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Spirituality: सद्गुरु- अपनी इच्छाओं को कैसे साकार करें?

योग का पूरा विज्ञान पूरी तकनीक जिसे हम योग कहते है वो बस यही है। खुद को सृष्टि के एक टुकड़े से सृष्टि बनाना।

aman
Written By aman
Published on: 30 May 2022 12:46 PM IST
sadhguru says how to make your desires come true spirituality
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Sadhguru (प्रतीकात्मक चित्र) 

सदगुरु कहते हैं कि इस धरती पर इंसान ने जो कुछ भी बनाया है वो मूल रूप से पहले हमारे मन में बना था। वो सब जो आप देखते हैं, जो इस धरती पर इंसान ने किया है पहले वो मन में बना था। फिर वो बाहरी दुनिया में बना। इस धरती पर जो अद्भुत चीजें हमने की है और इस धरती पर जो भयानक काम हमने किए है, वे दोनों ही इंसान के मन से आए है, तो अगर हमें चिंता है कि संसार में हम क्या बना रहे है।

तो ये बहुत महत्वपूर्ण है कि सबसे पहले हम अपने मन में सही चीजें बनाना सीखे कि हम अपने मन को कैसे रखते है। अगर हम अपने मन को अपने तरीके से रखने की शक्ति नहीं रखते तो दुनिया में हम जो बनाते है वो भी बहुत संयोग से और उल्टा सीधा होगा, तो अपने मन को अपने तरीके से बनाना ही दुनिया को अपने तरीके से बनाने का आधार है।

योग विद्या में एक अद्भुत कहानी है। एक दिन एक आदमी टहलने निकला वो लंबी सैर के लिए गया। संयोग से अंजाने में वो स्वर्ग में चला गया सौभाग्य है, है ना...वो बस टहलते हुए स्वर्ग जा पहुंचा। इस लंबी सैर के बाद वो थोड़ा थक गया था इसलिए उसने सोचा अरे मैं थक गया हूं । काश ! मैं कहीं आराम कर सकता। उसने चारों ओर देखा वहां एक अच्छा पेड़ था, जिसके नीचे बहुत ही गद्देदार घास थी। वो सब इतना अच्छा था कि वह गया और वहीं लेटकर सो गया। कुछ घंटों के बाद वह जागा। अच्छी तरह से आराम मिल चुका था, तो उसने सोचा अरे आराम तो मिल गया पर मैं भूखा हूं काश! मेरे पास खाने के लिए कुछ होता और उसने सभी उन अच्छी चीजों के बारे में सोचा जिन्हें वो अपने जीवन में खाना चाहता था और तुरंत ही वे सारी चीजें उसके सामने आ गई।

आपको ये समझने की जरूरत है कि वहां की सेवा ही ऐसी है। भूखे लोग सवाल नहीं पूछते खाना आया और उसने खाया, पेट भर गया। फिर उसने सोचा अरे मेरा पेट भर गया है काश मेरे पास पीने के लिए कुछ होता। सभी अच्छी चीजें जो वो पीना चाहता था उसने उनके बारें में सोचा और वे सभी उसके सामने आ गई। पीने वाले भी सवाल नहीं पूछते, तो उसने पी लिया। अब थोड़ी शराब अंदर जाने के बाद आपको पता है चार्ल्स डार्विन ने बताया कि आप सभी बंदर थे आपकी पूंछ गिर गई और फिर आप इंसान बन गए। हां, पूंछ जरूर गिर गई लेकिन बंदर का मन स्थिर नहीं होता, इसलिए उसे योग विज्ञान में हमेशा मरकट कहते हैं। क्योंकि मरकट का मतलब बंदर होता है।

हम मन को एक बंदर क्यों कह रहे है। एक बंदर में क्या गुण होते है। बंदर के बारे में एक बात यह है कि वो बेवजह हिलता डुलता रहता है। बंदर के बारे में एक और बात है। अगर मैं कहता हूं आप किसी को देखकर बंदर की तरह कर रहे है। इसका क्या मतलब है नकल करने वाला। बंदर और नकल ये दोनों शब्द एक ही मतलब रखने लगे हैं। तो बंदर के ये बुनियादी गुण वाकई ऐसे मन के गुण भी हैं, जो स्थापित नहीं है गैर ज़रूरी हिलना-डुलना।

