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Sawan Special : भगवान शिव की वेशभूषा और श्रृंगार का रहस्य, आपको कर देगा हैरान, छिपा है इसमें गहरा ज्ञान
Sawan Special Bhagwan Shiva:भगवान शिव ही एक मात्र अजन्मा,निराकार और निर्ब्रह्म है। जो लिंगात्मक भी है और अर्धनारीश्व भी। समानता का प्रतीक शिव जितने सरल और साधारण दिखते हैं, उससे ज्यादा उनका पहनावा है। जानते हैं शिव का श्रृंगार जो करते हैं सबको अचंभित...
Sawan Special Bhagwan Shiva
भगवान शिव की वेशभूषा का रहस्य
भगवान शिव का प्रिय मास सावन (Sawan Month) इस साल 2022 में 14 जुलाई से शुरू हो रहा है। इस महीने जो भी भक्त सच्चे मन और पूरी श्रद्धा के साथ भगवान शिव की आराधना करता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन में भगवान शिव ( lord shiva) पृथ्वी पर अपने भक्तों की बीच निवास करते हैं और उनकी समस्त कामनाओं की पूर्ति करते हैं।
भगवान शिव ही एक मात्र अजन्मा,निराकार और निर्ब्रह्म है। जो लिंगात्मक भी है और अर्धनारीश्व भी। समानता का प्रतीक शिव जितने सरल और साधारण दिखते हैं, उससे ज्यादा उनका पहनावा है। सावन की शुरूआत के अवसर पर भगवान शंकर की वेशभूषा और उनसे जुड़े रहस्यों को जानते हैं जो हमेशा अचम्भित करतें है।।
भगवान शिव देवों के देव है महादेव'अजन्मा
देवों के देव 'महादेव'…शिव को महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ के नाम से भी जाना जाता है। वो अजन्मा है। सत्य-असत्य से परे हैं। शिव असीमित व्यक्तित्व के स्वामी हैं। वो आदि हैं और अंत भी। शायद इसीलिए बाकी सब देव हैं। केवल शिव केवल शिव ही महादेव हैं। वो उत्सव, महोत्सव प्रिय हैं। शोक, अवसाद और अभाव में भी उत्सव मनाने की कला उनके पास है। तंत्र साधना में इन्हे 'भैरव' कहा गया है| भोलेनाथ हिन्दू धर्म की त्रिमूर्ति में से एक हैं। त्रिमूर्ति अर्थात ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश (शिव)। वेदों में शिव को रुद्र के नाम से सम्बोधित क्रिया गया तथा इनकी स्तुति में कई ऋचाएं लिखी गई। सामवेद और यजुर्वेद में शिव-स्तुतियां उपलब्ध हैं। उपनिषदों में भी विशेषकर श्वेताश्वतरोपनिषद में शिव-स्तुति है। वेदों और उपनिषदों के अतिरिक्त शिव की कथा अन्य कई ग्रन्थों में मिलती है। यथा शिवपुराण, स्कंदपुराण, लिंगपुराण आदि।
भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा( moon)
शिव का एक नाम 'सोम' भी है। सोम का अर्थ चन्द्र होता है। उनका दिन सोमवार है। चन्द्रमा मन का कारक है। शिव का चंद्र को धारण करना मन को नियंत्रित करने का प्रतीक है। हिमालय पर्वत और समुद्र से चंद्रमा का सीधा संबंध है।
भगवान शिव के सभी त्योहार और पर्व चंद्र मास पर आधारित है। शिवरात्रि, महाशिवरात्रि आदि शिव से जुड़े त्योहारों में चंद्र कलाओं का महत्व है।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में मान्यता है कि भगवान शिव चंद्रमा के श्राप का निवारम करने के कारण यहां चंद्र ने शिवलिंग की स्थापना की थी।
भगवान शिव का त्रिशूल
भगवान शिव के पास हमेशा एक त्रिशूल था। ये बहुत ही अचूक और घातक अस्त्र था। इसकी शक्ति के आगे कोई भी शक्ति नहीं ठहर सकती। त्रिशूल 3 प्रकार के कष्टों दैविक, भौतिक के विनाश का भी सूचक है । इसमें सत, रज और तम 3 शक्तियां है। साइंस में प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन कहते है।
भगवान शिव के गले में वासुकि नाग
