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अपने कुल से लड़ना है यह भाव जगाकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जगाया, भगवद्गीता - (अध्याय-1/ श्लोक संख्या-25)

Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1: अर्जुन की माता का नाम कुंती था, पर वास्तव में उसका नाम पृथा था। पृथा शूरसेन की सुंदर कन्या थी। शूरसेन ने अपनी कन्या को अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुन्तिभोज को दे दिया था। कुंतिभोज की धर्म पुत्री होने के कारण पृथा ही कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई।

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Published on: 9 April 2023 11:10 PM IST
अपने कुल से लड़ना है यह भाव जगाकर श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जगाया, भगवद्गीता - (अध्याय-1/ श्लोक संख्या-25)
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Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1 (Pic: Newstrack)

Shreemad Bhagavad Gita Adhyay 1:

भीष्म द्रोण प्रमुखत: सर्वेषां च महीक्षिताम्।

उवाच पार्थ पश्यैतान्समवेतान्कुरुनिति।।२५।।

२४-२५ दोनों श्लोकों का सरलार्थ - दोनों सेनाओं के मध्य में भीष्म - द्रोणाचार्य तथा संपूर्ण राजाओं के सामने उत्तम रथ को खड़ा करके हृषिकेश ( श्रीकृष्ण ) ने इस प्रकार कहा - हे पार्थ ! युद्ध के लिए इकट्ठे हुए इन कौरवों को देखो।

निहितार्थ - अर्जुन की माता का नाम कुंती था, पर वास्तव में उसका नाम पृथा था। पृथा शूरसेन की सुंदर कन्या थी। शूरसेन ने अपनी कन्या को अपनी बुआ के संतानहीन पुत्र कुन्तिभोज को दे दिया था। कुंतिभोज की धर्म पुत्री होने के कारण पृथा ही कुंती के नाम से प्रसिद्ध हुई। श्री कृष्ण के पिता वसुदेव शूरसेन के भाई थे। अतः पृथा ( कुंती ) श्रीकृष्ण की बुआ ( फुआ ) हुई। पार्थ कहकर श्री कृष्ण अर्…जुन के प्रति अपने संबंध को इंगित कर रहे हैं। अर्जुन श्री कृष्ण को केवल सारथी ही न समझे।

प्रभु श्रीकृष्ण "लीला पुरुषोत्तम " के नाम से प्रसिद्ध हैं। श्रीकृष्ण ने क्षण - क्षण में भिन्न - भिन्न भूमिकाएं अदा की तथा नई-नई अलौकिक लीलाएं दिखाई। त्रिलोकी का सूत्रधार बनकर प्रकृति - नटी को नचाने में तो भगवान ने कमाल ही कर दिया। जन्म से ही लीला रचाने में वे पारंगत थे, तभी तो लीला - पुरुषोत्तम के नाम से वे जगत - विख्यात हुए। इसका विस्तृत विवरण महा भागवत पुराण में उल्लेखित है। श्री कृष्ण ने अपने वचन - ‘पार्थ ! पश्य एतान समवेतान् कुरुन् इति'

के माध्यम से अपनी महामाया की लीला दिखाई। श्री कृष्ण जानते थे कि अर्जुन के मन में दुर्बलता छुपी हुई है। अगर अभी उसके चित्त की शुद्धि नहीं की गई, तो पीछे समय पाकर कभी भी वह बुद्धि पर अधिकार जमा लेगी, जिसके फलस्वरूप पांडवों की विशेष क्षति हो जाए। अर्जुन की करुणाजनित कायरता को चित्त से निकालने के लिए श्रीकृष्ण ने वाणी - रूप में जो लीला प्रकट की, उसी का नाम भगवद्गीता है।

इस अद्भुत शाश्वत जागतिक - परमार्थिक ज्ञान का प्रकाश का प्रकटीकरण किस प्रकार हो ? - इसके लिए श्रीकृष्ण ने ऐसे स्थान का चयन किया, जहां भयंकर मारकाट होने वाली थी। इस प्रकार भगवत् वाणी के प्रकटीकरण का साक्षी बना - कुरुक्षेत्र का रण क्षेत्र। कोलाहल भरे विषम परिस्थिति में जगत से निर्लिप्त होकर शांत अवस्था में भी अमृतमय संदेश दिया जा सकता है - इसे भगवान श्रीकृष्ण के अलावा और कौन कर सकता है ?

अर्जुन ने पूछा था - किन के साथ लड़ना है ? इसका उत्तर देते हुए श्री कृष्ण कहते हैं - देख ! अपने कुरुवंश के लोगों को देख ! श्रीकृष्ण को तो कहना चाहिए था - अपने इन शत्रुओं को देख। ऐसा न कहकर श्रीकृष्ण ने एक अलग अद्भुत बात कह दी। अप्रत्यक्ष रुप से श्री कृष्ण ने संकेत कर दिया कि अर्जुन तुम्हें तो अपने कुल के लोगों के साथ ही युद्ध करना है। हम सभी जानते हैं कि अर्जुन स्वयं कुरुकुल के थे, कुरू वंश के गौरव थे तथा उनके सभी आत्मीय उसी कुरुकुल के थे।

अर्जुन के अंतः करण में व्याप्त सू्क्ष्म अहंकार जग कर अर्जुन को ही दिशा-निर्देश देने लगा था, जिसके फलस्वरूप अर्जुन ने श्री कृष्ण को ही आदेश दे डाला। यह तो एक तरह से प्रभु की अवमानना थी, पर प्रभु ने बड़े ही अच्छे ढंग से अपने सखा एवं भक्त अर्जुन को इस अपराध से बचा लिया तथा भगवद्गीता के उद्गार हेतु एक उत्तम पात्र के रूप में उसका उपयोग भी कर लिया।

श्रीकृष्ण ने एक ओर पार्थ कहकर अर्जुन को मातृ-कुल से जोड़ा, तो दूसरी ओर कुरु कहकर पितृ-कुल से भी जोड़ दिया। कुल का प्रभाव अर्जुन पर इतना पड़ता है कि अर्जुन इसी अध्याय के सात श्लोकों में कुल शब्द का प्रयोग करते हैं।



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