आपको बंदर से सीखना जरूरी नहीं है। आप बंदर को ये सीखा सकते है और नकल, मन हर पल नकल करता रहता है। तो जब ये दोनों गुण होते है तो एक मन को बंदर कहा जाता है, तो ये बंदर उसके अंदर सक्रिय हो गया। उसने इधर-उधर देखा और सोचा ये क्या हो रहा है। मैंने खाना मांगा खाना आया, मैंने पीने के लिए मांगा शराब आई। यहां चारों ओर भूत होंगे और भूत आ गए। अरे! भूत आ गए वे मुझे घेरेंगे और मुझे यातना देंगे उसने सोचा। तुरंत भूतों ने उसे घेर लिया और उसे मारने-पीटने लगे। फिर वो दर्द से चीखने लगा और बोला अरे-अरे वे मुझे मार देंगे और वो मर गया। अभी उसने कहा था कि वो भाग्यशाली है। समस्या यह है कि वो कल्पवृक्ष के नीचे बैठा था। उसने खाना मांगा खाना आ गया, उसने पीने के लिए कहा शराब आई, उसने भूतों की बात की भूत आए, उसने पिटाई मांगी पिटाई मिली और उसने मौत मांगी और वो मर गया। अब जंगल में इन कल्पवृक्षों की तलाश में मत जाना। इन दिनों मुश्किल से एक पेड़ दिखता है। एक अच्छे से स्थापित मन, एक मन जो समयुक्ति की स्थिति में होता है उसे एक कल्पवृक्ष कहते हैं।

अगर आप अपने मन को संगठन के एक निश्चित स्तर तक व्यवस्थित करते हैं तो ये पूरी प्रणाली को व्यवस्थित करता है। आपका शरीर, आपकी भावना, आपकी ऊर्जा सब कुछ उसी दिशा में व्यवस्थित हो जाती है। जब आपके ये चारों आयाम आपका भौतिक शरीर, आपका मन, आपकी भावना और मौलिक जीवन ऊर्जाएं एक दिशा में व्यवस्थित हो जाती है। जब आप ऐसे हो जाते है तो आप जो भी चाहते है वो वाकई छोटी उंगली उठाए बिना होता है। आपके काम करने से उसमें मदद मिलेगी लेकिन कोई काम किए बिना भी आप वो बना सकते है जो आप चाहते है। अगर आप इन चार आयामों को एक दिशा में रखते है और कुछ समय तक उन्हें उसी दिशा में स्थिर रखते है। अभी आपके मन की समस्या है कि हर पल यह अपनी दिशा बदल रहा है। यह ऐसा है जैसे आप कहीं जाना चाहते है और हर दो कदमों पर आप अपनी दिशा बदलते रहते है, तो आपका मंजिल तक पहुंचना बहुत मुश्किल है। जब तक कि यह संयोग से ना हो। तो अपने मन को व्यवस्थित करना और उससे पूरे सिस्टम को और अपने इन चार बुनियादी आयामों को एक दिशा में व्यवस्थित करना, अगर आप ऐसा करते है तो आप खुद कल्पवृक्ष है।

उनका कहना है कि जो भी आप चाहते हैं, वह होगा पर अभी अगर आप अपने जीवन को देखें तो वो सब जिसकी आपने अब तक इच्छा की है अगर वह हो जाए तो आप खत्म। वे चीजें और लोग जो आपने चाहे अगर वो सब आज आपके घर में हो तो क्या आप जी पाएंगे। जब हम इस तरह समर्थ हो जाते है तो ये बहुत महत्वपूर्ण है कि हमारी शारीरिक क्रिया, भावनात्मक क्रिया, मानसिक क्रिया और ऊर्जा क्रियाएं नियंत्रित और ठीक दिशा में हो। अगर ऐसा नहीं है तो हम आत्म विनाशकारी बन जाते है। अभी यही हमारी समस्या है। जिस तकनीक को हमारे जीवन को सुंदर और आसान बनाना चाहिए वो सभी समस्याओं की जड़ बन गई है। हम अपने जीवन के आधार को नष्ट कर रहे है, जो कि धरती है। तो जो एक वरदान होना चाहिए था हमने उसे एक श्राप बना दिया। पिछले 100 वर्षों में हमें आराम और सुविधा के जबरदस्त स्तर मिले है, जो हमारे जीवन के लिए खतरा भी बन गए है।

