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Sharadiya Navratri- क्यों बनाई जाती है वेश्यालय की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति, जानिए आदिशक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई

Sharadiya Navratri वेश्यालय की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है - मां दुर्गा में समस्त देवताओं की शक्ति से पूर्ण स्वयं की शक्ति है। जिसका कोई भी मुकाबला नही कर सकता है। इसलिए देवी दुर्गा की आराधना करके हम मां से अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और सदगति की राह पर चलने की प्रेरणा लेते है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 23 Sept 2021 11:33 AM IST
Sharadiya Navratri - वेश्यालय की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है?
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सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

वेश्यालय की मिट्टी से मां दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है?

बस कुछ दिन बाद शारदीय नवरात्रि की शुरुआत होने वाली है। इस साल शारदीय नवरात्रि 7 अक्टूबर से शुरू होने वाली है। पूरे देश में मां दुर्गा की आराधना धूमधाम से की जाती है। इस त्योहार की धूम पूरे नौ दिन तक रहती है। दुर्गा पूजा पूर्णरुप से मां दुर्गा की आराधना का पर्व है। इस दौरान मां दुर्गा की मिट्टी मूर्ति स्थापित कर आदिशक्ति का आहवान किया जाता है। नवरात्रि आने के कई महीने पहले से ही नवरात्रि की तैयारी बिहार, बंगाल और झारखंड में होने लगती है। मां दुर्गा की मूर्तियां कलाकार बनाने में जुट जाते हैं। और अपनी तरफ से बेहतरीन कलाकृति बनाने का प्रयास करते हैं।

इसके लिए रचनाकार मां दुर्गा की मूर्तियों में वेश्यालय की मिट्टी का भी इस्तेमाल करते हैं। इस मिट्टी के बिना मां दुर्गा की मूर्ति और उनकी पूजा अधूरी मानी जाती है। यह मूर्ति उतनी ही पवित्र मानी जाती है, जितनी पवित्र मां दुर्गा स्वयं है। लेकिन क्या यह जानते है कि ऐसा क्यों किया जाता है?

मां दुर्गा की मूर्ति में वेश्यालय की मिट्टी का भी इस्तेमाल क्यों?

पूरी दुनिया में वेश्यों को नीचा समझा जाता है, तो मां की प्रतिमा के निर्माण में अपवित्र स्थान की मिट्टी का इस्तेमाल क्यों होता है। दुर्गा पूजा में आराधना के लिए बनने वाली विशेष प्रतिमा बनाने में चार वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। पहली गंगा तट की मिट्टी, गौमूत्र, गोबर और वेश्यालय की मिट्टी या किसी ऐसे स्थान की मिट्टी जहां जाना निषेध हो। ऐसा माना जाता है कि प्राचीन काल में एक वेश्या मां दुर्गा की भक्त थी उसे तिरस्कार से बचाने के लिए मां ने स्वयं आदेश देकर, उसके आंगन की मिट्टी से अपनी मूर्ति स्थापित करवाने की परंपरा शुरू करवाई। साथ ही उसे वरदान दिया कि बिना वेश्यालय की मिट्टी के उपयोग के दुर्गा प्रतिमाओं को पूरा नहीं माना जाएगा।

मां दुर्गा की मूर्ति निर्माण की धार्मिक मान्यताएं

पहली मान्यता यह कहती है कि जब कोई व्यक्ति वेश्यालय में जाता है तो वह अपनी पवित्रता द्वार पर ही छोड़ जाता है। भीतर प्रवेश करने से पूर्व उसके अच्छे कर्म और शुद्धियां बाहर रह जाती है, इसका अर्थ यह हुआ कि वेश्यालय के आंगन की मिट्टी सबसे पवित्र हुई, इसलिए उसका प्रयोग दुर्गा मूर्ति के लिए किया जाता है।

वेश्याओं ने अपने लिए जो जिन्दगी चुनी है वो उनका सबसे बड़ा अपराध है। वेश्याओं को इन बुरे कर्मों से मुक्ति दिलवाने के लिए उनके घर की मिट्टी का उपयोग होता है, मंत्र जाप के जरिए उनके कर्मों को शुद्ध करने का प्रयास किया जाता है।

इस मान्यता के अनुसार बताया जाता है कि वेश्याओं को सामाजिक रूप से बहिष्कृत किया गया है, लेकिन इस त्यौहार के सबसे मुख्य काम में उनके द्वार की मिट्टी उन्हें समाज के सबसे पवित्र काम से जोड़ती है। नवरात्रि में माँ दुर्गा के नौ रूपों के पूजन के लिए जाना जाता हैं। इन नौ दिनों में मातारानी के विभिन्न रूपों का पूजन किया जाता हैं और उनसे आशीर्वाद लिया जाता हैं।


