×

सकरात्मक सोच का शरीर और मस्तिष्क पर पड़ता है गहरा असर

raghvendra
Published on: 19 Jan 2019 7:43 AM GMT
सकरात्मक सोच का शरीर और मस्तिष्क पर पड़ता है गहरा असर
X

सकारात्मक सोच कोई ऐसी चीज नहीं है जो सिर्फ संतों, तपस्वियों या उन गुरुओं के पास होती है जो जीने का तरीका सिखाते हैं। यह तो हर इनसान अपने आप में ला सकता है। जिस तरह वर्तमान समाज में नकारात्मकता का बोलबाला है उसमें सकारात्मक सोच एक आसरे की तरह काम करता है। यह जान लीजिए कि सकरात्मक सोच से आपकी जिंदगी का पूरा आयाम बदल सकता है। सकरात्मक सोच का शरीर और मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है।

अपने व्यवहार पर कंट्रोल रखें

अपने आप पर नियंत्रण सकारात्मक सोच का पहला स्टेप है। लोग अपनी जिंदगी की बागडोर दूसरों को दे कर सबसे बड़ी गलती करते हैं। आपको हर हालत में ऐसा करने से बचना चाहिए और अपने जीवन से जुड़े सारे महत्वपूर्ण फैसले खुद लेने चाहिए। आप स्वयं अपनी नौका के खेवनहार हैं, यह हमेशा ध्यान रखिए।

मेडिटेशन करें

मेडिटेशन या ध्यान के समय उत्पन्न ऊर्जा इंसान के अन्दर मजबूती लाती है। इस मजबूती से वह आम जीवन में कठिन परिस्थितियों का मुकाबला करने में सक्षम होता है। हर दिन कम से कम 10 मिनट तक ध्यान लगाने की कोशिश करें। किसी अंधेरे कमरे का चुनाव करें जहां कोई डिस्टर्ब न करे। कमरे में बैठ कर आँखें बंद कर गहरी सांस लें। अपने दिमाग में से सभी विचार निकाल दें। शुरुआत में यह प्रक्रिया मुश्किल लगेगी पर अभ्यास से यह काफी आसान हो जाएगा।

सकारात्मक सोच वाले लोगों से मिलें

आप अपने इर्द गिर्द देखें। बहुत से लोग नकारात्मक सोच वाले मिलेंगे। ऐसे लोग जो हमेशा शिकायत ही करते रहते हैं। इसके विपरीत सकारात्मक विचारधारा वाले व्यक्तियों से मिलने से आपकी सोच और उद्देश्य भी सकारात्मक तरीके से आगे बढ़ेंगे। नकारात्मक सोच रखने वाले लोग आपकी जिंदगी से सकारात्मकता को निकाल देते हैं। ऐसे लोगों के साथ रहे जो आपको सकारात्मक वाईब्स देते हों।

अपने लक्ष्य पर टिके रहें

आप जो करना चाहते हैं। आपका जो लक्ष्य है उससे डिगे नहीं। अपने आप पर विश्वास करना और लक्ष्य पाने के लिए मेहनत करना सीखें। दुनिया को आपको देने के लिए कई नए दृष्टिकोण हैं और इनको अगर आप खुले दिमाग और आशावादी सोच रखते हुए अपनाएंगे तो आपकी जिंदगी बदल जाएगी। कड़ी मेहनत करें और अपने लक्ष्य की तरफ हर दिन एक कदम आगे बढ़ाएं।

मानसिक रचना में बदलाव लाएं

किसी भी परिस्थिति में आप कैसे रिएक्ट करते हैं यह आपकी सोचने की शक्ति में अंतर ला सकता है। किसी कठिन परिस्थिति में सकारात्मक प्रतिक्रिया देना उस परिस्थिति को आसान बना देता है और आप आसानी से उससे उबर पाते हैं। नकारात्मक विचारधारा से कोई भी सिचुएशन जरूरत से ज्यादा बड़ी दिखती है।

अपने स्वभाव की समीक्षा स्वयं करें

किसी भी बदलाव का प्रतिरोध करना हर इंसान में अंतर्निहित होता है। इसे मेंटलब्लॉक कहते हैं। जब आप अपने आप पर सवाल उठाएंगे कि आखिर इस प्रतिरोध का मकसद क्या है, आपको अपने आप मुश्किल इतनी बड़ी नहीं दिखेगी जितना आपने सोच रखा था। इसलिए अपने मकसद पर सवाल उठाना आपके रक्षात्मक स्वभाव को कम करेगा और आपको संभावनाओं को देखने की शक्ति देगा ताकि आपका अनुभव बढ़ सके।

सकारात्मक सोच को अगर वास्तु से जोड़ कर देखें तो इसका सीधा तात्पर्य सकारात्मक ऊर्जा से है। वास्तु के मुताबिक जिस घर में ज्यादा प्राकृतिक रौशनी आती है, कोने साफ सुथरे रहते हैं, घर के दरवाजे पर कोई गंदगी नहीं होती, बेडरूम चमकता रहता है, पढ़ाई का कमरा ज्यादा प्रकाश वाला होता है और टॉयलेट मुख्य द्वार के ठीक सामने नहीं होता वहां पॉजिटिव एनर्जी वास करती है यानी सकारात्मक ऊर्जा उस घर में सदैव बनी रहती है। ऐसे घरों में लोग खुश रहते हैं और जल्दी बीमार नहीं पड़ते। साथ में ढेर सारी लक्ष्मी आती है।

raghvendra

raghvendra

राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

Next Story