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Sawan Somvar 2021: शिवपुराण से जानिए सावन से जुड़े रहस्य और महत्व, ऐसे ही नहीं भगवान शिव को प्रिय सावन का सोमवार

Sawan Somvar 2021: सावन मास में ही भगवान शिव इस पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से किया गया था। यह भी मान्यता है कि शिवजी हर साल सावन माह में अपने ससुराल आते हैं।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 8 July 2021 9:48 AM GMT
सावन, शिव और सोमवार,
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

सावन और सोमवार शिव को प्रिय ( Sawan,Somvar aur Shiv )?

सावन माह को पूरे 12 मास में सबसे पवित्र मास माना जाता है। इस मास का प्रत्येक दिन पवित्र होता है। और हर दिन भगवान की आराधना के लिए उपयुक्त होता है। इस मास शिव पार्वती के साथ कृष्ण की पूजा भी की जाती है। जैसे बारिश होते ही कीड़े- मकौड़े पनपने लगते है। वैसे ही इस महिना लोग ज्यादा धार्मिक रहते है। ज्यादातर हिंदू घरों में मांस-मदिरा वर्जित रहता हैं।

सावन के धार्मिक कथा

शिवपुराण के अनुसार भगवान शिव स्वयं ही जल हैं। इस व्रत में फलाहार या पारण का कोई नियम नहीं है। वैसे दिन−रात में केवल एक ही बार खाना फलदायक होता है। सोमवार के व्रत में शिव−पार्वती गणेश तथा नंदी की पूजा करना चाहिए।सावन मास में शिव जी को बेल पत्र ( बिल्वपत्र ) जाने अनजाने में किये गए पाप का शीघ्र ही नाश हो जाता है। अखंड बिल्वपत्र चढाने का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि अखण्ड बेलपत्र चढाने से सभी बुरे कर्मों से मुक्ति तथा अनेक प्रकार के कष्ट दूर हो जाते है।

इस मास में रूद्राभिषेक पूजन किया जाए तो शुभ फल की प्राप्ति होती है। इस व्रत में सावन माहात्म्य और शिव महापुराण की कथा सुनने का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि पवित्र गंगा नदी से सीधे जल लेकर जलाभिषेक करने से शिव जी शीघ्र प्रसन्न होकर भक्तों की मनोकामना पूर्ण करते हैं। इसी कारण श्रद्धालु कावड़िए के रूप में पवित्र नदियों से जल लाकर शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। श्रीराम जी ने भी भगवान शिव जी को कांवड चढ़ाई थी।

सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

सावन मास में ही भगवान शिव जी इस पृथ्वी पर अवतरित होकर अपनी ससुराल गए थे और वहां उनका स्वागत जलाभिषेक से किया गया था। यह भी मान्यता है कि शिवजी हर वर्ष सावन माह में अपने ससुराल आते हैं। इसी सावन मास में समुद्र मंथन भी किया गया था। समुद्र मथने के बाद जो विष निकला था उस विष को पीकर तथा कंठ में धारण कर सृष्टि की रक्षा किये थे। यही कारण है कि विषपान से शिवजी का कंठ नीला हो गया है। इसी कारण 'नीलकंठ" के नाम से जाने जाते हैं। देवी-देवताओं ने शिवजी के विषपान के प्रभाव को कम करने के लिए जल अर्पित किये थे। इसी कारण शिवलिंग पर जल चढ़ाने का खास महत्व है। यही वजह है कि श्रावण मास में भोलेनाथ को जल चढ़ाने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।

सोमवारी व्रत सावन महीना के प्रथम सोमवार से शुरू हो जाता है। प्रत्येक सोमवार को शिवजी, पार्वतीजी तथा गणेशजी की पूजा की जाती है। कहा जाता है कि सावन में शिवजी की आराधना तथा सोमवार व्रत करने से शिव जी शीघ्र ही प्रसन्न हो जाते है। प्रस होकर भक्त के इच्छानुकूल मनोकामनाएं पूरा करते है।

