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Somnath Jyotirlinga Sawan Series: सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की कहानी, जानिए इसकी महिमा और उत्पत्ति का राज, शिव कैसे बने निराकार से साकार

Somnath Jyotirling Sawan Series: चन्द्रदेव ने भगवान शिव को ही अपना -स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम 'सोमनाथ' हो गया। कहते हैं कि पहले सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। इसलिए सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 14 July 2022 10:26 AM IST (Updated on: 14 July 2022 10:29 AM IST)
Somnath Jyotirling Sawan Series:
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सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

Somnath Jyotirling Sawan Series:

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग सावन सीरीज (newstrack स्पेशल)

सावन का पवित्र मास 14 जुलाई से शुरू हो रहा है। इसमें अगर देवो के देव महादेव जो कि अजन्मे है, अनंत है। उनके बारे में न जाने, न सुने तो सब बेकार है। इस एक माह तक शिव कथा और शिव महिमा का गुणगान न करें तो जीवन का कोई मूल्य नहीं है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, महादेव शिवशंकर स्वयं प्रगट हुए है। वो निराकार ,अर्धनारिश्व और लिंगात्मक है। उनकी लिंग रुप में भी पूजा होती है और भगवान शिवलिंग रूप में 12 स्थानों पर विराजमान है। जानते है newstrack.com पर सावन में भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंग के बारे में...


सोमनाथ ज्योतिर्लिंग 12 शिवलिंगों में पहला ज्योतिर्लिंग मानते है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस ज्योतिर्लिंग का निर्माण स्वयं चंद्रदेव ने किया था। यह मंदिर गुजरात राज्य के सौराष्ट्र में है। शिवपुराण के अनुसार दक्षप्रजापति के श्राप से बचने के लिए, सोमदेव (चंद्रदेव) ने भगवान शिव की आराधना की। व शिव प्रसन्न हुए और सोम(चंद्र) के श्राप का निवारण किया। सोम के कष्ट को दूर करने वाले प्रभु शिव की यहां पर स्वयं सोमदेव ने स्थापना की थी ! इसी कारण इस तीर्थ का नाम "सोमनाथ" पड़ा। विदेशी आक्रमणों के कारण यह मंदिर 17 बार नष्ट हो चुका है। और हर बार यह बिगड़ता और बनता रहा है।

क्यों पड़ा नाम सोमनाथ

त्रिवेणी तीन नदियों: कपिला, हिरन और सरस्वती के संगम के किनारे सोमनाथ मंदिर है। यह पुरातन समय से एक मनोरथपुर्ण करने वाला तीर्थ स्थल रहा है। पावन प्रभास क्षेत्र में स्थित इस सोमनाथ-ज्योतिर्लिंग की महिमा महाभारत, श्रीमद्भागवत तथा स्कंद पुराणादि में विस्तार से बताई गई है। चन्द्रदेव का एक नाम सोम भी है। उन्होंने भगवान शिव को ही अपना नाथ-स्वामी मानकर यहां तपस्या की थी इसीलिए इसका नाम 'सोमनाथ' हो गया। कहते हैं कि पहले सोमनाथ के मंदिर में शिवलिंग हवा में स्थित था। इसलिए सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा विचित्र है।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया


सोमनाथ ज्योतिर्लिंग की धार्मिक कथा

शिव पुराण की कथा के अनुसार राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी सत्ताईस कन्याओं की शादी चंद्रमा से की थी। सत्ताईस कन्याओं का पति बन के चंद्रमा बेहद खुश हुए। कन्याएं भी चंद्रमा को वर के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं। लेकिन ये प्रसन्नता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी। क्योंकि कुछ दिनों के बाद चंद्रमा उनमें से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गए।

ये बात जब राजा दक्ष को पता चली तो वो चंद्रमा को समझाने गए। चंद्रमा ने उनकी बातें सुनीं, लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर रोहिणी के प्रति उनका प्रेम प्रगाढ़ हो गया तो राजा दक्ष ने गुस्से में चंद्रमा को कहा-तुम पर मेरी बात का असर नहीं होने वाला। इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम क्षय रोग के मरीज हो जाओ।

राजा दक्ष के इस श्राप के तुरंत बाद चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्त होकर नष्ट हो गए। उनकी रौशनी जाती रही। ये देखकर ऋषि मुनि बहुत परेशान हुए। इसके बाद सारे ऋषि मुनि और देवता इंद्र के साथ भगवान ब्रह्मा के पास गए तो ब्रह्मा जी ने उन्हें एक उपाय बताया। और चंद्रमा ने त्रिवेणी के तट पर जो सोमनाथ है प किया। भगवान शिव को अपना नाथ मानकर चंद्रदेव ने तप किया था चंद्रमा ने भगवान वृषभध्वज का महामृत्युंजय मंत्र से पूजन किया। छह महीने तक शिव की कठोर तपस्या करते रहे। चंद्रमा की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव खुश हुए। उनके सामने आए और वर मांगने को कहा। चंद्रमा ने वर मांगा कि हे भगवन अगर आप खुश हैं तो मुझे इस क्षय रोग से मुक्ति दीजिए और मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए। और उसके बाद भगवान शिव के आशीर्वाद से चंद्रदेव दक्ष के शाप से मुक्त हो गए थे।

