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Janmashtami 2021: जन्माष्टमी मनाने के अलग-अलग तरीके, जानिए देश के तमाम हिस्सों में कैसे मनाते हैं भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव
Janmashtami 2021: जन्माष्टमी अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है। भारत में जन्माष्टमी के मौके पर कहीं कान्हा की लीलाओं का आनंद लिया जाता है तो कहीं उन्हें 56 भोग अर्पित करके प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है।
Janmashtami 2021: भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को जन्माष्टमी (Janmashtami) मनाई जाती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था। इस साल 30 अगस्त को जन्माष्टमी (Janmashtami 2021) मनाई जाएगी। इस दिन लोग व्रत करते हैं और मध्य रात्रि भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाते हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से भगवान श्रीकृष्ण सभी मनोकामना पूरी करते हैं।
देश के तमाम हिस्सों में लोगों ने जन्माष्टमी के त्योहार को धूमधाम से मनाने की तैयारी अभी से शुरू कर दी है। बेशक भगवान श्री कृष्ण (Sri Krishna) का जन्म मथुरा (Mathura) में हुआ था, लेकिन इस दिन को पर्व की तरह पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है।
जन्माष्टमी मनाने के अलग-अलग तरीके
जन्माष्टमी अलग-अलग तरीके से मनाई जाती है। भारत में जन्माष्टमी के मौके पर कहीं कान्हा की लीलाओं का आनंद लिया जाता है तो कहीं उन्हें 56 भोग अर्पित करके प्रसन्न करने का प्रयास किया जाता है। यही नहीं इस दिन श्री कृष्ण के भक्त उनके लिए व्रत रखते हैं और रात में 12 बजे उनके जन्म के लिए की तैयारियां करते हैं। तो चलिए आज जानते हैं कि देश के तमाम हिस्सों में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व कैसे मनाया जाता है।
ब्रज क्षेत्र
बात अगर कृष्ण जन्माष्टमी की हो रही है तो सबसे पहले ब्रज क्षेत्र की होनी चाहिए, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म ब्रज क्षेत्र के मथुरा में हुआ था। ब्रज के लोगों में आज भी श्रीकृष्ण के प्रति अलग ही प्यार और आस्था देखने को मिलती है। यहां श्रीकृष्ण को कान्हा, कन्हैया, माखनचोर के अलावा कई नामों से बुलाया जाता है। इस दिन पूरा ब्रज कन्हैया के रंग में रंग जाता है। जन्माष्टमी को लेकर पूरे ब्रज में काफी पहले से ही तैयारियां शुरू हो जाती हैं। लोग घरों व मंदिरों में झांकियां सजाते हैं। इन झांकियों के जरिए कृष्ण की बाल लीलाएं दिखाई जाती हैं। इतना ही नहीं छोटे छोटे बच्चों को कृष्ण और राधा बनाया जाता है।
कान्हा के लिए माखन और मिश्री के अलावा कई व्यंजन बनाये जाते हैं। शाम के समय सभी मंदिरों में भजन और कीर्तन शुरू हो जाते हैं। रात में 12 बजे मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि में कन्हैया का जन्म कराया जाता है और उन्हें पंचामृत से स्नान कराया जाता है। ब्रज के लोग अपने घरों में भी 12 बजे खीरे से कन्हैया का जन्म कराते हैं और उन्हें दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से स्नान कराकर मिष्ठान, मेवा, पंचामृत आदि का भोग लगाते हैं। सुंदर वस्त्र पहनाकर उन्हें झूले पर बैठाकर झुलाया जाता है। उसके बाद प्रसाद खाकर अपना व्रत खोलते हैं।
गुजरात
हिंदू मान्यता ले अनुसार, मथुरा छोड़ने के बाद भगवान श्रीकृष्ण द्वारका में बस गए थे। कहा जाता है कि यहां उन्होंने द्वारकापुरी बसाई थी। इसलिए गुजरात के लोग भगवान कृष्ण की द्वारकाधीश श्रीकृष्ण के रूप में पूजा करते हैं। गुजरात में द्वारका के लोग दही हांडी के समान एक परंपरा के साथ त्योहार मनाते हैं, जिसे माखन हांडी कहा जाता है। द्वारकाधीश मंदिर को फूलों से सजाया जाता है। कच्छ जिले के क्षेत्र में, किसान अपनी बैलगाड़ियों को सजाते हैं और सामूहिक गायन और नृत्य के साथ कृष्ण जुलूस निकालते हैं।
महाराष्ट्र
पूरे महाराष्ट्र (Maharashtra) में जय श्रीकृष्णा की धूम होती है यहां कन्हैया की बाल लीलाओं का भरपूर आनंद लिया जाता है। सड़क पर अच्छी खासी भीड़ होती है। एक मिट्टी की हांडी में माखन मिश्री भरकर टांगा जाता है जिसे एक लड़का कन्हैया बनकर तोड़ता है बाकी साथी नीचे से सहयोग करते हैं। महाराष्ट्र में तमाम जगहों पर मटकी फोड़ प्रतियोगिता का आयोजन किया जाता है और जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है।
ओडिशा
ओडिशा (Odisha) में जगन्नाथपुरी (Jagannathpuri) मंदिर है जिसे चार धामों में से एक माना जाता है। जन्माष्टमी के मौके पर इस मंदिर को भव्य तरीके से सजाया जाता है। यहां भी लोग इस दिन व्रत रखते हैं।
दक्षिण
दक्षिण भारत में लोग घर की साफ सफाई कर रंगोली बनाते हैं और कन्हैया की मूर्ति स्थापित धूप, दीप और प्रसाद आदि चढ़ाते हैं।
पूर्वी भारत
वहीं पूर्वी भारत की बात करें तो यहां कृष्ण भगवान की रासलीलाओं को मणिपुरी डांस स्टाइल में प्रस्तुत किया जाता है।