सिर्फ इसलिए कि हम सचेत होकर काम नहीं कर रहे है। हम आदतों से मजबूर है, तो मन को व्यवस्थित करने का बुनियादी मतलब है चीजों को विवशता से करने के बजाए जागरुक होकर करना। आपने ऐसे लोगों के बारे मे सुना होगा जो कुछ मांगते है और सभी उम्मीदों से परे वो उनके लिए सच हो जाता है। आमतौर पर ऐसा उनके साथ होता है जो श्रद्धा रखते है। मान लीजिए आप घर बनाना चाहते है, अगर आप सोचने लगेंगे अरे मैं एक घर बनाना चाहता हूं। घर बनाने के लिए 50 लाख रुपए चाहिए मेरी जेब में 50 रुपए है, नहीं होगा...नहीं होगा... संभव नहीं है। जैसे ही आप कहते है संभव नहीं है। आप ये भी कह रहे है कि मैं ये नहीं चाहता तो एक स्तर पर आप इच्छा पैदा कर रहे है कि आप कुछ चाहते है। दूसरे स्तर पर आप कह रहे है कि मैं ये नहीं चाहता तो इस संघर्ष में ये शायद न हो पाए।

कोई इंसान जो किसी भगवान या मंदिर में या जिसमें भी श्रद्धा रखता है, जो सरल मन वाला है। श्रद्धा सिर्फ उन लोगों के लिए काम करती है जो सरल मन वाले है। सोचने वाले लोग, जो बहुत अधिक सोचते हैं उनके लिए ये कभी काम नहीं करती। एक छोटे बच्चे जैसा इंसान जिसे अपने ईश्वर या अपने मंदिर में या जिसमें भी एक सरल श्रद्धा है वो मंदिर में जाकर कहता है शिवजी मुझे एक घर चाहिए मुझे नहीं पता कैसे पर आपको ये करना होगा। अब उसके मन में कोई उल्टे विचार नहीं है क्या ऐसा होगा, क्या ऐसा नहीं होगा, क्या ये संभव है, क्या ये असंभव नहीं है।

श्रद्धा के सरल काम द्वारा इन चीजों को पूरी तरह से हटा दिया जाता है। अब उसे श्रद्धा है कि शिव उसके लिए ये करेंगे और ऐसा होगा। सदगुरु कहते है कि तो क्या शिव खुद आकर आपका घर बनाएंगे नहीं मैं चाहता हूं कि आप समझे ईश्वर आपके लिए छोटी उंगली भी नहीं उठाएंगे। जिसे आप ईश्वर कहते है वो सृष्टि का स्रोत है। एक निर्माता के रूप में उन्होंने जबरदस्त काम किया है, कोई प्रश्न नहीं है। आप इससे बेहतर सृष्टि सोच सकते हैं। अभी जो भी है उससे बेहतर सृष्टि की क्या कोई कल्पना कर सकता है। वे कहते हैं कि एक निर्माता के रूप में उन्होंने बेहतरीन काम किया है, पर अगर आप चाहते हैं कि जीवन आपके हिसाब से चले क्योंकि अभी आपकी खुशी और आपकी खुशहाली की बुनियाद यह है।