चंद्रमा की तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न थे। इसलिए उन्होंने चंद्रमा की खूबसूरती को दो पक्षों में बांट दिया। कहां कि एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे। लेकिन दूसरे पक्ष में तुम क्षीण भी होओगे। ये पौराणिक राज है चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष का जिसमें एक पक्ष में वो बढ़ते हैं और दूसरे में वो घटते जाते हैं।

भगवान शिव के इस वर से भी चंद्रमा काफी खुश हो गए। उन्होंने भगवान शिव का आभार प्रकट किया उनकी स्तुति की। और राजा दक्ष के श्राप की महिमा भी रह गई।


भगवान शिव के साकार रूप का साक्ष्य

चंद्रमा की स्तुति के बाद इसी जगह पर भगवान शिव निराकार से साकार हो गए थे और साकार होते ही देवताओं ने उन्हें यहां सोमेश्वर भगवान के रूप में मान लिया। यहां से भगवान शिव तीनों लोकों में सोमनाथ के नाम से विख्यात हुए। जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां स्थापित हुआ तो देवताओं ने उनकी तो पूजा की ही, चंद्रमा को भी नमस्कार किया। क्योंकि चंद्रमा की वजह से ही शिव का ये स्वरूप इस जगह पर स्थापित हुआ। इस जगह की पवित्रता बढ़ती गई। शिव पुराण में कथा है कि जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां निवास करने लगे तो देवताओं ने यहां एक कुंड की स्थापना की। उस कुंड का नाम रखा गया सोमनाथ कुंड।

सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया

सोमनाथ कुंड की महिमा

कहते हैं कि कुंड में भगवान शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास है। इसलिए जो भी उस कुंड में स्नान करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं। उसे हर तरह के रोगों से निजात मिल जाता है।

शिव पुराण के अनुसार असाध्य से असाध्य रोग भी कुंड में स्नान करने के बाद खत्म हो जाता है। अगर कोई व्यक्ति क्षय रोग से ग्रसित है तो उसे उस कुंड में लगातार छह माह तक स्नान करता है तो उसका रोग खत्म होता जाता है।

पंचामृत से सोमनाथ की पूजा और दर्शन से चमत्कार

  • धरती का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र में काठियावाड़ नाम की जगह पर स्थित है। इस मंदिर में जो सोमनाथ देव हैं उनकी पूजा पंचामृत से की जाती है। कहा जाता है कि जब चंद्रमा को शिव ने शाप मुक्त किया तो उन्होंने जिस विधि से साकार शिव की पूजा की थी, उसी विधि से आज भी सोमनाथ की पूजा होती है।
  • अगर किसी वजह से आप सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं तो सोमनाथ की उत्पति की कथा सुनकर भी आप वही पौराणिक लाभ उठा सकते हैं।इस तीर्थ पर और भी तमाम मुरादें हैं जिन्हें पूरा किया जा सकता है। क्योंकि ये तीर्थ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्वपूर्ण है।
  • यहां जाने वाले जातक अगर दो सोमवार भी शिव की पूजा को देख लेते हैं तो उनके सारे मनोरथ पूरे हो जाते हैं। अगर सावन की पूर्णिमा में कोई मनोरथ लेकर यहां आते हैं तो बाबा सोमनाथ उसे अवश्य पूर्ण करते हैं।
  • अगर आप शिवरात्रि की रात यहां महामृत्युंजय मंत्र का एक सौ आठ बार भी जाप कर देते हैं तो सारे मनोरथ पूर्ण होते हैं।वो सब चीजें हासिल हो सकती है जिसके लिए आप परेशान हैं।
  • सबसे पहले ज्योतिर्लिंग की महिमा का वर्णन शिव पुराण में महर्षि सूरत ने नाई है। जो जातक इस कथा को ध्यान से सुनते हैं या फिर सुनाते हैं उनपर चंद्रमा और शिव दोनों की कृपा होती है। चंद्रमा शीतलता के वाहक हैं। उनके खुश होने से इंसान मानसिक तनाव से दूर होता है। और शिव इस जगत के सार हैं। उनके प्रसन्न होने से और दर्शन करने से जीवन में कोई कष्ट नहीं होता है।

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Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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