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Rudraksha Pahnane Ke Niyam: रुद्राक्ष पहनने के अनगिनत फायदे,जरा सी गलती, कर देगा सर्वनाश, पहनने से पहले जान लें ये बात

Rudraksha Pahnane Ke Niyam: रुद्राक्ष पहनने के नियम: रुद्राक्ष भगवान शिव के आंंसुओं से बना अद्भुत चीज है, जिसे धारण करने से चमत्कारिक फल मिलता है, जानिए इसकी उत्पत्ति महत्व और धारण करने का नियम

Suman Mishra। Astrologer
Published on: 17 July 2023 6:03 AM GMT
Rudraksha Pahnane Ke Niyam: रुद्राक्ष पहनने के अनगिनत फायदे,जरा सी गलती, कर देगा सर्वनाश, पहनने से पहले जान लें ये बात
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Rudraksh Ke Niyam सांकेतिक तस्वीर, सोशल मीडिया

Rudraksh Ke Niyam रुद्राक्ष के नियम: रुद्राक्ष (Rudraksh) शिव (Shiva)का अभिन्न अंग हैं जो शिव से प्रेम करते हैं, उन्हें रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष पहनने से मन मस्तिष्क शांत रहता है। रुद्राक्ष बहुद पवित्र होता है इसलिए इसे कभी अशुद्ध हाथों से नहीं छूना चाहिए। इसे हमेशा स्नान करने के बाद शुद्ध होकर ही धारण करना चाहिए। रुद्राक्ष धारण करते समय शिव जी के मंत्र ऊं नमः शिवाय का उच्चारण करना चाहिए. स्वयं का पहना हुआ रुद्राक्ष कभी भी किसी दूसरे को धारण करने को नहीं देना चाहिए

रूद्राक्ष भगवान शिव को बहुत ही प्रिय है। इसे पवित्र समझना चाहिए। रुद्राक्ष के दर्शन से, स्‍पर्श से तथा उसपर जप करने से वह समस्‍त पापों का का नाश होता है। भगवान शिव ने समस्‍त लोकों का उपकार करने के लिए देवी पार्वती के सामने रुद्राक्ष की महिमा का वर्णन किया था।

रुद्राक्ष धारण करने से ये चीजें नहीं आती पास

शिव महापुराण के अनुसार साधक को चाहिए कि वह निद्रा और आलस्‍य का त्‍याग करके श्रद्धा-भक्‍ति से सम्‍पन्‍न हो, सम्‍पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिये ऊपर लिखे मंत्रों द्वारा रुद्राक्षों को धारण करे। इसे देखकर भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी, शाकिनी तथा जो अन्‍य द्रोहकारी राक्षस आदि हैं, वे सब के सब दूर भाग जाते हैं।

पापों का नाश करने के लिए रुद्राक्ष धारण जरूर करना चाहिए। वह निश्‍चय ही सम्‍पूर्ण अभीष्‍ट मनोरथों का साधक है। भगवान शिव कहते हैं हे परमेश्‍वरी, लोक में मंगलमय रुद्राक्ष जैसा फलदायी दूसरी कोई नहीं है।

रुद्राक्ष कितने तरह के होते हैं

दो मुखी : दो मुखवाला रुद्राक्ष देवदेवेश्‍वर कहा गया है। वह सम्‍पूर्ण कामनाओं और फलों को देने वाला है।

तीन मुखी : तीन मुखवाला रुद्राक्ष सदा साक्षात् साधना का फल देने वाला है, उसके प्रभाव से सारी विद्याएं प्रतिष्‍ठित होती हैं।

चार मुखी : चार मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् ब्रह्मा का रूप है। वह दर्शन और स्‍पर्श से शीघ्र ही धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष - इन चारों पुरुषार्थों को देने वाला है।

पंच मुखी : पांच मुख वाला रुद्राक्ष साक्षात कालाग्‍निरुद्ररूप है। वह सब कुछ करने में समर्थ है। सबको मुक्‍ति देनेवाला तथा सम्‍पूर्ण मनोवांछित फल प्रदान करने वाला है। पंचमुख रुद्राक्ष समस्‍त पापों को दूर कर देता है।

षड् मुखी : छह मुखवाला रुद्राक्ष भगवान कार्तिकेय का स्‍वरूप है। यदि दाहिनी बांह में उसे धारण किया जाए तो धारण करने वाला मनुष्‍य ब्रह्महत्‍या आदि पापों से मुक्‍त हो जाता है।

सप्‍त मुखी : सात मुखवाला रुद्राक्ष अनंगस्‍वरूप और अनंग नाम से ही प्रसिद्ध है। उसको धारण करने से दरिद्र भी ऐश्‍वर्यशाली हो जाता है।

