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Shri Ram Ki Bhakti: श्रीराम जी किसके भक्त थें, किससे मांगा था अनंत काल की भक्ति का वरदान जानिए मर्यादित श्रीराम की यह कथा..
Shri Ram Ki Bhakti: श्रीराम का जन्म इक्ष्वाकु कुल में हुआ था । उन्होंने मानव जन्म लेकर एक मर्यादित जीवन जिया था। उनकी भक्ति-शक्ति और दयालुता की कोई सीमा नहीं थी। जानते है उनकी भक्ति के बारे में
Shri Ram Ki Bhakti: हिंदू धर्म में हनुमान जी को सबसे बड़ा भक्त वत्सल माना गया है, लेकिन अगर उनसे उपर भी किसी को रखा जाये तो वह है श्रीराम। जिनकी भगवान शिव के प्रति भक्ति। कहते हैं कि बिना भगवान के भक्त अधूरा होता है उसी तरह भगवान भी भक्त के बिना अधूरे ही रहते हैं। भगवान हमेशा अपने भक्तों की किसी ना किसी माध्यम से परीक्षा लेते ही रहते हैं। यदि भगवान और भक्त की बात की जाये तो महादेव और विष्णु जी का भगवान और भक्त का जोड़ा हमेशा से ही विलक्षण रहा है और हमेशा दोनों ही किसी ना किसी माध्यम से एक दूसरे की परीक्षा लेते ही रहते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि एक बार भगवान शिव ने स्वयं विष्णु भगवान के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम जी की परीक्षा ली थी ?
श्री राम है सबसे बड़े भक्त
त्रेतायुग में जब श्रीराम लंकापति रावण के अत्याचार से मुक्त कराकर अयोध्या लौटे थे। तो उसके बाद उन्होंने एक विशेष ब्राह्मण भोज रखा। जिसमें सभी ब्राम्हणों को उनकी पसंद के मुताबिक खाना तब तक खिलाया जब तक वो संतुष्ट न हो जाए। हनुमान जी और लक्ष्मण सभी ब्राम्हणों की सेवा में लगे हुए थे। उसी समय भगवान शिव के मन में एक शरारत सूझी और वे ब्राह्मण का रूप धारण करके श्रीराम के उस ब्राह्मण भोज में पहुँचे। शुरुआत में उन्हें उनकी पसंद का भोजन दिया गया, लेकिन वे थे तो महादेव ही उनका भोजन तो समाप्त नहीं हुआ। परन्तु श्रीराम के अन्न के भंडार समाप्त हो गए। अंत में जब कुछ नहीं बचा तब हनुमान जी श्रीराम से और अन्न लाने का आदेश लेने के लिए उनके पास पहुँचे। श्रीराम जी को पता चल गया कि वे एक साधारण ब्राम्हण नहीं, बल्कि अवश्य ही कोई देवता हैं। यह सोचकर उन्होंने स्वयं देवी सीता को उन ब्राह्मण को भोजन खिलाने के लिए बुलाया।
जैसे ही सीता जी ने उन्हें पहला निवाला खिलाया, ब्राह्मण महाराज का पेट तुरंत भर गया और उन्हें नींद भी आने लगी, परन्तु बहुत अधिक खा लेने ले कारण उन्होंने अपना भार उठाने में असमर्थता जताई। तब श्रीराम ने हनुमान से उन्हें उठाकर बिस्तर पर लिटाने के लिए कहा, लेकिन हज़ारों पहाड़ों को एक साथ आराम से उठा सकने वाले हनुमान जी भगवान रूद्र का वजन नहीं उठा पाये। अंत में लक्ष्मण जी ने अपने प्रभु श्रीराम और महादेव का ध्यान करते हुए उन्हें उठाया तो वह उठ गए और लक्ष्मण ने उन्हें उठाकर बिस्तर पर लेटा दिया। हनुमान जी और लक्ष्मण जी ब्राह्मण रुपी शिव जी के पैर दबाने लगे और सीता जी उन्हें पानी पिलाने लगीं परन्तु पानी पीने के बजाय उन ब्राह्मण ने सीता जी के ऊपर ही कुल्ला कर दिया। यह देखकर सीता जी उन्हें प्रणाम करके बोलीं कि यह मेरा सौभाग्य है कि आपने मुझ पर कुल्ला किया मैं आपके इस उपकार के लिए आपके चरणों को प्रणाम करना चाहती हूँ।
पर जैसे ही सीता जी उनके पैरों पर झुकीं शिव जी अपने वास्तविक रूप में आ गए। यह देखकर सभी ने उनके चरण स्पर्श किये। शिव जी ने श्रीराम से कहा कि इतना हो जाने के बाद भी आपको क्रोध नहीं आया, आप वास्तव में मर्यादा पुरुषोत्तम हैं । इसलिए आप मुझसे कोई भी वरदान माँग सकते हैं । श्रीराम जी ने वरदान माँगने से मना करते हुए कहा कि यदि आप देना ही चाहते हैं तो मुझे आपकी अनंत काल तक भक्ति करने का आशीर्वाद दीजिये।
यह सुनकर शिव जी ने उनसे कहा कि मुझे और आपको कोई अलग नहीं कर सकता परन्तु क्योंकि सीता जी ने मुझे भोजन कराया है इसलिए उन्हें मुझसे अवश्य ही कोई वरदान माँगना होगा। यह सुनकर सीता जी ने शिव जी से कहा कि यदि आप हम सबकी भक्ति से प्रसन्न हैं तो आप हमारे यहाँ कुछ समय के लिए कथा सुनाने का कार्य कर हम सबको आपकी और सेवा करने का मौका दीजिये।