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उपनिषद भी है गीता, भगवद्गीता ( अध्याय - 1/पुष्पिका भाग - 2 )
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 of Pushpika Bhaag 2: भगवद्गीता ग्रंथ के प्रत्येक अध्याय के अंत में पुष्पिका का प्रारंभ "इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वनि" से न होकर "ॐ तत्सदिति ( तत् सत् इति )" से देखने को मिलता है। सभी अध्यायों की पुष्पिका का प्रारंभ "ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ------" से होता है।
Shrimad Bhagwat Geeta Adhyay 1 of Pushpika Bhaag 2: भगवद्गीता को एक स्वतंत्र ग्रंथ के रूप में भी मान्यता मिली हुई है। अतः हमें वर्तमान में भगवद्गीता ग्रंथ के प्रत्येक अध्याय के अंत में पुष्पिका का प्रारंभ "इति श्रीमहाभारते भीष्मपर्वनि" से न होकर "ॐ तत्सदिति ( तत् सत् इति )" से देखने को मिलता है। सभी अध्यायों की पुष्पिका का प्रारंभ "ॐ तत्सदिति श्रीमद्भगवद्गीतासूपनिषत्सु ------" से होता है। अब आइए। पुष्पिका के अंतर्गत आए पदों पर एक दृष्टि डालते हैं।
"ॐ तत् सत्" यह तीनों सच्चिदानंदघन ब्रह्म का नाम है। भगवान ने 17 वें अध्याय के 23 वे श्लोक से 27 वे श्लोक के अंतर्गत इसे बहुत ही अच्छे ढंग से समझाया है। भगवद्गीता के पहले 'श्रीमत्' शब्द लगा हुआ है। 'श्रीमत्' शब्द किसी व्यक्ति, वस्तु अथवा ग्रंथ के आगे लगकर उस व्यक्ति, वस्तु या ग्रंथ की सर्वशोभा की संपन्नता को प्रदर्शित करता है। साधारणतः श्रेष्ठ एवं पवित्र भावों को प्रकट करने वाले ग्रंथों के पूर्व 'श्रीमत्' शब्द का प्रयोग किया जाता है।
वास्तव में श्रीमद्भगवद्गीता क्या है ? इसका उत्तर ही पुष्पिका में वर्णित है। हम जान चुके हैं कि गीता भगवान की वाणी है तथा यह "श्री" से युक्त है। अब कहा जा रहा है कि यह उपनिषद भी है। उपनिषद यानी पास ( निकट ) में बैठ कर दिया गया ज्ञान।
"उप समीपं निषीदति प्राप्नोति - इति उपनिषद" अर्थात् जिसके द्वारा परम समीपभूत ब्रह्म का साक्षात्कार हो, वह हुआ उपनिषद। उपनिषदों का गहन अध्ययन करने वाले जर्मनी के प्रसिद्ध विद्वान और्थर शॉपेनहावर के उद्धरण को प्रस्तुत कर रहा हूं।
In the whole world, there is no study so elevating as that of the Upnishads. It has been the solace of my life. It will be the solace of my death. -- Aurther schopenhaur.
संपूर्ण विश्व में उपनिषदों के समान जीवन को ऊंचा उठाने वाला कोई दूसरा अध्ययन का विषय नहीं है उससे मेरी जीवन को शांति मिली है उन्हीं से मुझे मृत्यु में भी शांति मिलेगी। डॉक्टर एनी बेसेंट ने कहा है - व्यक्तिगत रूप से मैं उपनिषदों को मानव-मस्तिष्क की, दिव्य आभायुक्त मनुष्यों के बुद्धि की सर्वश्रेष्ठ कृति ( उपज ) मानती हूं।
Personally I regard the Upnishads as the highest product of the human mind , the crystallized wisdom of divinely illuminded men. --- Dr. Annie Besant
भगवद्गीता को कुछ विद्वान "गीतोपनिषद" भी कहते हैं। भगवद्गीता किस प्रकार का उपनिषद है ? इस पर एक अच्छा सुभाषित है -
सर्वोपनिषद गावो दोग्धा गोपालनंदन:।
पार्थो वत्स: सुधीर्भोक्ता दुग्धं गीतामृत महत्।।
अर्थात् उपनिषदें गौवें हैं, कृष्ण दूध दूहने वाले हैं, अर्जुन बछड़ा है, सज्जन विद्वान दूध का पान करने वाले हैं। दूध तो गीतारूपी महान अमृत है।