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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: गीता अर्थात् जो गाई गई है, जिसमें है भगवान की वाणी (भगवद्गीता - पुष्पिका भाग - 1 )

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: गवद्गीता के प्रत्येक अध्याय के अंत में पुष्पिका दी गई है, जिसमें उस अध्याय का नामकरण हुआ है। प्रथम अध्याय की पुष्पिका निम्नलिखित है।

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Published on: 7 April 2023 6:53 PM GMT
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1: गीता अर्थात् जो गाई गई है, जिसमें है भगवान की वाणी (भगवद्गीता - पुष्पिका भाग - 1 )
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Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 pushpika bhaag 1 (Pic: Social Media)

Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 pushpika bhaag 1: भगवद्गीता के प्रत्येक अध्याय के अंत में पुष्पिका दी गई है, जिसमें उस अध्याय का नामकरण हुआ है। प्रथम अध्याय की पुष्पिका निम्नलिखित है : -

ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ब्रह्मविद्यायां योगशास्त्रे श्रीकृष्णार्जुनसंवादे अर्जुनविषादयोगो नाम प्रथमोऽध्याय:।।

सरलार्थ -: ॐ तत् सत् स्वरूप परमेश्वर का स्मरण करते हुए श्रीमद्भगवद्गीता उपनिषद में, जो कि ब्रह्मविद्या, योग - शास्त्र तथा श्रीकृष्ण - अर्जुन संवाद है, "अर्जुन का विषाद योग" नामक प्रथम अध्याय समाप्त हुआ।

निहितार्थ - पिछले अंक में बताया जा चुका है कि महाभारत में अनेक गीताएं हैं। अन्य गीताओं से अलग एवं विशिष्ट होने के कारण इस गीता में भगवत् लिखा गया है अर्थात् यह भगवद्गीता है। समग्र गीता काव्यमय है। कहा गया है - "वाक्यं रसात्मकं काव्यं" अर्थात् रसपूर्ण वाक्य ही काव्य कहलाते हैं। गीता अर्थात् जो गाई गई है। इसमें भगवान की वाणी है।

वाणी चेतना की अमर देन है। वाणी केवल विचारों का प्रकटीकरण ही नहीं होता, वरन् विश्व के मूल चिरंतन सत्य का व्यंजक भी होता है। वाणी की दूसरी प्राचीन संज्ञा वाक् है।

ऋक् - संहिता में उल्लेख है - ' चत्वारि वाक् परिमिता पदानि ------ ' इसी को स्पष्ट करते हुए पंडित नागेश भट्ट जी "परम लघु मंजूषा" में लिखते हैं -

परावाङ्मूलचक्रस्था पश्यन्ती नाभिसंस्थिता।

हृदिस्था मध्यमा ज्ञेया वैखरी कंठदेशगा।।

वाणी के चार भेद हैं - परा, पश्यन्ती, मध्यमा तथा वैखरी।

हम सभी साधारणतः वैखरी में ही बातचीत करते हैं। भगवान ने परा वाणी में कहा है। परा वाणी में कहे जाने के कारण ही आज 5100 वर्ष बीत जाने के बाद भी विश्व के अन्य सभी ग्रंथों की तुलना में भगवद्गीता सर्वाधिक प्रभावी एवं प्रेरक है। भगवान की वाणी तो महाभारत में कई स्थानों पर हैं, पर उन्हें हम भगवत् वाणी के रूप में नहीं देखते। कुरुक्षेत्र के रणक्षेत्र में भगवान श्रीकृष्ण ने परमात्म-भाव में अधिष्ठित होकर ज्ञान, ध्यान, कर्म, भक्ति आदि तत्वों की अमृतमयी आध्यात्मिक धारा प्रवाहित की थी। इसीलिए इस गीता को त्रिकालदर्शी वेदव्यास जी ने हम सभी के बीच भगवद्गीता के रूप में प्रस्तुत किया है।

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