शिव के नागवंशियों से घनिष्ठ प्रेम था। नाग कुल के सभी लोग शिव के क्षेत्र हिमालय में रहते थे। नागों का ईश्वर होने के कारण शिव का नाग या सर्प से अटूट संबंध है।
भगवान शिव के हाथ में डमरू
सभी देवी-देवता के पास उनका वाद्ययंत्र है। शिव का वाद्य यंत्र डमरू है। शिव को संगीत का जनक कहा जाता है। उनके पहले किसी ने संगीत नहीं जाना। उनका तांडव नृत्य किसे नहीं पता। डमरू के घरों में रखा भी इसीले शुभ माना जाता है। इससे सकारात्मक ऊर्जा मिलती है।।भगवान शिव ने जिस तरह से सृष्टि में सामंजस्य बनाए रखने के लिए असर, तेज और तम गुण को त्रिशूल रूप में धारण किया था। ठीक उसी प्रकार सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया था। कथा मिलती है कि जब देवी सरस्वती का प्राकट्य हुआ तो उन्होंने वीणा के स्वरों से सृष्टि में ध्वनि का संचार किया। लेकिन कहा जाता है कि वह ध्वनि सुर और संगीत हीन थी। तब भोलेनाथ ने नृत्य किया और 14 बार डमरू बजाया। मान्यता है डमरू की उस ध्वनि से ही संगीत के धुन और ताल का जन्म हुआ। डमरू को ब्रह्मदेव का भी स्वरूप
भगवान शिव का वाहन वृषभ
वृष को शिव का वाहन कहते है। वे हमेशा शिव के साथ रहते है। वृष का अर्थ धर्म है। एक मान्याता के अनुसार वृष ही नंदी है। नंदी ने धर्म, अर्थ, काम और मोक्षशास्त्र की रचना की थी।
भगवान शिव की जटाएं
भगवान शिव को अंतरिक्ष का देवता कहा जाता है। उनका नाम व्योमकेश है। उनकी जटाएं वायु की प्रतीक है। उसमें गंगा की धारा भी है। रुद्र स्वरुप शिव उग्र और संहारक भी है।
भगवान शिव की जटा में गंगा
गंगा को जटा में धारण करने के कारण ही शिव को जल चढ़ाए जाने की परंपरा है। जब स्वर्ग से गंगा आई तो उसके प्रवाह को रोकने के लिए शिव ने अपनी जटा में गंगा को धारण करें।
भगवान शिव का धनुष पिनाक
शिव ने जिस धनुष को बनाया था उसकी टंकार से ही बादल फट जाते थे और पर्वत हिलने लगते थे। ऐसा लगता था मानो भूकंप आ गया हो। ये धनुष बहुत शक्तिशाली था। इसी के एक तीर से त्रिपुरासुर की तीनों नगरियों को ध्वस्त कर दिया गया था। इस धनुष का नाम पिनाक था। देवी-देवताओं के काल की समाप्ति के बाद इस धनुष को देवराज को सौंप दिया गाया था।
भगवान शिव का कुंडल
हिंदुओं में एक कर्ण छेदन संस्कार है। शैव,शाक्त और नाथ संप्रदाय में दीक्षा के समय कान छिदवाकर उसमें मुद्रा या कुंडल धारण करने की प्रथा है। छिदवाने से कई प्रकार के रोगों से तो बचा जा सकता है। साथ ही इससे मन भी एकाग्र रहता है। मान्यता के अनुसार इससे वीर्य शक्ति भी बढ़ती है।
भगवान शिव और रुद्राक्ष
धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति शिव के आंसूओं से हुई थी। धार्मिक ग्रंथानुसार 21 मुख तक के रुद्राक्ष होने के प्रमाण हैं, परंतु वर्तमान में 14 मुखी के पश्चात सभी रुद्राक्ष हैं। इसे धारण करने से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है तथा रक्त प्रवाह भी संतुलित रहता है।
इस बार सावन मास में 4 सोमवार पड़ रहा है। सावन महीना 2022- 14 जुलाई 2022 से 12 अगस्त 2022 तक रहेगा। इस बार श्रवण और विष्कुम्भ और प्रीति योग में सावन के पवित्र मास की शुरुआत हो रही है।चन्द्रमा मकर राशि पर संचार करेगा। इसलिए इस बार सावन मास में सच्चे मन से की गई भक्ति का पूरा फल मिलेगा और स्थायी रुप से शिव की कृपा बनी रहेगी।
इस पवित्र मास में रुद्राभिषेक, शिवसहस्त्रनाम का पाठ करने से भगवान शिव की कृपा बनी रहती है और कुंवारी कन्याओं को अच्छे जीवनसाथी मिलते हैं।
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