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Sharad Purnima Amrit Varsha Mahatva शरद पूर्णिमा का महत्व, कैसे जगती है इस रात सोई किस्मत,जानिए कब होती है अमृत वर्षा

Sharad Purnima 2024 Kab Hai Date:आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। इस दिन आसमान से अमृत वर्षा होती है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 15 Oct 2024 9:23 AM IST
Sharad Purnima Amrit Varsha Mahatva शरद पूर्णिमा का महत्व, कैसे जगती है इस रात सोई किस्मत,जानिए कब होती है अमृत वर्षा
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Sharad Purnima Mahatva शरद पूर्णिमा का महत्व:

प्राचीन मान्यताओं के अनुसार शरद पूर्णिमा इस दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। रिति रिवाजों के अनुसार शरद पूर्णिमा को कोजागौरी लोक्खी (देवी लक्ष्मी) का पूजन किए जाने की मान्यता है।शरद पूर्णिमा के दिन कोजागरी पूजा और व्रत रखा जाता है। इस दिन धन की देवी, माता लक्ष्मी से भी सम्बंधित है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा को व्रत रख कर पूरे रात मां लक्ष्मी और श्री विष्णु की पूजा की जाती है। जिस जातक की कुण्डली में लक्ष्मी योग ना हो उन्हें इस पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है।

शरद पूर्णिमा का महत्व शास्त्रों में भी बताया गया है। ऐसी मान्यता है कि चन्द्रमा से निकलने वाले अमृत को कोई भी साधारण व्यक्ति ग्रहण कर सकता है। चन्द्रमा से बरसने वाले अमृत को सफेद खाने योग्य वस्तु के माध्यम से कोई भी व्यक्ति अपने शरीर में प्राप्त कर सकता है। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा की रोशनी यानी चांदनी में समय बिताने वाले व्यक्ति को भी चन्द्रमा से बरसने वाले अमृत की प्राप्ति होती है। चांद की रोशनी में बैठने से, चांद की रोशनी में 4 घण्टे रखा भोजन खाने से और चन्द्रमा के दर्शन करने से व्यक्ति आरोग्यता को प्राप्त करता है।

रोगियों के लिए शरद पूर्णिमा की रात को बहुत विशेष माना जाता है। क्योकि इस दिन चांद से निकलने वाला अमृत रोगियों के रोगों को दूर करता है। इस रात्रि की मध्यरात्रि में देवी महालक्ष्मी अपने कर-कमलों में वर और अभय लिए संसार में विचरती हैं और मन ही मन संकल्प करती हैं कि इस समय भूतल पर कौन जाग रहा है? जागकर मेरी पूजा में लगे हुए उस मनुष्य को मैं आज धन दूँगी। इस प्रकार प्रतिवर्ष किया जाने वाला यह कोजागर व्रत लक्ष्मीजी को संतुष्ट करने वाला है। इससे प्रसन्न हुईं माँ लक्ष्मी इस लोक में तो समृद्धि देती ही हैं और शरीर का अंत होने पर परलोक में भी सद्गति प्रदान करती हैं।

शरद पूर्णिमा अमृत के समान

इस व्रत में सुबह विधिपूर्वक स्नान करके ताँबे या मिट्टी के कलश पर माता लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित की जाती है। जिसके बाद पश्चात अक्षत, पुष्प, दीप, नैवेद्य, पान, सुपारी, नारियल आदि से पूजन की जाती है। फिर संध्याकाल में चन्द्रोदय पर 100 दीपक जलाए जाने की मान्यता है। इतना ही नहीं खीर बनाकर उसे चन्द्रमा की रोशनी में रखा जाता है।

शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा से निकलने वाली ऊर्जा को अमृत के समान चमत्कारी माना जाता है। श्रद्धालुओं की मान्यता है कि इस रात चन्द्रमा से निकलने वाली समस्त ऊर्जा उस खीर के भोग में सम्माहित हो जाती है। इसे प्रसाद रूप में लेने वाले व्यक्ति की दीर्घायु होती है। इस प्रसाद से रोग-शोक दूर होते है। बीमारियों का नाश करने वाली है ये अमृत वाली खीर। रोगियों के लिए शरद पूर्णिमा की अमृत की खीर वरदान साबित होता है। स्वस्थ लोगों के लिए यह रात सेहत और सम्पति देने वाली है। इसलिए शरद पूर्णिमा को अमृत वाली खीर खाने के बहुत फायदे होते हैं। इस खीर को खाने वाला व्यक्ति प्रसिद्धि को प्राप्त करता है।

शरद पूर्णिमा की रात औषधियों की स्पंदन क्षमता अधिक हो जाती है। रसाकर्षण के कारण जब अंदर का पदार्थ सांद्र होने लगता है, तब रिक्तिकाओं से विशेष प्रकार की ध्वनि उत्पन्न होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय चक्र और आश्विन के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह होता है और बसंत में निग्रह होता है। दुग्ध में लैक्टिक अम्ल और अमृत तत्व होता है। यह तत्व किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति का शोषण करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

