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20 जनवरी का धार्मिक दृष्टि से है बहुत महत्व, इस दिन करें ये काम होगा हर पाप का नाश

काले​ तिल से विष्णु की पूजा करने का व्रत षटतिला एकादशी है। इस साल 20 जनवरी 2020 को पड़ रहा है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि षटतिला एकादशी के नाम से जान जाती है। इस दिन भगवान ​विष्णु और श्रीकृष्ण की आराधना विधिपूर्वक की जाती है। पूजा के समय काले तिल के प्रयोग का विशेष महत्व होता है।

suman
Published on: 18 Jan 2020 2:07 AM GMT
20 जनवरी का धार्मिक दृष्टि से है बहुत महत्व, इस दिन करें ये काम होगा हर पाप का नाश
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जयपुर: काले​ तिल से विष्णु की पूजा करने का व्रत षटतिला एकादशी है। इस साल 20 जनवरी 2020 को पड़ रहा है। माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि षटतिला एकादशी के नाम से जान जाती है। इस दिन भगवान ​विष्णु और श्रीकृष्ण की आराधना विधिपूर्वक की जाती है। पूजा के समय काले तिल के प्रयोग का विशेष महत्व होता है। षटतिला एकादशी के दिन काले तिल का प्रयोग करने से सभी पापों का नाश होता है। इस दिन पूजा में काली गाय का भी महत्व होता है।

समय

षटतिला एकादशी तिथि 20 जनवरी दिन सोमवार को सुबह 02:51 से शुरू होगी और समापन 21 जनवरी दिन मंगलवार को सुबह 02:05 तक होगी। षटतिला एकादशी के दिन तिल का उबटन, तिल वाले पानी से स्नान, तिल से हवन, भोजन में तिल का प्रयोग, तिल वाले जल का पान और तिल का दान करने का विधान है।

इस एकादशी पर ब्राह्मण को घड़ा, छाता, तिल से भरा बर्तन दान करना चाहिए। यदि संभव हो तो काली गाय दान में देनी चाहिए। इस दिन काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या तथा द्वेष त्याग कर भगवान का स्मरण करें। इस व्रत के प्रभाव से शारीरिक शुद्धि और आरोग्यता की प्राप्ति होती है। अन्न, तिल दान करने से धन-धान्य में वृद्धि होती है।

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एकादशी के दिन स्नान के बाद भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण का मन में स्मरण करने के बाद षटतिला एकादशी व्रत का संकल्प लें। दशमी के दिन तिल मिश्रित गाय के गोबर से 108 उपले बनाएं। फिर एकादशी को व्रत संकल्प के साथ भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा करें। उन्हें चन्दन, अरगजा, कपूर, नैवेद्य आदि से पूजा करें। फिर श्रीकृष्ण नाम का उच्चारण करते हुए कुम्हड़ा, नारियल अथवा बिजौर के फल से विधिपूर्वक पूजा कर अर्घ्य दें। उड़द और तिल मिश्रित खिचड़ी का भोग लगाएं और प्रसाद स्वरूप बाट दें। एकादशी को रात में श्रीहरि का भजन-कीर्तन करें। रात के समय तिल मिश्रित गाय के गोबर से बने 108 उपलों का उपयोग हवन में करें। हवन के समय 108 बार “ऊं नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जाप करें। अगले दिन सुबह पारण कर व्रत खोलें।

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कथा

पुलस्‍त्‍य ऋषि ने यह कथा दालभ्य ऋषि से कही थी जो इस प्रकार है, प्राचीनकाल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी। वह सदैव व्रत किया करती थी। एक समय वह एक मास तक व्रत करती रही। इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया। यद्यपि वह अत्यंत बुद्धिमान थी तथापि उसने कभी देवताअओं या ब्राह्मणों के निमित्त अन्न या धन का दान नहीं किया था। इससे मैंने सोचा कि ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है, अब इसे विष्णुलोक तो मिल ही जाएगा परंतु इसने कभी अन्न का दान नहीं किया, इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है।

भगवान ने आगे कहा- ऐसा सोचकर मैं भिखारी के वेश में मृत्युलोक में उस ब्राह्मणी के पास गया और उससे भिक्षा माँगी। वह ब्राह्मणी बोली- महाराज किसलिए आए हो? मैंने कहा- मुझे भिक्षा चाहिए। इस पर उसने एक मिट्टी का ढेला मेरे भिक्षापात्र में डाल दिया। मैं उसे लेकर स्वर्ग में लौट आया। कुछ समय बाद ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग में आ गई। उस ब्राह्मणी को मिट्टी का दान करने से स्वर्ग में सुंदर महल मिला, परंतु उसने अपने घर को अन्नादि सब सामग्रियों से शून्य पाया। घबराकर वह मेरे पास आई और कहने लगी कि भगवन् मैंने अनेक व्रत आदि से आपकी पूजा की परंतु फिर भी मेरा घर अन्नादि सब वस्तुओं से शून्य है। इसका क्या कारण है? इस पर मैंने कहा- पहले तुम अपने घर जाओ। देवस्त्रियाँ आएँगी तुम्हें देखने के लिए। पहले उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुन लो, तब द्वार खोलना। मेरे ऐसे वचन सुनकर वह अपने घर गई। जब देवस्त्रियाँ आईं और द्वार खोलने को कहा तो ब्राह्मणी बोली- षटतिला एकादशी का माहात्म्य मुझसे कहो।

उनमें से एक देवस्त्री कहने लगी कि मैं कहती हूँ। जब ब्राह्मणी ने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना तब द्वार खोल दिया। देवांगनाओं ने उसको देखा कि न तो वह गांधर्वी है और न आसुरी है वरन पहले जैसी मानुषी है। उस ब्राह्मणी ने उनके कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत किया। इसके प्रभाव से वह सुंदर और रूपवती हो गई तथा उसका घर अन्नादि समस्त सामग्रियों से युक्त हो गया।

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