सांकेतिक तस्वीर ( सौ. से सोशल मीडिया)

मां दुर्गा की कथा सुनाते हैं

मां दुर्गा शक्ति का प्रतीक है और जानते है कि इस शक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई थी। इसके लिए मां दुर्गा की उत्पत्ति से जुडी पौराणिक कथा के बारे में जानते हैं, जिसका वर्णन देवी पुराण में है।

आदिशक्ति की उत्पत्ति कैसे हुई, पौराणिक कथा के अनुसार महिसासुर, शुभ-निशुंभ, रक्तबीज जैसे असुरों के अत्याचार से तंग आकर देवताओं ने त्रिदेव की आराधना की। जब देवताओं ने ब्रह्माजी से सुना कि दैत्यराज को यह वर प्राप्त है कि उसकी मृत्यु किसी कुंवारी कन्या के हाथ से होगी, तो सब देवताओं ने अपने सम्मिलित तेज से देवी के इन रूपों को प्रकट किया। विभिन्न देवताओं की देह से निकले हुए इस तेज से ही देवी के विभिन्न अंग बने। भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ, यमराज के तेज से मस्तक के केश, विष्णु के तेज से भुजाएं, चंद्रमा के तेज से स्तन, इंद्र के तेज से कमर, वरुण के तेज से जंघा, पृथ्वी के तेज से नितंब, ब्रह्मा के तेज से चरण, सूर्य के तेज से दोनों पौरों की ऊंगलियां, प्रजापति के तेज से सारे दांत, अग्नि के तेज से दोनों नेत्र, संध्या के तेज से भौंहें, वायु के तेज से कान तथा अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं। फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह प्रदान किया।

इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्जवल हार, कभी न फटने वाले दिव्य वस्त्र, चूड़ामणि, दो कुंडल, हाथों के कंगन, पैरों के नूपुर तथा अंगुठियां भेंट कीं। इन सब वस्तुओं को देवी ने अपनी अठारह भुजाओं में धारण किया। मां दुर्गा इस सृष्टि की आद्य शक्ति हैं यानी आदि शक्ति हैं। पितामह ब्रह्माजी, भगवान विष्णु और भगवान शंकरजी उन्हीं की शक्ति से सृष्टि की उत्पत्ति, पालन-पोषण और संहार करते हैं। अन्य देवता भी उन्हीं की शक्ति से शक्तिमान होकर सारे कार्य करते हैं।

इस तरह मां दुर्गा में समस्त देवताओं की शक्ति से पूर्ण स्वयं की शक्ति है। जिसका कोई भी मुकाबला नही कर सकता है। इसलिए देवी दुर्गा की आराधना करके हम मां से अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं और सदगति की राह पर चलने की प्रेरणा लेते है।

शारदीय नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

नवरात्रि कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त महालया के बाद आश्विन शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होने वाली नवरात्रि का पहला दिन बहुत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन ही कलश की स्थापना की जाती है। मान्यता है कि कलश में त्रिदेव का वास होता है और कलश स्थापित कर भगवान गणेश समेत ब्रह्मा विष्णु का आह्वान किया जाता है। इस दिन शुभ मुहूर्त में सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर मां दुर्गा के आहवान से पहले कलश स्थापित करने का विधान है। कलश स्थापित करने के लिए घर के मंदिर की साफ-सफाई करके एक सफेद या लाल कपड़ा बिछाएं।उसके ऊपर एक चावल की ढेरी बनाएं। एक मिट्टी के बर्तन में थोड़े से जौ बोएं और इसका ऊपर जल से भरा हुआ कलश स्थापित करें। कलश पर रोली से स्वास्तिक बनाएं, कलावा बांधे. एक नारियल लेकर उसके ऊपर चुन्नी लपेटें और कलावे से बांधकर कलश के ऊपर स्थापित करें। कलश के अंदर एक साबूत सुपारी, अक्षत और सिक्का डालें। अशोक के पत्ते कलश के ऊपर रखकर नारियल रख दें। नारियल रखते हुए मां दुर्गा का आवाह्न करना न भूलें। अब दीप जलाकर कलश की पूजा करें। फिर उसके बाद नौ दिनों के व्रत करने का मन हो तो संकल्प लेकर सप्तशती की पाठ करें।

नवरात्रि में कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त

प्रतिपदा तिथि प्रारम्भ – 06 अक्टूबर 2021 को 04:34 PM बजे से

प्रतिपदा तिथि समाप्त – 07 अक्टूबर 2021 को 01:46 PM बजे तक

आश्विन कलश स्थापना गुरुवार, अक्टूबर 7, 2021 को शुभ मुहूर्त – 06:17 AM से 07:07 AM

कन्या लग्न में अभिजित मुहूर्त – 11:45 AM से 12:32 PM



Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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