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ये है दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग, हर साल 8 इंच बढ़ जाती है लंबाई
विश्व का विशाल शिवलिंग
पहले ये टीला छोटे रूप में था पर धीरे-धीरे इसकी उंचाई और गोलाई बढ़ती गई। इसका बढ़ना आज भी जारी है। लोग इस टीले को शिवलिंग के रूप में पूजने लगे है। इस शिवलिंग में प्रकृति प्रदत्त जलहरी भी दिखाई देती है, जो धीरे-धीरे जमीन के ऊपर आती जा रही है। छत्तीसगढ़ी भाषा में हुंकारने की आवाज को भकुर्रा कहते हैं, इसी से भूतेश्वरनाथ को भकुर्रा महादेव भी कहते हैं। इस शिवलिंग का पौराणिक महत्व सन 1959 में गोरखपुर से प्रकाशित धार्मिक पत्रिका कल्याण के वार्षिक अंक में उल्लेखित है, जिसमें इसे विश्व का एक अनोखा विशाल शिवलिंग बताया गया है।
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रायपुर: भारत एक ऐसा देश है जहां आस्था के नाम पर लोग वारे न्यारे कर देते हैं। यहां के लोगों के दिलों में ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम ने ही यहां पत्थर को भी भगवान के रूप में पूजने की प्रेरणा दी है। जब बात भोले भंडारी को हो तो लिंग, मूर्ति और निर्विकार सब रूप में पूजा होने लगती है, क्योंकि वे प्रकृति निर्विकार परब्रह्म है। सिर्फ उनकी ही लिंग रुप में पूजा होती है। शिव भगवान मूर्ति और लिंग दोनों रूप में पूजे जाते है। कभी -कभी आपने सुना होगा कि महाकाल और अन्य शिवलिंगों के आकार छोटे होते जा रहे है, ललेकिन हम आपको एक ऐसे शिवलिंग के बारे बताएंगे जिसका आकार घटता नहीं बल्कि हर साल बढ़ जाता है। ये शिवलिंग छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले में स्थित भूतेश्वरनाथ का है। प्राकृतिक रूप से निर्मित दुनिया का सबसे बड़ा शिवलिंग है। ये जमीन से लगभग 18 फीट ऊंचा और 20 फीट गोलाकार है। राजस्व विभाग द्वारा हर साल इसकी उचांई नापी जाती है, जिसमें हर साल यह 6 से 8 इंच तक बढ़ा हुआ पाया जाता है।
क्या है मान्यता शिवलिंग
मेन शहर से तीन किलोमीटर दूर घने जंगलों के बीच मरौदा गांव में ये शिवलिंग है। 12 ज्योतिर्लिंगों की तरह इसे भी अर्धनारीश्वर शिवलिंग की मान्यता प्राप्त है। यहां के बारे में कहानी है कि कई साल पहले पारागांव निवासी जमींदार शोभा सिंह की यहां पर खेती-बाड़ी थी। शोभा सिंह शाम को जब अपने खेत मे घूमने जाते थे तो उन्हें एक टीले से सांड़ के हुंकारने और शेर के दहाड़ने की आवाज सुनाई पड़ती थी। शुरू में उन्हें लगा कि ये उनका वहम है, लेकिन कई बार इस आवाज को सुनने के बाद शोभा सिंह ने ग्रामवासियों को इस बारे में बताया। ग्रामवासियों ने भी टीले के पास कई बार आवाज सुनी थी। इसके बाद सभी ने आसपास सांड़ अथवा शेर की तलाश की, लेकिन दूर-दूर तक कोई जानवर नहीं मिला। इनके दर्शन करने और जलाभिषेक करने हर साल सैकड़ों की संख्या में कांवरिए पैदल यात्रा कर यहां पहुंचते हैं। यहां आने वाले भक्तों की संख्या में हर साल बढ़ोतरी हो रही है।