अगर आप दुखी हैं तो सिर्फ और सिर्फ इसलिए आप दुखी हैं क्योंकि जीवन वैसे नहीं चल रहा जैसे आप चाहते है, बस यही बात है। तो अगर जीवन आपके हिसाब से नहीं चलता तो आप दुखी होते हैं। अगर जीवन आपके हिसाब से चलता है तो आप खुश होते है। यह इतना सरल है, तो अगर जीवन को आपके हिसाब से चलना चाहिए तो सबसे पहले आप कैसे सोचते हैं। आपकी सोच में कितना फोकस है, आपके विचार में कितनी स्थिरता है और विचार प्रक्रिया में कितनी ऊर्जा है। इससे तय होगा कि क्या आपका विचार एक सच्चाई बनेगा या सिर्फ एक विचार रहेगा।

यह इससे भी तय होगा कि आप उल्टे विचार बनाकर उस विचार के लिए रुकावट नहीं पैदा करते। क्या यह हो सकता है या नहीं यह मानवता को नष्ट कर रहा है। क्या संभव है और क्या असंभव यह देखना आपका नहीं प्रकृति का काम है। आपका काम है मनचाही चीज पाने के लिए मेहनत करना। अभी आप यहां बैठे हैं अगर मैं आपसे दो सरल प्रश्न पूछुं। मैं चाहता हूं कि आप बस सुने और उत्तर दें। आप जहां बैठे है क्या आप वहां से उड़ सकते है, आप कहेंगे 'नहीं'।

क्या आप यहां से उठकर चल सकते है आप कहेंगे 'हां'। इसका आधार क्या है कि आप उड़ने के लिए नहीं और चलने के लिए हां कहते है। आधार है जीवन का अनुभव। कई बार आप उठकर चले हैं, कभी उड़ान नहीं भरी। या दूसरे शब्दों में आप जीवन के पिछले अनुभव को आधर बनाकर यह तय कर रहे हैं कि कुछ संभव है या नहीं। या दूसरे शब्दों में आपने तय किया है कि अब तक जो नहीं हुआ वो भविष्य में आपके जीवन में नहीं हो सकता है।

यह मानवता और मानवीय भावना का अपमान है। इस धरती पर जो अब तक नहीं हुआ वो कल हो सकता है। इंसान इसे कल एक सच्चाई बना सकते है तो क्या संभव है और क्या असंभव यह देखना आपका काम नहीं है। यह प्रकृति का काम है। यह प्रकृति तय करेगी। आप बस देखिए कि आप वाकई क्या चाहते हैं और उसके लिए मेहनत कीजिए और अगर आपका विचार एक शक्तिशाली तरीके से तैयार होता है बिना किसी उल्टे विचारों के। कोई ऐसे उल्टे विचार ना हो जिनसे विचार प्रक्रिया की तीव्रता कम हो जाए। सबसे पहले और महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको स्पष्ट पता होना चाहिए कि आप वाकई क्या चाहते है।

अगर आप नहीं जानते कि आप क्या चाहते हैं तो उसे बनाने का सवाल ही नहीं उठता। अगर आप यह देखे कि आप वाकई क्या चाहते हैं तो हर इंसान यही चाहता है वह खुशी से जीना चाहता है। वह शांति से जीना चाहता है। वह चाहता है कि उसके रिश्ते प्यार भरे हों। या दूसरे शब्दों में कहो कोई इंसान यही चाहता है कि वह अपने भीतर सुखी हो और उसके चारों ओर सुख हो। यह सुख अगर हमारे शरीर में होता है तो हम इसे सेहत या सुख कहते हैं। अगर यह हमारे मन में होता है तो हम इसे शांति और खुशी कहते हैं। अगर यह हमारी भावना में होता है तो हम प्यार और करुणा कहते हैं।

