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Sita Navami 2024: सीता नवमी
Sita Navami 2024: जिस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म दिन एक उत्सव के रुप में मनाया जाता है। उसी प्रकार जानकी देवी के जन्म का महत्व है
Sita Navami: उद्भव स्थिति संहार कारिणीं क्लेश हारिणीम्|
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं राम वल्लभाम् ||
जगतजननी मां जानकी के अवतरण दिवस सीता नवमी की आपसभी को हार्दिक शुभकामनाएं।
वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को सीता नवमी या जानकी नवमी कहते हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इसी दिन माता सीता का प्राकट्य हुआ था।
आज ही के दिन पुष्य नक्षत्र में जब राजा जनक ने संतान प्राप्ति की कामना से यज्ञ की भूमि तैयार करने के लिए बिहार राज्य के
( पहले मिथिला राज्य कि हिस्सा रही है )
सीतामढी के पुनौरा में भूमि जोती थी और उसी समय उन्हें पृथ्वी में दबी हुई एक बालिका मिली थी।
जोती हुई भूमि को तथा हल की नोक को सीता कहते हैं।
यही वजह थी कि उनका नाम सीता रखा गया।
जिस प्रकार भगवान श्री राम का जन्म दिन एक उत्सव के रुप में मनाया जाता है।
उसी प्रकार जानकी देवी के जन्म का महत्व है।
जानकी नवमी व्रत सौभाग्यवती स्त्रियां अपने वैवाहिक जीवन की सुख-शान्ति के लिये यह व्रत करती है।
पुरुषों में भगवान श्री राम को आदर्श पुरुष की संज्ञा दी गई है,
और जानकी के आदर्शों पर चलना हर स्त्री की कामना हो सकती है।
जीवन की हर परिस्थिति में अपने पति का साथ देने वाली पतिव्रता स्त्री के रूप में माता जानकी को पूजा जाता है।
कैसे हुआ था माता सीता का जन्म,
जानिए उनके जन्म से जुड़ी ये पौराणिक कहानी !
माता सीता का जन्म - रामायण में माता सीता को जानकी कहकर भी संबोधित किया गया है.
देवी सीता मिथिला के राजा जनक की पुत्री थीं इसलिए उन्हें जानकी भी कहा जाता है।
माता सीता को लक्ष्मी का अवतार माना जाता है,
जिनका विवाह अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र और स्वंय भगवान विष्णु के अवतार भगवान श्रीराम से हुआ था।
विवाह के उपरांत माता सीता को भगवान राम के साथ 14 साल का वनवास झेलना पड़ा।
हालांकि माता सीता के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है।
जिसके अनुसार कहा जाता है कि देवी सीता राजा जनक की गोद ली हुई पुत्री थीं,
जबकि कहीं-कहीं इस बात का जिक्र भी मिलता है कि माता सीता लंकापति रावण की पुत्री थीं.
ऐसे में यह सवाल उठता है कि आखिर माता सीता का जन्म कैसे हुआ था.
तो चलिए इस लेख के जरिए हम आपको बताते हैं माता सीता के जन्म से जुड़ी दो पौराणिक कथाएं.
माता सीता का जन्म और उससे जुड़ी पहली पौराणिक कथा
वाल्मिकी रामायण के अनुसार एक बार मिथिला में पड़े भयंकर सूखे से राजा जनक बेहद परेशान हो गए थे,
तब इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए उन्हें एक ऋषि ने यज्ञ करने और धरती पर हल चलाने का सुझाव दिया.
उस ऋषि के सुझाव पर राजा जनक ने यज्ञ करवाया और उसके बाद राजा जनक धरती जोतने लगे.
तभी उन्हें धरती में से सोने की डलिया में मिट्टी में लिपटी हुई एक सुंदर कन्या मिली.
राजा जनक की कोई संतान नहीं थी, इसलिए उस कन्या को हाथों में लेकर उन्हें पिता प्रेम की अनुभूति हुई.
राजा जनक ने उस कन्या को सीता नाम दिया और उसे अपनी पुत्री के रूप में अपना लिया।
माता सीता का जन्म और उससे जुडी दूसरी पौराणिक कथा
माता सीता के जन्म से जुड़ी एक और कथा प्रचलित है जिसके अनुसार कहा जाता है कि,
माता सीता लंकापति रावण और मंदोदरी की पुत्री थी.
इस कथा के अनुसार सीता जी वेदवती नाम की एक स्त्री का पुनर्जन्म थी.
वेदवती विष्णु जी की परमभक्त थी और वह उन्हें पति के रूप में पाना चाहती थी.
इसलिए भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए वेदवती ने कठोर तपस्या की.
कहा जाता है कि एक दिन रावण वहां से निकल रहा था जहां वेदवती तपस्या कर रही थी,
और वेदवती की सुंदरता को देखकर रावण उस पर मोहित हो गया.
रावण ने वेदवती को अपने साथ चलने के लिए कहा लेकिन वेदवती ने साथ जाने से इंकार कर दिया.
वेदवती के मना करने पर रावण को क्रोध आ गया और उसने वेदवती के साथ दुर्व्यवहार करना चाहा.
रावण के स्पर्श करते ही वेदवती ने खुद को भस्म कर लिया,
और रावण को श्राप दिया कि वह रावण की पुत्री के रूप में जन्म लेंगी,
और उसकी मृत्यु का कारण बनेंगी.कुछ समय बाद मंदोदरी ने एक कन्या को जन्म दिया.
लेकिन वेदवती के श्राप से भयभीत रावण ने जन्म लेते ही उस कन्या को सागर में फेंक दिया.
जिसके बाद सागर की देवी वरुणी ने उस कन्या को धरती की देवी पृथ्वी को सौंप दिया,
और पृथ्वी ने उस कन्या को राजा जनक और माता सुनैना को सौंप दिया.
जिसके बाद राजा जनक ने सीता का पालन पोषण किया,
और उनका विवाह प्रभु श्रीराम के साथ संपन्न कराया.
फिर वनवास के दौरान रावण ने सीता का अपहरण किया,
जिसके कारण श्रीराम ने रावण का वध किया,
और इस तरह से सीता रावण के वध का कारण बनीं.
बहरहाल माता सीता का जन्म जिससे ये दोनों पौराणिक कथाएं जुड़ी हुई हैं,
लेकिन इनमें से कौन सी कथा सच है और कौन सी नहीं इसका रहस्य तो स्वयं भगवान राम ही जानते हैं,
कथाएं जो भी हो परंतु माता सीता जी सर्वत्र पुजी जाती हैं।
मां सीता और प्रभु श्री राम की कृपा से सभी के जीवन में सुख, समृद्धि और खुशहाली आए,
यही कामना है।
मेरे प्रथम देव मेरे आराध्य परम पूज्य महामण्डलेश्वर डॉ स्वामी नारदा नंद जी महाराज शक्तिपाताचार्य सिद्धाश्रम क्षिप्रा तट रामघाट नृसिंह घाट के मध्य झालरिया मठ के बगल हरसिद्धि माता मंदिर के पीछे विश्व का सबसे बड़ा 2500 केजी का पारद शिवलिंग टेंपल अवंतिकापुरी महाकाल उज्जैन म. प्र. भारत के पावन श्री चरणों में कोटि कोटि नमन वंदन प्रणाम कर्ता हूँ