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वेदों के ज्ञाता और वैष्णव धर्म के प्रचारक थे संत रामानुजम, जानिए और भी बातें

देश के महान संत महात्माओं में एक है रामानुजम।उन्होंने वेदांत दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट द्वैत वेदांत गढ़ा था।

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Newstrack Network NetworkPublished By Suman Mishra | Astrologer
Published on: 18 May 2021 6:34 AM GMT
वेदों के ज्ञाता और  वैष्णव धर्म के प्रचारक थे संत रामानुजम, जानिए और भी बातें
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लखनऊ: देश के महान संत महात्माओं में एक है रामानुजम। इस बार रामानुजाचार्य की जयंती वैशाख शुक्ल षष्ठी, 18 मई 2021 मंगलवार आज है।उनका जन्म 1017 ईं. में भारत के दक्षिण में तमिलनाडू के पेरामबुदूर तिरुकुदूर में हुआ था। रामानूजम वैसे संत थे जिन्होंने धर्म के मार्ग पर चलकर जीवन को सफल बनाया।

सनातन धर्म के अनुसार रामानुजम का जीवन 120 वर्ष लंबा था। वो आचार्य आलवंदर यामुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। रामानुजम विद्वान और उदार दोनों थे। उनका चरित्र और भक्ति में का कोई शानी नहीं था वो अद्वितीय थे। कई योग सिद्धियों में उन्हें महारत हासिल थीं।

16 सास की छोटी की उम्र में ही श्रीरामानुजम ने सभी वेदों और शास्त्रों का ज्ञान अर्जित कर लिया और 17 वर्ष की उम्र में उनका विवाह संपन्न हो गया। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम के यदिराज संन्यासी से संन्यास की दीक्षा ली।

उन्होंने अपने जीवनकाल में 9 पुस्तके लिखी। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचनाओं में एक 'श्रीभाष्य' है। जो ब्रह्मसूत्र पर आधारित है। वैकुंठ गद्यम, वेदांत सार, वेदार्थ संग्रह, श्रीरंग गद्यम, गीता भाष्य, निथ्य ग्रंथम, वेदांत दीप, आदि उनकी प्रसिद्ध रचनाएं हैं।

कांसेप्ट फोटो(सौ. से सोशल मीडिया)

रामानुजम ने वेदांत दर्शन पर आधारित अपना नया दर्शन विशिष्ट द्वैत वेदांत गढ़ा था। उन्होंने वेदांत के अलावा सातवीं-दसवीं शताब्दी के रहस्यवादी एवं भक्तिमार्गी अलवार संतों से भक्ति के दर्शन को तथा दक्षिण के पंचरात्र परम्परा को अपने विचार का आधार बनाया।

रामानुजाचार्य के अनुसार भक्ति का अर्थ पूजा-पाठ, कीर्तन-भजन नहीं बल्कि ध्यान करना, ईश्वर की प्रार्थना करना है। आज के समय में भी रामानुजम की उपलब्धियां और उपदेश उपयोगी हैं।

पूरी की थीं गुरु की अंतिम इच्छा

रामानुजम अपने गुरु की मृत्यु के बाद उनकी तीन मुड़ी उगंलियों से समझ गए थे कि श्रीयामुनाचार्य के माध्यम से 'ब्रह्मसूत्र', 'विष्णुसहस्त्रनाम' और अलवन्दारों के 'दिव्य प्रबंधनम्' की टीका करवाना चाहते हैं। इन्होंने अपने गुरु के श्रीयामुनाचार्य के मृत शरीर को प्रणाम किया और उनके इस अन्तिम इच्छा को पूर्ण किया।

मैसूर के श्रीरंगम से चलकर रामानुज शालग्राम नामक स्थान पर रहते हुए 12 वर्ष तक वैष्णव धर्म का प्रचार-प्रसार किया। श्रीरामानुजाचार्य सन् 1137 ई. में ब्रह्मलीन हो गए।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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