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तंत्र साधना के लिए अनिवार्य है स्त्री पुरुष के भेद से ऊपर उठना
Bhagavad Gita: प्रथमत: मूलाधार चक्र में, जहां से यह ऊर्जा जननेंद्रिय के मार्ग से नीचे प्रवाहित होकर प्रकृति में विलीन हो जाती है और यदि यही ऊर्जा भौंहों के मध्य स्थित आज्ञा चक्र से जब ऊपर को प्रवाहित होती है तो सहस्रार स्थित ब्रह्म से एकीकृत हो जाती है।
श्री कृष्ण ने गीताजी में यही बोध दिया :-
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।
जो मुझमें समर्पित होते है में उनके अधीन हो जाता हूं। ऐसे दिव्य गुणों मनोभाव से सृजित सभी स्त्री शक्तिओ को वंदन करता हु। आप सभी धर्मप्रेमी जनो पर महामाया आदि शक्ति की सदैव कृपा रहे यही प्रार्थना सह अस्तु .....श्री मात्रेय नमः।
चुंबकीय शक्ति ही आद्याशक्ति है, जिसे अंतर्निहित करके काम शक्ति को आत्मशक्ति में परिवर्तित किया जाता है। यह शक्ति दो केंद्रों में विलीन होती है।
प्रथमत: मूलाधार चक्र में, जहां से यह ऊर्जा जननेंद्रिय के मार्ग से नीचे प्रवाहित होकर प्रकृति में विलीन हो जाती है और यदि यही ऊर्जा भौंहों के मध्य स्थित आज्ञा चक्र से जब ऊपर को प्रवाहित होती है तो सहस्रार स्थित ब्रह्म से एकीकृत हो जाती है।
यह संपूर्ण संसार मिथुनजन्य है एवं इसके समस्त पदार्थ स्त्री तथा पुरुष में विभाजित हैं। इन दोनों के बीच आकर्षण शक्ति ही संसार के अस्तित्व का मूलाधार है जिसे आदि शंकराचार्यजी ने सौंदर्य लहरी के प्रथम श्लोक में व्यक्त किया है।
शिव:शक्तया युक्तो यदि भवति शक्त: प्रभवितुं।
न चेदेवं देवो न खलु कुशल: स्पन्दितुमपि।
यह आकर्षण ही कामशक्ति है जिसे तंत्र में आदिशक्ति कहा गया है। यह परंपरागत पुरुषार्थ (धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष) में से एक है। तंत्र शास्त्र के अनुसार नारी इसी आदिशक्ति का साकार प्रतिरूप है। अष्टदल भेदन, षटचक्र भेदन व तंत्र साधना में स्त्री पुरुष दोनो एक दूसरे के पूरक हैं। इसलिए दोनो की उपस्थिति अनिवार्य है, और साधना स्थूल शरीर द्वारा न होकर सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है।
तंत्र साधना का समागम क्रिया सामान्य यौनक्रिया नही सम - आगम यानि स्त्री पुरुष एक जैसे तंत्र क्रिया द्वारा एक शक्ति बनाकर ब्रम्ह से सायुज्य होना है, इस समागम में ईश्वरीय संबंध होता है, जो सूक्ष्म शरीर द्वारा ही संभव है। सामान्य यौनक्रिया बस वासना से प्रेरित होता है जो सिर्फ स्थूल शरीर का अनुभव है। तंत्र साधना में समागम क्रिया द्वारा भैरव अपने हृदय की ऊर्जा को अपने भैरवी के हृदय में देते हैं और भैरवी अपने हृदय की ऊर्जा भैरव को। दो आत्माओं के बीच ऊर्जा का एक बंध यानि वलय बन जाता है।
तंत्र साधना में समागम के लिए, आपको मानसिक रूप से पवित्र होना पड़ेगा, आपके हृदय में प्रेम, श्रद्धा और समर्पण होना चाहिए, वासना नही, क्योंकि तंत्र साधना में समागम क्रिया बहुत ही उच्च कोटि के साधक साधिकाओं के लिए है जिसका उद्देश्य सिर्फ और अपने इष्ट से सायुज्य प्राप्त करना होता है।
ज्यादातर साधना इस प्रकार की हैं कि वो बस व्यक्तिगत ही हैं, मतलब सिर्फ एक व्यक्ति ही आध्यात्मिक उन्नति कर सकता है और उसके लिए भी उसे सन्यास की जरूरत होगी। लेकिन तंत्र एकमात्र ऐसी साधना है जिसमे स्त्री पुरुष, साथ में आध्यात्मिक उन्नति कर सकते हैं, तंत्र साधना गृहस्थ और सन्यासी दोनों के लिए अलग अलग मार्ग से है, लेकिन इस साधना के लिए स्त्री पुरुष, के बीच गहरा और निस्वार्थ प्रेम आवश्यक है और दोनों का ही ईश्वर के लिए समर्पण भी आवश्यक है।
हमारे सूक्ष्म शरीर भी स्त्री तत्व और पुरुष तत्व यानि दो तत्व से मिलकर बना है, स्त्री तत्व को शक्ति और पुरुष तत्व को शिव कहा गया है। मोक्ष के लिए जरूरी है कि हमारे दोनों तत्व व्यवस्थित हो जाए और ऊर्जा के प्रबाह के लिए मार्ग खुल जाए जिसे हम कुंडलिनी जागरण भी कहते हैं।