सावन का महत्व: इस वजह से होती है सावन में बारिश

पौराणिक मान्यता के अनुसार हिन्दू धर्मग्रंथों में कहा गया है कि समुद्र मंथन के दौरान निकले विष का पान करने से भगवान शिव के शरीर का तापमान बढ़ने लगा था।ऐसे में शरीर को शीतल रखने के लिए भोलेनाथ ने चंद्रमा को अपने सिर पर धारण किया और अन्य देव उन पर जल की वर्षा करने लगे। यहां तक कि इन्द्र देव भी यह चाहते थे कि भगवान शिव के शरीर का तापमान कम हो, इसलिए उन्होंने अपने तेज से मूसलाधार बारिश कर दी। इस वजह से सावन के महीने में अत्याधिक बारिश होती है, जिससे भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं।इसलिए भगवान शिव के भक्त कावड़ ले जाकर गंगा का पानी शिव की प्रतिमा पर अर्पित कर उन्हें प्रसन्न करने का प्रयत्न करते हैं। इसके अलावा सावन माह के प्रत्येक सोमवार को भगवान शिव पर जल चढ़ाना शुभ और फलदायी है।सावन के महीने में व्रत रखने का भी विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि कुंवारी लड़कियां पूरे महीने व्रत रखती हैं तो उन्हें उनकी पसंद का जीवनसाथी मिलता है।

मान्यता: पौराणिक कथा का अनुसार, जो शिव और पार्वती से जुड़ी है। पिता दक्ष ने जब शिव भगवान का अपमान किया तो पति का अपमान होता सती ने आत्मदाह कर लिया था। पार्वती के रूप में सती ने पुनर्जन्म लिया और शिव को अपने पति रुप में पाने के लिए उन्होंने सावन के सभी सोमवार का व्रत रखा। उन्हें भगवान शिव पति रूप में रखा।



सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

सावन में शिवलिंग की पूजा कैसे करें?

सावन, सोमवार व शिवलिंग ये तीनों भगवान शिवजी को अत्यन्त प्रिय है। जुलाई व अगस्त माह में सावन मास शुरt होता है। इस महीना में अनेक महत्त्वपूर्ण त्योहार है। हरियाली तीज, 'रक्षा बन्धन', 'नाग पंचमी' । इस महीना में भगवान शिव की आराधना का विशेष महत्त्व है। इस माह के प्रथम सोमवार से सोमवारी व्रत प्रारम्भ हो जाता है। इस दिन स्त्री, पुरुष व खासकर कुंवारी लड़कियां भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत रखती है। सावन मास के सभी सोमवार के दिन व्रत रखती है। शिवजी की पूजा में गंगाजल के उपयोग को विशिष्ट माना जाता है। शिवजी की पूजा आराधना करते समय उनके पूरे परिवार, शिवलिंग, माता पार्वती, कार्तिकेयजी, गणेशजी और उनके वाहन नन्दी की संयुक्त रूप से पूजा की जानी चाहिए।

शिव पुराण में शिवलिंग की पूजा का विशेष महत्व हैं। शिव पुराण में शिव को संसार की उत्पत्ति का कारण माना जाता है। इस सृष्टि में भगवान शिव ही पूर्ण पुरूष और निराकार ब्रह्म हैं। इसी के प्रतीकात्मक रूप में शिव लिंग की पूजा की जाती है। भगवान शिव ने ब्रह्मा और विष्णु के बीच श्रेष्ठता को लेकर हुए विवाद को सुलझाने के लिए एक दिव्य लिंग प्रकट किया था। इस लिंग का आदि और अंत ढूंढते हुए ब्रह्मा और विष्णु को शिव के परब्रह्म स्वरूप का ज्ञान हुआ। इसी समय से शिव के परब्रह्म मानते हुए उनके प्रतीक रूप में लिंग की पूजा शुरू हुई।

सावन का सोमवार का महत्व क्या है?

