Shaligram Puja Rules: शालिग्राम भगवान कौन है, जानिए इनके शिला बनने की कथा, और घर में रखते हैं तो इन बातों का पालन जरूर करें

Shaligram Puja Rules: जब से रामलला की प्रतिमा शालिग्राम पत्थर से बनाने की बात हो रही है तब से सब के मन में जिज्ञासा जग रही कि आखिर क्या है ये शालिग्राम शिला, जिससे रामलला की प्रतिमा बनाई जाएगी। इनको घर में रखने के नियम क्या है...

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 4 Feb 2023 11:15 PM GMT (Updated on: 5 Feb 2023 12:55 AM GMT)
Shaligram Puja Rules: शालिग्राम भगवान कौन है, जानिए इनके शिला बनने की कथा, और घर में रखते हैं तो इन बातों का पालन जरूर करें
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Shaligram shilakhand : अयोध्या के मंदिर में रामलला की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से तैयार की जाएगी। ये शालिग्राम पत्थर नेपाल की गंडकी नदी से लाए जा रहे हैं। ये पत्थर दो टुकड़ों में है और इन दोनों शिलाखंडों का कुल वजन 127 क्विंटल है। इन शिलाखंडों को लाया गया है। जब से रामलला की प्रतिमा शालिग्राम पत्थर से बनाने की बात हो रही है तब से सब के मन में जिज्ञासा जग रही कि आखिर क्या है ये शालिग्राम शिला, जिससे रामलला की प्रतिमा बनाई जाएगी।

शालिग्राम भगवान कौन है

भगवान विष्णु का शिला रूप शालीग्राम है जो एक कथा के अनुसार देवी वृंदा के श्राप स्वरुप पत्थर रूप में परिणत हो गए थे। मतलब शालिग्राम एक प्रकार का जीवाश्म पत्थर है। धर्मानुसार परमेश्वर के प्रतिनिधि के रूप में भगवान का आह्वान करने के लिए किया जाता है। मतलब शालिग्राम भगवान विष्णु के विग्रह रूप है। ये नेपाल के गंडक नदी के तल में पाए जाते हैं। इनको नेपाल में स्थित दामोदर कुंड से निकलने वाली काली गंडकी नदी से प्राप्त किया जाता है। इसलिए शालिग्राम को गंडकी नंदन भी कहते हैं।यहां पर सालग्राम नामक स्थान पर भगवान विष्णु का मंदिर है, जहां उनके इस रूप का पूजन होता है। कहा जाता है कि इस ग्राम के नाम पर ही उनका नाम शालिग्राम पड़ा। शालिग्राम को घर के मंदिर या पूजा के स्थान पर भी रखते हैं। इसे घर में रखने से न केवल भगवान विष्णु प्रसन्न रहते है, बल्कि धन की देवी माता लक्ष्मी का भी आशीर्वाद मिलता है।

शालिग्राम की उत्पत्ति का कथा

पौराणिक कथानुसार एक बार दैत्यराज जालंधर के साथ भगवान विष्णु को युद्ध करना पड़ा। काफी दिन तक चले संघर्ष में भगवान के सभी प्रयासों के बाद भी जालंधर परास्त नहीं हुआ।अपनी इस विफलता पर श्री हरि ने विचार किया कि यह दैत्य आखिर मारा क्यों नहीं जा रहा है। तब पता चला की दैत्यराज की रूपवती पत्नी वृंदा का तप-बल ही उसकी मृत्यु में अवरोधक बना हुआ है। जब तक उसके तप-बल का क्षय नहीं होगा तब तक राक्षस को परास्त नहीं किया जा सकता। इस कारण भगवान ने जालंधर का रूप धारण किया व तपस्विनी वृंदा की तपस्या के साथ ही उसके सतीत्व को भी भंग कर दिया। इस कार्य में प्रभु ने छल व कपट दोनों का प्रयोग किया। इसके बाद हुए युद्ध में उन्होंने जालंधर का वध कर युद्ध में विजय पाई। पर जब वृंदा को भगवान के छलपूर्वक अपने तप व सतीत्व को समाप्त करने का पता चला तो वह अत्यंत क्रोधित हुई व श्रीहरि को श्राप दिया कि तुम पत्थर के हो जाओ। इस श्रापके रूप में भगवान विष्णु शालिग्राम बन गएं।

शालिग्राम भी दुर्लभ है..

लेकिन शैव संस्कृति में कहा जाता है कि शिव जहां से भी गुजरे, उनके पैरों के नीचे आने वाले सभी पत्थर और कंकड़, जिन पर उनकी कृपा हुई, वे विकसित होने लगे। कहते हैं कि उनके विकास में एक पूरा युग लगा। हिंदू धर्म में आमतौर पर मानवरूपी धार्मिक मूर्तियों के पूजन की प्रथा है। लेकिन इन मूर्तियों के पहले से भगवान ब्रह्मा को शंख, विष्णु को शालिग्राम और शिवजी को शिवलिंग रूप में ही पूजा जाता था।

शिवलिंग की तरह शालिग्राम भी दुर्लभ है। अधिकतर शालिग्राम नेपाल के मुक्तिनाथ क्षेत्र, काली गण्डकी नदी के तट पर पाए जाते हैं। काले और भूरे शालिग्राम के अलावा सफेद, नीले और सुनहरी आभा युक्त शालिग्राम भी होता है। लेकिन सुनहरा और ज्योतियुक्त शालिग्राम मिलना अत्यंत दुर्लभ है। पूर्ण शालिग्राम में भगवाण विष्णु के चक्र की आकृति प्राकृतिक तौर पर बनी होती है।