अगर यह हमारी ऊर्जा में होता है तो हम इसे आनंद और परमानंद कहते हैं। यही एक इंसान की तलाश है, चाहे वह काम करने अपने ऑफिस जा रहा है वह पैसा कमाना चाहता है, करियर बनाना चाहता है, परिवार बनाए। वह बार में बैठे या मंदिर में बैठे। वह तब भी उसी चीज की तलाश में है। भीतर सुख चारों ओर सुख। अगर यहीं हम चाहते हैं तो मुझे लगता है इसे सीधे संबोधित करने और इसे बनाने के लिए खुद को प्रतिबद्ध करने का यही समय है। तो आप खुद को एक शांतिपूर्ण इंसान, आनंदमयी इंसान, प्रेम करने वाला इंसान। सभी स्तरों पर एक सुखद इंसान बनाना चाहते हैं और क्या आप इस तरह की दुनिया भी नहीं चाहते। एक शांतिपूर्ण दुनिया, एक प्रेमपूर्ण दुनिया, एक आनंदमयी दुनिया। नहीं-नहीं मुझे हरियाली चाहिए, मुझे भोजन चाहिए। आनंदमयी दुनिया से हमारा मतलब है कि हम जो भी चाहते थे वह हो गया। आप इसी की तलाश कर रहे हैं। तो आपको यही करने की जरूरत है कि अपने और अपने आसपास के लोगों के लिए एक शांतिपूर्ण, आनंदमय और प्रेमपूर्ण दुनिया बनाने के लिए प्रतिबद्ध हो जाए।

हर दिन सुबह अगर आप दिन की शुरुआत अपने मन में इस सरल सोच के साथ करें कि आज मैं जहां भी जाऊंगा एक शांतिपूर्ण, प्रेमपूर्ण और आनंदमयी दुनिया बनाऊंगा। अगर आप दिन में सौ बार गिरते हैं तो क्या फर्क पड़ता है। एक प्रतिबद्ध आदमी के लिए विफलता जैसा कुछ नहीं होता है। अगर वह सौ बार गिरता है तो सौ सबक सीखने को मिलते हैं। अगर आप खुद को वाकई कुछ अच्छा बनाने के लिए प्रतिबद्ध करते हैं तो आपका मन व्यवस्थित हो जाता है। जब आपका मन व्यवस्थित हो जाता है तो आपकी भावना व्यवस्थित हो जाएगी।

भावना का संबंध विचार से है। जब आपका विचार और भावना संगठित हो जाती है तो आपकी ऊर्जाएं उसी दिशा में व्यवस्थित हो जाएंगी। जब आपकी विचार, भावना और ऊर्जा व्यवस्थित हो जाएंगे तो आपका शरीर व्यवस्थित हो जाएगा। जब ये चारों एक दिशा में व्यवस्थित हो जाते हैं तो अपने मन चाही चीज बनाने और प्रकट करने की जबरदस्त क्षमता होगी। आप कई मायनों में ईश्वर होंगे, जो सृष्टि का स्रोत है। वह आपके जीवन के हर पल में आपके अंदर काम कर रहा है। बात सिर्फ यह है क्या आपने उस आयाम तक पहुंच बनाई है या नहीं। अपने जीवन के चार मूल तत्वों को व्यवस्थित करके आपको वह पहुंच मिलेगी।

ऐसा करने के लिए साधन और तकनीक है। योग का पूरा विज्ञान पूरी तकनीक जिसे हम योग कहते है वो बस यही है। खुद को सृष्टि के एक टुकड़े से सृष्टि बनाना। ये मेरी इच्छा और मेरा आशीर्वाद है कि दुनिया में हर इंसान को अपने भीतर सृजन के स्रोत तक पहुंच हो ताकि वो रचनाकार की तरह यहां काम कर सके न कि सिर्फ रचना के रूप में।



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अमन कुमार - बिहार से हूं। दिल्ली में पत्रकारिता की पढ़ाई और आकशवाणी से शुरू हुआ सफर जारी है। राजनीति, अर्थव्यवस्था और कोर्ट की ख़बरों में बेहद रुचि। दिल्ली के रास्ते लखनऊ में कदम आज भी बढ़ रहे। बिहार, यूपी, दिल्ली, हरियाणा सहित कई राज्यों के लिए डेस्क का अनुभव। प्रिंट, रेडियो, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया चारों प्लेटफॉर्म पर काम। फिल्म और फीचर लेखन के साथ फोटोग्राफी का शौक।

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