शरद पूर्णिमा की रात करें यह काम

शरद पूर्णिमा के दिन खीर बनाकर खुले आसमान के नीचे रखा जाता है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात को चन्द्रमा पृथ्वी के बहुत नजदीक होता है। इस रात को मां लक्ष्मी स्वर्ग से पृथ्वी पर आती हैं। इस रात मां लक्ष्मी की जो भी व्यक्ति पूजा करता हुआ दिखाई देता है। मां उस पर कृपा बरसाती हैं।

पुराणों में ऐसी कथा आती है कि इस दिन व्रत रख कर विधि-विधान से लक्ष्मी-नारायण का पूजन करें। खीर बनाकर रात में खुले आसमान के नीचे ऐसे रखें, ताकि चन्द्रमा की रोशनी खीर पर पड़े। अगले दिन स्नान करके भगवान को खीर का भोग लगाएं। फिर तीन ब्राह्मणों या कन्याओं को प्रसाद रूप में इस खीर को दें और अपने परिवार में खीर का प्रसाद बांटे। इस खीर को खाने से अनेक प्रकार के रोगों से छुटकारा मिलता है।

शरद पूर्णिमा की रात को जागने का विशेष महत्व दिया गया है। ऐसी मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की रात माता लक्ष्मी यह देखने के लिए घूमती कि कौन जाग रहा है। जो जगता है उसका माता लक्ष्मी कल्याण करती हैं।

शरद पूर्णिमा की रात जब चारों तरफ चांद की रोशनी बिखरती है उस समय मां लक्ष्मी की पूजा करने से धन का लाभ होगा।

मां लक्ष्मी को सुपारी बहुत पसंद है। सुपारी का इस्तेमाल पूजा में करें। पूजा के बाद सुपारी पर लाल धागा लपेटकर उसको अक्षत, कुमकुम, पुष्प आदि से पूजन करके उसे तिजोरी में रखने से आपको धन की कभी कमी नहीं होगी।

शरद पूर्णिमा की रात भगवान शिव को खीर का भोग लगाएं। खीर को पूर्णिमा वाली रात छत पर रखें। भोग लगाने के बाद उस खीर का प्रसाद ग्रहण करें। इस उपाय से कभी पैसे की कमी नहीं होगी।

शरद पूर्णिमा की रात को हनुमान जी के सामने चौमुखा दीपक जलाएं। इससे आपके घर में सुख शांति बनी रहेगी।

शरद पूर्णिमा की कथा

पौराणिक कथाओं की मानें तो एक नगर में एक साहुकार रहता था। जिसकी दो बेटियां थी। साहुकार की दोनों बेटियों का धर्म-कर्म में ध्यान रहता है और दोनों पूर्णिमा का व्रत रखती थीं। बड़ी बेटी हमेशा अपना व्रत पूरा करती थी और छोटी बेटी व्रत अधूरा ही करती थी। एक समय बाद दोनों की शादी हो गई।

बड़ी बेटी ने स्वस्थ संतान को जन्म दिया। लेकिन छोटी बेटी की संताने पैदा होने के उपरांत मर जाती थी। इस कारण से दुखी साहुकार की छोटी बेटी पंडित के पास पहुंची। पंडित ने कहा कि आपने पूर्णिमा का व्रत हमेशा अधूरा किया। इसलिए आपकी संताने जन्म लेते ही मर जाती है। पूर्णिमा का पूरा व्रत विधिपूर्वक करने से आपकी संतान जीवित रह सकती हैं। उसने ऐसा ही किया। बाद में उसे एक लड़का पैदा हुआ। जो कुछ दिनों बाद ही फिर से मर गया। उसने लड़के को एक पाटे (पीढ़ा) पर लेटा कर ऊपर से कपड़ा ढंक दिया। फिर बड़ी बहन को बुलाकर लाई और बैठने के लिए वही पाटा दे दीया। बड़ी बहन जब वहां बैठी हुई थी जो उसका लहंगा बच्चे का छू गया।

बच्चा लहंगा छूते ही रोने लगा। यह देखकर बड़ी बहन हैरान हो गई और कहा कि तुमने अपने बेटे को यहाँ क्यों सुला दिया। अगर वह मर जाता है तो मुझ पर कलंक लग जाता। तुम क्या चाहती थी। तब छोटी बहन बोली कि यह तो पहले से मरा हुआ था। तुम्हारे ही भाग्य से यह जीवित हो गया है। तुम्हारा पुण्य से ही यह जीवित हुआ है। उसके बाद नगर में उसने अपनी कहानी बताई तथा पूर्णिमा का विधिवत पूरा व्रत करने की विधि बताई।



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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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