अष्‍ट मुखी : आठ मुखवाला रुद्राक्ष अष्‍टमूर्ति भैरवरूप है, उसको धारण करने से मनुष्‍य पूर्णायु होता है और मृत्‍यु के पश्‍चात शूलधारी शंकर हो जाता है।

नौ मुखी : नौ मुख वाले रुद्राक्ष को भैरव तथा कपिल-मुनि का प्रतीक माना गया है। साथ ही नौ रूप धारण करने वाली महेश्‍वरी दुर्गा उसकी अधिष्‍ठात्री देवी मानी गयी हैं। शिव कहते हैं, ''जो मनुष्‍य भक्‍तिपरायण हो अपने बायें हाथ में नौ मुख रुद्राक्ष को धारण करता है, वह निश्‍चय ही मेरे समान सर्वेश्‍वर हो जाता है - इसमें संशय नहीं है।''

दश मुखी : दस मुखवाला रुद्राक्ष साक्षात् भगवान विष्‍णु का रूप है। उसको धरण करने से मनुष्‍य की सम्‍पूर्ण कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।

ग्‍यारह मुखी : ग्‍यारह मुख वाला जो रुद्राक्ष है, वह रुद्ररूप है। उसको धारण करने से मनुष्‍य सर्वत्र विजयी होता है।

बारह मुखी : बारह मुखवाले रुद्राक्ष को केश प्रदेश में धरण करें। उसके धरण करने से मानो मस्‍तकपर बारहों आदित्‍य विराजमान हो जाते हैं।

तेरह मुखी : तेरह मुखवाला रुद्राक्ष विश्‍वेदेवों का स्‍वरूप है। उसको धारण करके मनुष्‍य सम्‍पूर्ण अभीष्‍टों को प्राप्‍त तथा सौभाग्‍य और मंगल लाभ करता है।

चौदह मुखी : चौदह मुखवाला जो रुद्राक्ष है, वह परम शिवरूप है। उसे भक्‍ति पूर्वक मस्‍तक पर धरण करें। इससे समस्‍त पापों का नाश हो जाता है।

रुद्राक्ष का महत्व

शास्त्रानुसार भगवान शिव ने माता पार्वती को रुद्राक्ष की पूरी महिमा बतायी थी। इसके अनुसार भगवान शिव मन को संयम में रखकर हजारों वर्षों तक घोर तपस्‍या में लगे रहे। एक दिन सहसा उनका मन क्षुब्‍ध हो उठा। वे सम्‍पूर्ण लोकों का उपकार करने वाले स्‍वतंत्र परमेश्‍वर है। उस समय वे लीलावश ही अपने दोनों नेत्र खोले, खोलते ही उनके नेत्र पुटों से कुछ जल की बूंदें गिरीं। आंसुओं की उन बूंदों से वहां रुद्राक्ष नामक वृक्ष पैदा हो गया।

शिव महापुराण के अनुसार, भक्‍तों पर अनुग्रह करने के लिए वे अश्रुबिन्‍दु स्‍थावर भाव को प्राप्‍त हो गये। वे रुद्राक्ष भगवान शिव ने विष्‍णुभक्‍त को और चारों वर्णों के लोगों को बांट दिया। भूतलपर अपने रुद्राक्षों को उन्‍होंने गौड़ देश में उत्‍पन्‍न किया। मथुरा, अयोध्‍या, लंका, मलयाचल, सह्यगिरि, काशी तथा अन्‍य देशों में उनके अंकुर उगाये गये।

शिवपुराण के अनुसार शिव की आज्ञा से वे (रुद्राक्ष) ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्‍य और शूद्र जाति के भेद से इस भूतलपर प्रकट हुए। रुद्राक्षों की ही जाति के शुभाक्ष भी हैं। उन ब्राह्मणादि जातिवाले रुद्राक्षों के वर्ण श्‍वेत, रक्‍त, पीत तथा कृष्‍ण हैं। मनुष्‍यों को चाहिये कि वे क्रमश: वर्ण के अनुसार अपनी जाति का ही रुद्राक्ष धारण करें।

ब्रह्मचारी, वानप्रस्‍थ, गृहस्‍थ और संन्‍यासी - सबको नियमपूर्वक रुद्राक्ष धारण करना उचित है। इसे धारण करने का सौभाग्‍य बड़े पुण्‍य से प्राप्‍त होता है। रुद्राक्ष शिव का मंगलमय लिंग विग्रह है। सूक्षम रुद्राक्ष को ही सदा प्रशस्‍त माना गया है। सभी आश्रमों, समस्‍त वर्णों, स्‍त्रियों और शूद्रों को भी भगवान शिव की आज्ञा के अनुसार सदैव रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। श्‍वेत रुद्राक्ष केवल ब्राह्मणों को ही धारण करना चाहिए। गहरे लाल रंग का रुद्राक्ष क्षत्रियों के लिए हितकर बताया गया है। वैश्‍यों के लिए प्रतिदिन बारंबार पीले रुद्राक्ष को धारण करना आवश्‍यक है और शूद्रों को काले रंग का रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। यह वेदोक्‍त मार्ग है।

