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Sri Radha Rani Ji: राधा रानी जी और फूल सखी
Radha Rani ki Story in Hindi: फूलसखी सारंगी बजाने का काम करता था। कोई भी उत्सव होता तो वो सारंगी बजाता और उसकी बेटी राधा उसकी धुनों पर नृत्य करती। इसी तरह देखते ही देखते उसकी बेटी राधा बड़ी हो गयी और उसके विवाह का वक़्त आ पंहुचा।
Radha Rani ki Katha: बरसाना में फूल सखी नाम का एक मुस्लिम था। यद्यपि वो एक मुस्लिम था फिर भी उसकी राधा रानी में अपार श्रद्धा थी और तो और उसकी एक बेटी थी जिसका नाम भी उसने राधा रखा था। फूलसखी सारंगी बजाने का काम करता था । कोई भी उत्सव होता तो वो सारंगी बजाता और उसकी बेटी राधा उसकी धुनों पर नृत्य करती। इसी तरह देखते ही देखते उसकी बेटी राधा बड़ी हो गयी और उसके विवाह का वक़्त आ पंहुचा। राधा रानी की कृपा से उसने अपनी बेटी का विवाह बड़ी धूम धाम से किया।
लेकिन अपनी बेटी के चले जाने के बाद वो निराश सा रहने लगा क्योकि वो राधा रानी के भजनों पर सारंगी बजाया करता और उसकी बेटी राधा नृत्य किया करती थी। और इन्ही सब से उसका जीवन गुजरा करता था। लेकिन अब नृत्य करने वाली राधा तो ससुराल चली गयी थी। इसलिए उसका सारंगी बजाने का भी मन नहीं करता था।
एक दिन रात को पूर्णिमा के दिन वो बहुत ही निराश अवस्था में राधा रानी को याद कर रहा था और कह रहा था – हे लाडली अब तो तेरा भजन भी नहीं होता मेरी सारंगी की धुन पर अब कौन नाचेगी? तभी उसने अचानक अपनी सारंगी उठा ली और बड़े ही भाव से राधा रानी का भजन करते हुए,मुख से राधा-राधा निरंतर निकल रहा था,भला किशोरी जी को कोई इतने भव से पुकारे और वे न आये ऐसा कैसे हो सकता है।
सखी सारंगी को बजाने लगा वो उसी धुन में इतना डूब गया की उसे कुछ भी याद न रहा, तभी लाडली जी के महल के कपाट खुलते है और उनमे से नेत्रों को अँधा कर देनी वाली अपार उजाले की चमक दिखाई पड़ती है और उसी उजाले में से एक छोटी सी गौर वर्ण की कन्या आती है और फूल सखी की सारंगी की धुन पर नाचने लगती है।
फूल सखी भी इतना मदहोश हो जाता है कि वो सारंगी बजाये और वो छोटी सी कन्या नाचती ही जाए उसे कुछ भी होश न रहा और नाचते नाचते वो छोटी सी कन्या फूल सखी को महल की एक-एक सीढ़ी चढ़ाती गयी और फूल सखी भी एक-एक करके वो सीढिया चढ़ता ही गया और जैसे ही वो कपाट तक पंहुचा, तभी महल के कपाट बंद हो जाते है और फूल सखी भी अंदर ही चला जाता है और फूल सखी कहां गया आज तक किसी को मालूम न हुआ। भजन करते-करते वो राधा रानी में ही विलीन हो गया।
कहते है किसी संत को बरसाने की परिक्रमा में एक दिन वे फूल सखी दिखायी दिए,उन्होंने पूछा तो फूल सखी बोले -बाबा मै अब इस संसार के काम का नहीं हूँ। मुझसे तो किशोरी जी ने कृपा करने अपने परिकर में शामिल कर लिया है। और इतना कहकर वे झाडियों में कही चले गए,फिर किसी ने उन्हें कभी नहीं देखा।
(कंचन सिंह)