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Sheetala Ashtami 2024 : मौसम विकारों से होने वाले विकारों को दूर करती माता शीतला
Sheetala Ashtami 2024: शीतला अष्टमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है।
Sheetala Ashtami 2024:होली के एक सप्ताह बाद अष्टमी तिथि को आने वाला शीतला अष्टमी का पर्व पूरे उतरी भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। शीतला अष्टमी चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है।पौराणिक मान्यताओं के अनुसार शीतला माता की पूजा करने एवं व्रत रखने से चिकन पॉक्स यानी माता, खसरा, फोड़े, नेत्र रोग नहीं होते है। माता इन रोगों से रक्षा करती है। माता शीतला को माँ भगवती का ही रूप माना जाता है। अष्टमी के दिन महिलाएं सुबह ठण्डे जल से स्नान करके शीतला माता की पूजा करती है और पूर्व रात्रि को बनाया गया बासी भोजन (दही, रबड़ी, कड़ी चावल, हलवा, पूरी, गुलगुले) का भोग माता के लगाया जाता है। ठण्डा भोजन खाने के पीछे भी एक धार्मिक मान्यता भी है कि माता शीतला को शीतल, ठण्डा व्यंजन और जल पसन्द है। इसलिए माता को ठण्डा (बासी) व्यंजन का ही भोग लगाया जाता है।परिवार के सभी सदस्य भी ठण्डे पानी से स्नान करते है।रात में बनाया हुआ बासी भोजन ही करते हैं। इससे माता शीतला प्रसन्न होती है।
यह ऋतु का अंतिम दिन होता है। ऋतु परिवर्तन से मानव शरीर में विभिन्न प्रकार के विकार और रोग होने स्वभाविक है। इन विकारों को दूर करने एवं इनसे रक्षा करने के लिए माता शीतला का व्रत और पूजन किया जाता है। माता शीतला इन विकारों से रक्षा करती है। वहीं वैज्ञानिक तथ्य ये भी है कि इस दिन के बाद से सर्दी की विदाई मानी जाती है। अतः इस दिन अंतिम बार ठण्डा भोजन ग्रहण करने के बाद आगे ठण्डा बासी भोजन खाना गर्मी में हानिकारक होता है। क्योंकि गर्मी में वह भोजन खराब हो जाता है। इस तरह धार्मिक और वैज्ञानिक तथ्यों के बीच इस पारम्परिक त्यौहार ने देश मे एक विशिष्ट स्थान बनाया हुआ है, जो हमारी समृद्ध संस्कृति की महानता को और समृद्ध कर रहा है
माता की पौराणिक कथा
शीतला माता के संदर्भ में अनेक कथाएँ प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार एक दिन माता ने सोचा कि धरती पर चल कर देखें की उसकी पूजा कौन-कौन करता है। माता एक बुढ़िया का रूप धारण कर एक गांव में गई। माता जब गांव में जा रही थीं, तभी ऊपर से किसी ने चावल का उबला हुआ पानी डाल दिया। माता के पूरे शरीर पर छाले हो गए और पूरे शरीर में जलन होने लगी। माता ने दर्द में कराहते हुए गांव में सभी से सहायता माँगी। लेकिन किसी ने भी उनकी नहीं सुनी। गांव में कुम्हार परिवार की एक महिला ने जब देखा कि एक बुढ़िया दर्द से कराह रही है, तो उसने माता को बुलाकर घर पर बैठाया । बहुत सारा ठण्डा जल माता के ऊपर डाला। ठण्डे जल से माता को उन छालों की पीड़ा में काफी राहत महसूस हुई। फिर कुम्हारिन महिला ने माता से कहा माता मेरे पास रात के दही और राबड़ी है, आप इनको खाये। रात के रखे दही और ज्वार की राबड़ी खा कर माता को शरीर में काफी ठंडक मिली। कुम्हारिन ने माता को कहा माता आपके बाल बिखरे है इनको गूथ देती हूँ।
वो जब बाल बनाने लगी तो बालों के नीचे छुपी तीसरी आँख देख कर डर कर भागने लगी। तभी माता ने कहा बेटी डरो मत में शीतला माता हूँ। मैं धरती पर ये देखने आई थी कि मेरी पूजा कौन करता है। फिर माता असली रूप में आ गई। कुम्हारिन महिला शीतला माता को देख कर भाव विभोर हो गई। उसने माता से कहा माता मैं तो बहुत गरीब हूँ। आपको कहा बैठाऊँ। मेरे पास तो आसन भी नहीं है। माता मुस्कुराकर कुम्हारिन के गधे पर जाकर बैठ गई। और झाडू से कुम्हारिन के घर से सफाई कर डलिया में डाल कर उसकी गरीबी को बाहर फेंक दिया। माता ने कुम्हारिन की श्रद्धा भाव से खुश हो कर वर माँगने को कहा। कुम्हारिन ने हाथ जोड़कर कहा माता आप वर देना चाहती है तो आप हमारे गांव में ही निवास करे और जो भी इंसान आपकी श्रद्धा भाव से सप्तमी और अष्टमी को पूजा करे और व्रत रखे तथा आपको ठण्डा व्यंजन का भोग लगाएं उसकी गरीबी भी ऐसे ही दूर करें। पूजा करने वाली महिला को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दें। माता शीतला ने कहा बेटी ऐसा ही होगा और कहा कि मेरी पूजा का मुख्य अधिकार कुम्हार को ही होगा। तभी से यह परंपरा चल रही है।यह गांव अब राजस्थान में शील की डूंगरी नाम से प्रचलित है। जहाँ माता शीतला का भव्य मंदिर बना हुआ है। सप्तमी पर मंदिर पर विशाल मेला लगता है। काफी संख्या में श्रद्धालु माता के दर्शन कर मनौती माँगते है, पूरी होने पर चढ़ावा चढ़ाते है।
( लेखिका धर्म शास्त्र मर्मज्ञ एवं प्रख्यात ज्योतिषी हैं ।)