शालिग्राम के प्रकार

लगभग 33 प्रकार के शालिग्राम होते हैं, जिनमें से 24 प्रकार के शालिग्राम को भगवान विष्णु के 24 अवतारों से संबंधित माना जाता है। मान्यता है कि ये सभी 24 शालिग्राम वर्ष की 24 एकादशी व्रत से संबंधित हैं। भगवान विष्णु के अवतारों के अनुसार, शालिग्राम यदि गोल है तो वह भगवान विष्णु का गोपाल रूप है। मछली के आकार का शालिग्राम श्रीहरि के मत्स्य अवतार का प्रतीक माना जाता है। यदि शालिग्राम कछुए के आकार का है तो इसे विष्णुजी के कच्छप और कूर्म अवतार का प्रतीक माना जाता है। शालिग्राम पर उभरनेवाले चक्र और रेखाएं विष्णुजी के अन्य अवतारों और श्रीकृष्ण रूप में उनके कुल को इंगित करती हैं।


शालिग्राम घर में रखने के नियम

शालिग्राम ये काले रंग के गोल चिकने पत्थर के स्वरूप में होते हैं। शालीग्राम जिन घरों में होते हैं और नियम पूर्वक उनका पूजन किया जाता है, वहां पर हमेशा भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है। और यह भी कहा गया है कि शालीग्राम रहित घर का पानी पीना नही चाहिए। यदि आपके घर में शालीग्राम हैं तो कुछ बातों को ध्यान में जरूर रखना चाहिए, क्योंकि इनकी पूजा में भूल होने से भगवान विष्णु रुष्ट हो सकते हैं। प्रत्येक देवी-देवताओं की तरह इनके पूजन से संबंधित भी कुछ नियम हैं जिन्हें ध्यान में रखकर आप अपने जीवन को खुशहाल बना सकते ह।


शालीग्राम साधु-संतों से ले - शास्त्रों के अनुसार, शालीग्राम जी को किसी संत आदि से लेकर ही अपने घर में रखना चाहिए। यह बहुत शुभ माना जाता है। शालीग्राम को न ही किसी शादी-शुदा व्यक्ति से लेना चाहिए और न ही किसी शादी-शुदा व्यक्ति को देना चाहिए।

शालीग्राम रखते समय सफाई का ध्यान रखें- यादि आपके घर में शालीग्राम हैं तो साफ-सफाई का विशेष ध्यान रखें, अन्यथा आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।घर में सिर्फ़ एक ही शालीग्राम की शिला होनी चाहिए। एक से अधिक शालिग्राम रखने से व्यर्थ के संकट आते हैं और आर्थिक हानियों का सामना करना पड़ता है।

शालीग्राम जी की पूजा करते समय ध्यान रखें - उनके ऊपर अक्षत चढ़ाना वर्जित माना गया है। यदि किसी स्थिति में अक्षत का प्रयोग कर रहे हैं तो हल्दी से रंगने के बाद ही करें।घर में शालिग्राम भगवान् हैं तो उन्हें रोज़ पंचामृत से स्नान कराएं। इसमें दूध, दही, जल, शहद और घी शामिल होते हैं। इन सभी सामग्रियों से शालिग्राम जी को स्नान करवाकर इसे चरणामृत को प्रसाद स्वरुप ग्रहण करें। इससे भगवान् विष्णु की विशेष कृपा दृष्टि बनी रहती है।

शालीग्राम की पूजा में तुलसी जरूरी- शालीग्राम जी विष्णु जी का ही स्वरूप हैं इसलिए इनकी पूजा में तुलसी के पत्तों का प्रयोग करना चाहिए।शालीग्राम की पूजा में तुलसी का पत्ता भगवान शालीग्राम के ऊपर चढ़ाने से धन, वैभव मिलता है।

शालीग्राम की पूजा का क्रम न टूटें- यदि घर में शालीग्राम जी रखे हैं और उनकी पूजा करते हैं तो नियमपूर्वक प्रतिदिन पूजन करना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि शालीग्राम जी की पूजा का क्रम नहीं टूटना चाहिए,शालिग्राम को नियमित रूप से भोग अर्पित करें। भोग में सात्विक भोजन को हो अर्पित करें।

शालिग्राम की पूजा में शुद्धता जरूरी- हमेशा नहा धोकर और साफ़ वस्त्रों में करनी चाहिए। यही नहीं पूजा के समय मन भी साफ़ होना चाहिए और किसी भी बुरे विचार को मन में रखते हुए पूजा नहीं करनी चाहिए। अशुद्ध मन से पूजा करने पर घर का विनाश और आर्थिक हानि निश्चित होती है। शालिग्राम को सात्विकता के प्रतीक के रूप में पूजा जाता है। उनके पूजन में आचार-विचार की शुद्धता का विशेष ध्यान रखना जरूरी है।

एक बात और सबसे अहम घर में शालिग्राम जी को लाते हुए कुछ बातों के साथ मांस-मदिरा से भी दूरी बनाकर चलेंगे तो अच्छा रहेगा।इससे धन की हानी से बचेंगे।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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