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Vedas Shloka: जीवन से जुड़े वेदों के 15 श्लोक
Vedas Shloka: मानसिक रोग भी जन्मते हैं। डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।
यथा द्यौश्च पृथिवी च न बिभीतो न रिष्यतः।
एवा मे प्राण मा विभेः।।1।।- अथर्ववेद
जिस प्रकार आकाश एवं पृथ्वी न भयग्रस्त होते हैं और न इनका नाश होता है, उसी प्रकार हे मेरे प्राण! तुम भी भयमुक्त रहो।अर्थात व्यक्ति को कभी किसी भी प्रकार का भय नहीं पालना चाहिए। भय से जहां शारीरिक रोग उत्पन्न होते हैं वहीं मानसिक रोग भी जन्मते हैं। डरे हुए व्यक्ति का कभी किसी भी प्रकार का विकास नहीं होता। संयम के साथ निर्भिकता होना जरूरी है। डर सिर्फ ईश्वर का रखें।
अलसस्य कुतः विद्या अविद्यस्य कुतः धनम्।
अधनस्य कुतः मित्रम् अमित्रस्य कुतः सुखम्।।
आलसी को विद्या कहां, अनपढ़ या मूर्ख को धन कहां, निर्धन को मित्र कहां और अमित्र को सुख कहां।
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपु:।
नास्त्युद्यमसमो बन्धुः कृत्वा यं नावसीदति।।
मनुष्यों के शरीर में रहने वाला आलस्य ही (उनका) सबसे बड़ा शत्रु होता है। परिश्रम जैसा दूसरा (हमारा) कोई अन्य मित्र नहीं होता, क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं होता।सहसा विदधीत न क्रियामविवेकः परमापदां पदम् वृणते हि विमृश्यकारिणं गुणलुब्धाः स्वयमेव संपदः।।अचानक (आवेश में आकर बिना सोचे-समझे) कोई कार्य नहीं करना चाहिए, कयोंकि विवेकशून्यता सबसे बड़ी विपत्तियों का घर होती है। (इसके विपरीत) जो व्यक्ति सोच-समझकर कार्य करता है, गुणों से आकृष्ट होने वाली मां लक्ष्मी स्वयं ही उसका चुनाव कर लेती है।
शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्।। -उपनिषद्
शरीर ही सभी धर्मों (कर्तव्यों) को पूरा करने का साधन है।
शरीर को सेहतमंद बनाए रखना जरूरी है। इसी के होने से सभी का होना है । अत: शरीर की रक्षा और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। पहला सुख निरोगी काया।
ब्रह्मचर्येण तपसा देवा मृत्युमपाघ्नत। (सामवेद 11.5.19)
ब्रह्मचर्य के तप से देवों ने मृत्यु पर विजय प्राप्त की।मानसिक और शारीरिक शक्ति का संचय करके रखना जरूरी है। इस शक्ति के बल पर ही मनुष्य मृत्यु पर विजय प्राप्त कर सकता है। शक्तिहिन मनुष्य तो किसी भी कारण से मुत्यु को प्राप्त कर जाता है।ब्रह्मचर्य का अर्थ और इसके महत्व को समझना जरूरी है।
गुणानामन्तरं प्रायस्तज्ञो वेत्ति न चापरम्।
मालतीमल्लिकाऽऽमोदं घ्राणं वेत्ति न लोचनम्।।
गुणों, विशेषताओं में अंतर प्रायः विशेषज्ञों, ज्ञानीजनों द्वारा ही जाना जाता है, दूसरों के द्वारा कदापि नहीं। जिस प्रकार चमेली की गंध नाक से ही जानी जा सकती है, आंख द्वारा कभी नहीं।
येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।
ते मृत्युलोके भुवि भारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति।।
जिसके पास विद्या, तप, ज्ञान, शील, गुण और धर्म में से कुछ नहीं वह मनुष्य ऐसा जीवन व्यतीत करते हैं जैसे एक मृग।अर्थात : जिस मनुष्य ने किसी भी प्रकार से विद्या अध्ययन नहीं किया, न ही उसने व्रत और तप किया, थोड़ा बहुत अन्न-वस्त्र-धन या विद्या दान नहीं दिया, न उसमें किसी भी प्राकार का ज्ञान है, न शील है, न गुण है और न धर्म है। ऐसे मनुष्य इस धरती पर भार होते हैं। मनुष्य रूप में होते हुए भी पशु के समान जीवन व्यतीत करते हैं।
कुछ प्रचलित महत्वपूर्ण संस्कृत वाक्य..
अति सर्वत्र वर्जयेत्।
अर्थात : अधिकता सभी जगह बुरी होती है।
कालाय तस्मै नमः।
कालेन समौषधम्।।
समय सबसे बेहतर मरहम लगाने वाला है।जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।।अर्थात: जहां आपने जन्म लिया है वह स्वर्ग से भी बड़ी भूमि है। उसके प्रति वफादारी जरूरी है।दुर्लभं भारते जन्म मानुष्यं तत्र दुर्लभम्।।अर्थात मनुष्यों के लिए भारत में जन्म लेना सबसे दुर्लभ है। भाग्यशाली है जिन्होंने भारत में जन्म लिया।नास्ति सत्यसमो धर्मः।।अर्थात: सत्य के बराबर कोई दूसरा धर्म नहीं।बुद्धिः कर्मानुसारिणी।।
अर्थात बुद्धि कर्म का अनुसरण करती है।बुद्धिर्यस्य बलं तस्य।।
बुद्धि तलवार से अधिक शक्तिशाली है।पितृदेवो भव।।
आचार्यदेवो भव।।अतिथिदेवो भव।।मूढः परप्रत्यनेयबुद्धिः।।विनाशकाले विपरीतबुद्धि।।