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Swastik Ka Mahatva: सुख-समृद्धि का प्रतीक स्वास्तिक चिन्ह, जानिए महत्व और लाभ, आज से आप भी करें इस्तेमाल
Swastik Ka Mahatva : शुभता का प्रतीक स्वास्तिक का चिन्ह का इस्तेमाल धार्मिक और मांगलिक कामों में बखूबी होता है। वैसे तो स्वास्तिक का वर्णन वेद -पुराणों में मिलता है। लेकिन सिंधु घाटी सभ्यता में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। पुरातन चीजों में यह चिन्ह दिखता है।
सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया
Swastik Ka Mahatva
स्वास्तिक का महत्व
हर शुभ काम में स्वास्तिक चिन्ह बनाया जाता है। सनातन धर्म ( Sanatan Dharam) में मांगलिक, धार्मिक या नए काम की शुरुआत स्वास्तिक का चिन्ह बनाकर की जाती है। स्वास्तिक को शुभ व मंगल का प्रतीक माना जाता है। पुराणों में स्वस्तिक चिन्ह ( Swastik Sign) बनाने और शुभ होने के पीछे खास कारण बताए गए हैं। शास्त्रों में स्वास्तिक विघ्रहर्ता व मंगलमूर्ति भगवान श्री गणेश का साकार रूप माना गया है। स्वास्तिक का बायां हिस्सा 'गं बीजमंत्र होता है, जो भगवान श्री गणेश की शक्ति व स्थान माना जाता है। इसमें, जो चार बिन्दियां होती हैं, उनमें गौरी, पृथ्वी, कूर्म यानी कछुआ और अनन्त देवताओं का वास माना जाता है।
स्वास्तिक चिन्ह का अर्थ
स्वास्तिक चिन्ह मंगल का प्रतीक होता है। स्वास्तिक शब्द को 'सु' और 'अस्ति' का मिश्रण योग माना गया है। 'सु' का अर्थ है शुभ और 'अस्ति' का अर्श होना है। इसका मतलब स्वास्तिक का मौलिक अर्थ है 'शुभ हो', 'कल्याण हो'। स्वास्तिक में चार प्रकार की रेखाएं होती हैं, जिनका आकार एक समान होता है। आम लोगों का मानना है कि यह रेखाएं चार दिशाओं- पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण की ओर इशारा करती हैं। यह रेखाएं चार वेदों - ऋग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद और सामवेद का प्रतीक हैं। स्वास्तिक चिन्ह का इस्तेमाल सिंधु घाटी सभ्यता में करने का उल्लेख मिलेता है।
वेदों में भी स्वास्तिक के श्री गणेश का स्वरूप होने की पुष्टि होती है। हिन्दू धर्म की पूजा-उपासना में बोले जाने वाले वेदों के शांति पाठ मंत्र में भी भगवान श्री गणेश का स्वास्तिक रूप में स्मरण किया गया है।
'स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवा: स्वस्ति न: पूषा विश्ववेदा:
स्वस्तिनस्ता रक्षो अरिष्टनेमि: स्वस्ति नो बृहस्पर्तिदधातु ॥
इस मंत्र में चार बार आए 'स्वस्ति शब्द चार बार मंगल और शुभ की कामना से श्री गणेश का ही ध्यान और आवाहन है।
स्वास्तिक चिन्ह का महत्व
स्वस्तिक का अर्थ होता है, कल्याण या मंगल करने वाला। स्वस्तिक एक विशेष आकृति है , जिसको किसी भी कार्य की शुरुआत के पूर्व बनाया जाता है। माना जाता है कि यह चारों दिशाओं से शुभ और मंगल को आकर्षित करता है। कार्य की शुरुआत और मंगल कार्य में रखते हैं, अतः यह भगवान गणेश का रूप भी माना जाता है। स्वास्तिक से संबंधों में प्रेम, प्रसन्नता, श्री, उत्साह, उल्लास, सद्भाव, सौंदर्य, विश्वास, शुभ, मंगल और कल्याण का भाव होता है, वहीं श्री गणेश का वास होता है और उनकी कृपा से अपार सुख और सौभाग्य प्राप्त होता है। गणेश विघ्नहर्ता हैं, इसलिए ऐसी मंगल कामनाओं की सिद्धि में विघ्नों को दूर करने के लिए स्वास्तिक रूप में गणेश स्थापना की जाती है।
सांकेतिक तस्वीर, सौ. से सोशल मीडिया
स्वास्तिक बनाने का फायदा
इसे बनाने से घर की नकारात्मक ऊर्जा बाहर चली जाती है। स्वस्तिक के चिन्ह को भाग्यवर्धक माना जाता है। तिजोरी में स्वास्तिक चिन्ह जरूर बनाना चाहिए। वास्तु के अनुसार घर के आंगन में पितृों का निवास होता है। आंगन के बीचो-बीच स्वास्तिक चिन्ह बनाना काफी शुभ माना जाता है। घर के आंगन में गोबर से स्वास्तिक चिन्ह बनाने से पितरों की कृपा बरसती है।
लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए : यदि घर में पैसों की तंगी होती है तो आप सिंदूर या कुमकुम के स्वास्तिक चिन्ह को घर के बाहर बनाएं। ऐसा करने से लक्ष्मी जी की कृपा आपके उपर बनती है। और पैसों की कमी दूर होती है।
व्यापार बढ़ाने के लिए : सात गुरुवार घर के उत्तर पूर्वी कोनों पर गंगाजल डालें और वहां पर स्वास्तिक चिन्ह बनाएं। और गुड़ का प्रसाद भी चढ़ाएं। इस उपाय से व्यापार में तरक्की होती है।
मनोकामना पूरी करने के लिए उपाय : मनोकामना पूरी करना चाहते हैं तो किसी भी मंदिर में कुमकुम या गोबर का उल्टा स्वास्तिक चिन्ह बना लें और जैसे ही आपकी मनोकामना पूरी हो जाए तब आप मंदिर में सीधा स्वास्तिक बनाएं।
धन प्राप्त करने के लिए : धन के लिए घर की देहलीज की दोनों तरफ स्वास्तिक चिन्ह बना लें और उसके उपर मौली के धागे से बंधी हुई एक एक सुपारी स्वास्तिक के उपर रख दें।
सुख शांति के लिए : अपने घर की उत्तर दिशा की दीवार पर हल्दी से स्वास्तिक चिन्ह बनाएं एैसा करने से घर में सुख शांति आती है।
पितरों को खुश रखने के लिए : घर में गोबर से स्वास्तिक चिन्ह बनाने से घर में पितरों की कृ पा और सुख व समृद्धि के साथ शान्ति भी आती है।
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