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बसौड़ा मनाने से मां शीतला होती है प्रसन्न, नहीं होता कोई रोग,ज्वर
जयपुर: शीतला सप्तमी का बहुत महत्व है। हर साल यह पर्व चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है। इसके अगले दिन यानी अष्टमी को बासोड़ा या शीतला अष्टमी का पर्व मनाया जाता है। सप्तमी के दिन घरों में कई तरह के पकवान बनाए जाते हैं। इनमें हलवा, पूरी, दही बड़ा, पकौड़ी, पुए रबड़ी आदि बनाया जाता है। अगले दिन सुबह महिलाएं इन चीजों का भोग शीतला माता को लगाकर परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन शीतला माता समेत घर के सदस्य भी बासी भोजन ग्रहण करते हैं। इसी वजह से इसे बासौड़ा पर्व भी कहा जाता है।
मान्यता है कि इस दिन के बाद से बासी खाना खाना उचित नहीं होता है। यह सर्दियों का मौसम खत्म होने का संकेत होता है और इसे इस मौसम का अंतिम दिन माना जाता है। इस पूजा को करने से शीतला माता प्रसन्न होती हैं और उनके आर्शीवाद से दाहज्वर, पीतज्वर, विस्फोटक, दुर्गंधयुक्त फोड़े, शीतला की फुंसियां, शीतला जनित दोष और नेत्रों के समस्त रोग दूर हो जाते हैं।
शीतला माता, मां भगवती दुर्गा का ही रूप हैं। माता शीतला को देवी दुर्गा और देवी पार्वती के अवतार के रूप में जाना जाता है। शीतला माता का व्रत रखने से ज्वर, नेत्र विकार, चेचक आदि रोग ठीक हो जाते हैं। शीतला सप्तमी के दिन घरों में चूल्हा नहीं जलाया जाता, चूल्हे की पूजा की जाती है। इस व्रत को रखने से शीतला मां प्रसन्न होती हैं। इस दिन के बाद से बासी खाना नहीं खाया जाता। यह ऋतु का अंतिम दिन है जब बासी खाना खा सकते हैं।माता शीतला रोगों को दूर करने वाली हैं। इस व्रत में परिवार के लिए भोजन पहले दिन ही बनाया जाता है और इस दिन बासी भोजन ग्रहण किया जाता है।
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शीतला सप्तमी पर व्रती को प्रात: काल शीतल जल से स्नान करना चाहिए। विधि-विधान से मां शीतला की पूजा करनी चाहिए। रात्रि में माता का जागरण करें। शीतला सप्तमी पर इस बात का विशेष ध्यान रखें कि परिवार का कोई भी सदस्य गलती से भी गरम भोजन न ग्रहण करे। इस दिन ठंडा भोजन किए जाने की परंपरा है। माता शीतला के रूप में पथवारी माता को पूजा जाता है। मां से कामना की जाती है कि मां हमेशा रास्ते में हमें सुरक्षित रखें। हम कभी अपने रास्ते से ना भटकें। माता का व्रत रखने से संतान की प्राप्ति होती है। मान्यता है कि जिस घर में शुद्ध मन से शीतला माता की पूजा होती है वहां हर प्रकार से सुख समृद्धि बनी रहती है। जिस घर में चेचक से कोई बीमार हो, वहां पूजा नहीं करनी चाहिए। माता शीतला को मीठे चावल का प्रसाद चढ़ाया जाता है।
इस दिन सिर नहीं धोते, सिलाई नहीं करते, सुई नहीं पिरोते, चक्की या चरखा नहीं चलाते हैं। शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलता है। शीतला मां सद्बुद्धि, स्वास्थ्य, स्वच्छता का संदेश देने वाली देवी हैं। शीतला माता अपने हाथों में कलश, सूप, मार्जन (झाडू) और नीम के पत्ते धारण करती हैं।हाथ में मार्जन होने का अर्थ है कि हम लोगों को भी सफाई के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य मिलता है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को हवा की जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोड़ों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है, यही कलश का महत्व है।