सोमवार दिन का प्रतिनिधि ग्रह चन्द्रमा है। चंद्रमा मन के नियंत्रण और नियमण में उसका (चंद्रमा का) महत्त्वपूर्ण योगदान है। चन्द्रमा भगवान शिव जी के मस्तक पर विराजमान है। भगवान शिव स्वयं साधक व भक्त के चंद्रमा अर्थात मन को नियंत्रित करते हैं। इस प्रकार भक्त के मन को वश में तथा एकाग्रचित कर अज्ञानता के भाव सागर से बाहर निकालते है। यही कारण है की सोमवार दिन शिवजी के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है।

सावन माह शिव को प्रिय क्यों है?

सावन मास में सबसे अधिक वर्षा होती है जो शिव जी के गर्म शरीर को शीतलता प्रदान करती है। भगवान शिव ने सावन मास की महिमा बताते हुए कहा है कि तीनों नेत्रों में सूर्य दाहिने, बांये चन्द्र और अग्नि मध्य नेत्र है। जब सूर्य कर्क राशि में गोचर करता है, तब सावन महीने की शुरुआत होती है। सूर्य गर्म है जो उष्मा देता है जबकि चंद्रमा ठंडा है जो शीतलता प्रदान करता है। इसलिए सूर्य के कर्क राशि में आने से खूब बरसात होती है। जिससे लोक कल्याण के लिए विष को पीने वाले भोले को ठंडक व सुकून मिलता है। प्रजनन की दृष्टि से भी यह मास बहुत ही अनुकूल है। इसी कारण शिव को सावन प्रिय हैं।


सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

सावन के महीने में क्या करें, ये काम न करें

  • सावन माह भगवान शिव का माह है। इसके हर दिन व हर सोमवार को श्रीगणेशजी, शिव जी, पार्वती जी और नंदी की पूजा करें और शिवजी की पूजा में जल, दूध, चीनी, घी, शहद, पंचामृत, कलावा, वस्त्र यज्ञोपवि, चन्दन, रोली, चावल, फूल, बिल्ब पत्र, दूर्वा, आक, धतूरा कमलगट्टा, पान, सुपारी, लौंग, इलायची, पंचमेवा, धूप, दीप, दक्षिणा कपूर से आरती करनी चाहिए।
  • ऐसी चीजें जिनका इस्तेमाल सावन में नहीं करना चाहिए। सावन में पूजा पाठ तो करना ही चाहिए, इसके अतिरिक्त कुछ कामों को निषेध माना जाता है। जानते हैं क्या....
  • सावन में हरी पत्तेदार सब्जियां बिल्कुल नहीं खानी चाहिए।
  • दूध के सेवन से बचें, बैंगन न खाएं।
  • शिवलिंग पर हल्दी न चढ़ाएं।
  • बड़े-बुजुर्ग, बहन, गरीब, लाचार व्यक्ति एवं गुरु का अपमान न करें।
  • मांस व शराब का सेवन न करें।घर में रखें साफ-सफाई का विशेष ध्यान।


सावन सोमवार v व्रत कब से शुरू


भगवान शिव का प्रिय मास सावन इस साल 2021 में 25 जुलाई रविवार से शुरू हो रहा है। इस महीने जो भी भक्त सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन में भगवान शिव पृथ्वी पर अपने भक्तों की बीच निवास करते हैं और उनकी समस्त कामनाओं की पूर्ति करते हैं। सावन मास में सोमवार का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। इस महीने में शिवभक्त सावन सोमवार का व्रत करते हैं।

सावन मास में कितने सोमवार इस बार 29 दिनों के सावन मास में 4 सोमवार पड़ रहा है। सावन महीना 2021- 26 जुलाई 2021 से 16 अगस्त 2021 तक रहेगा। इस बार सावन – घनिष्ठा नक्षत्र और द्विपुष्कर योग में सावन के पवित्र मास की शुरुआत हो रही है।इसलिए इस बार सावन मास में सच्चे मन से की गई भक्ति का पूरा फल मिलेगा और स्थायी रुप से शिव की कृपा बनी रहेगी।

  • पहला सावन सोमवार-26 जुलाई 2021
  • दूसरा सावन सोमवार- 2 अगस्त 2021
  • तीसरा सावन सोमवार- 9अगस्त 2021
  • चौथा सावन सोमवार- 16 अगस्त 2021


Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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