रुद्राक्ष के नियम और कैेसे करें धारण

शिव महापुराण के अनुसार, जो रुद्राक्ष बेर के फल के बराबर होता है, वह उतना छोटा होने पर भी लोक में उत्‍तम फल देनेवाला होता है। जो रुद्राक्ष आंवले के फल के बराबर होता है, वह समस्‍त दु:खों का विनाश करने वाला होता है और जो बहुत छोटा होता है, वह सम्‍पूर्ण मनोरथों और फलों की सिद्धि करने वाला है। रुद्राक्ष जैसे-जैसे छोटा होता है, वैसे ही वैसे अधिक फल देने वाला होता है। एक बड़े रुद्राक्ष से एक छोटे रुद्राक्ष को विद्वानों ने दस गुना अधिक फल देने वाला कहा है।

समान आकार-प्रकार वाले चिकने, मजबूत, स्‍थूल, कण्‍टकयुक्‍त और सुंदर रुद्राक्ष अभिलाषित पदार्थों के दाता तथा सदैव भोग और मोक्ष देने वाले हैं। वहीं जिसे कीड़ों ने दूषित कर दिया हो, जो टूटा-फूटा हो, जिसमें उभरे हुए दाने न हों, जो व्रणयुक्‍त हों तथा जो पूरा-पूरा गोल न हो, इन पांच प्रकार के रुद्राक्षों को त्‍याग देना चाहिए।

शिव महापुराण के अनुसार इस जगत् में ग्‍यारह सौ रुद्राक्ष धारण करके मनुष्‍य जिस फल को पाता है उसका वर्णन सैकड़ों वर्षों में भी नहीं किया जा सकता। भक्‍तिमान् पुरुष साढ़े पांच सौ रुद्राक्ष के दानों का सुंदर मुकुट बना लें और उसे सिर पर धारण करें। तीन सौ साठ दानों को लंबे सूत्र में पिरोकर एक हार बना लें। वैसे-वैसे तीन हार बनाकर भक्‍ति परायण पुरुष उनका यज्ञोपवित तैयार करें और उसे यथास्‍थान धारण किये रहे।

सिरपर ईशान मंत्र से, कान में तत्‍पुरुष मंत्र से तथा गले और हृदय में अघोर मंत्र से रुद्राक्ष धारण करना चाहिए। विद्वान पुरुष दोनों हाथों में अघोर-बीजमंत्र से रुद्राक्ष धारण करें। उदर पर वामदेव मंत्र से पंद्रह रुद्राक्षों द्वारा गुंथी हुई माला धारण करे।

अंगो सहित प्रणव का पांच बार जप करके रुद्राक्ष की तीन, पांच या सात मालाएं धारण करें अथवा मूलमंत्र ''नम: शिवाय'' से ही समस्‍त रुद्राक्षों को धारण करें। रुद्राक्षधारी पुरुष अपने खान-पान में मदिरा, मांस, लहसुन, प्‍याज, सहिजन, लिसोड़ा आदि को त्‍याग दें।

जिसके ललाट में त्रिपुण्‍ड लगा हो और सभी अंग रुद्राक्ष से विभूषित हो तथा जो मृत्‍युंजय मंत्र का जप कर रहा हो, उसका दर्शन करने से साक्षात् रुद्र के दर्शन का फल प्राप्‍त होता है।

रुद्राक्ष के अनुसार मंत्र

एक मुखी - ॐ ह्रीं नम:

दो मुखी - ॐ नम:

तीन मुखी - ॐ क्लीं नम:

चार मुखी - ॐ ह्रीं नम:

पांच मुखी - ॐ ह्रीं नम:

छह मुखी - ॐ ह्रीं हुं नम:

सात मुखी - ॐ हुं नम:

आठ मुखी - ॐ हुं नम:

नौ मुखी - ॐ ह्रीं हुं नम:

दस मुखी - ॐ ह्रीं नम :

ग्‍यारह मुखी - ॐ ह्रीं हुं नम:

बारह मुखी - ॐ क्रौं क्षौं रौं नम:

तेरह मुखी - ॐ ह्रीं नम:

चौदह मुखी - ॐ नम:

इन चौदह मंत्रों द्वारा क्रमश: एक से लेकर चौदह मुखों वाले रुद्राक्ष को धरण करने का विधान है।

Suman Mishra। Astrologer

Suman Mishra। Astrologer

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