली को शिव नगरी भी कहा जाता है। यह एक ऐसा धाम है, जहां 60 साल से कभी रामलीला का आयोजन नहीं किया गया।

दरअसल, 60 साल पहले इस गांव में पहली बार रामलीला का आयोजन किया गया था। रामलीला के बीच में जिस व्यक्ति के घर आयोजन हुआ, उसी का बेटा मर गया। कुछ समय बाद गांववालों ने फिर से रामलीला रखी। इस बार उसमें हिस्सा लेने वाले एक पात्र की मौत हो गई।

रावण की आत्मा की शांति के लिए होता है यज्ञ

यहां के लोगों के लिए दशहरा शोक का कारण है। दशहरा पर रावण का पुतला नहीं जलता, न रामलीला होती है। यहां रावण की आत्मा की शांति के लिए यज्ञ-हवन किए जाते हैं।

एक ऐसा गांव जहां 60 साल से नहीं हुई रामलीला, मंचन के दौरान हो जाती है मौत

साथ ही नवरात्रि के दौरान शिवलिंग पर बलि चढ़ाई जाती है। बिसरख धाम में रावण द्बारा स्थापित अष्टभुजी शिवलिंग विराजित है, जो की विश्व में ऐसा शिवलिंग और दूसरा कहीं भी नहीं है।

दशहरे पर मनाया जाता शोक

गाथाओं के मुताबिक बिसरख गांव रावण का पैतृक गांव है। यहां रावण मंदिर के साथ प्राचीन शिव मंदिर भी है। वहां के महंत रामदास बताते हैं कि रावण के पिता विश्रव ब्राह्मण थे। जब पूरा देश अच्छाई की बुराई पर जीत के रूप में रावण के पुतले का दहन करता है, तब इस गांव में खुशी का माहौल नहीं होता है। बिसरख गांव के लोग न रामलीला आयोजित करते हैं और न कभी रावण का दहन करते हैं। बल्कि, दशहरा पर यहां शोक मनाया जाता है।

एक ऐसा गांव जहां 60 साल से नहीं हुई रामलीला, मंचन के दौरान हो जाती है मौत

एक साल से नहीं हो सकी पूजा

9 अगस्त 2016 को अराजकतत्वों द्बारा रावण की मूर्ति के खंडित किए जाने के बाद जयपुर में दोबारा मूर्ति का निर्माण किया जा रहा है। मंदिर के महंत अशोका नंद ने बताया कि यहां स्थापित की जाने वाली मूर्ति दीपावाली को स्थापित की जाएगी। मूर्ति सात लाख की लागत से बनाई जा रही है।

20 भुजा वाली मूर्ति करीब सात फीट ऊंची है। इसका करीब 70 प्रतिशत काम पूरा किया जा चुका है। हालांकि रावण के प्रकोप का असर ग्रामीणों पर न पड़े। लिहाजा यहा अनवरत रूप से पूजा अर्चना की जाती है। लेकिन मूर्ति की स्थापना न होना भी किसी अभिशाप से कम नहीं है।

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