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Jyotish Gyan Tirth Yatra New Year Special : धर्म, काम और मोक्ष की प्राप्ति का मार्ग है तीर्थ यात्रा, जानिए इसके प्रकार और ध्यान रखने योग्य बातें
Jyotish Gyan Tirth Yatra New Year Special : तीर्थ यात्रा का मनुष्य के जीवन में बहुत महत्व है। हर धर्म में तीर्थ करना अनिवार्य होता है। इसे ईश्वर का सानिध्य पाने का मार्ग और अपने अच्छे-बुरे कर्मों का प्रायश्चित माना जाता है।
Tirth Yatra ka Matlab Kya Hota Hai
तीर्थ यात्रा का मतलब क्या होता है:
सनातन धर्म हो या कोई भी घ में तीर्थ का अपना महत्व है। तीर्थ यात्रा करना हर मनुष्य के लिए जरूरी होता है। यह ईश्वर प्राप्ति या वहां तक पहुंचने का सुगम मार्ग है। तीर्थ यात्रा धार्मिक ( Religious ) और आध्यात्मिक महत्व ( spiritual significance) वाले स्थानों को कहते हैं जहां जाने के लिए लोग बहुत कष्ट उठाकर यात्राएं करते हैं यात्राओं को तीर्थ यात्रा करते हैं जैसे हिंदू धर्म में बाबा धाम को तीर्थ यात्रा माना जाता है और मुस्लिम धर्म में मक्का काबा मदीना को तीर्थ यात्रा माना जाता है। उस नदी, सरोवर, मंदिर या भूमि को तीर्थ यात्रा (Tirth Yatra) कहा जाता है। जहां ऐसी दिव्य शक्तियां है कि उनके संपर्क में जाने से मनुष्य के पाप नष्ट हो जाते है।
तीर्थ यात्रा का महत्व
तीर्थ यात्रा जिससे धर्म ,काम और मोक्ष तीन अर्थों की सिद्धि प्राप्त होती है उसे तीर्थ यात्र कहते है। तीर्थ ती और र्थ से बना है। इसका अर्थ होता है तीन तरह के काम की सिद्धि। व्यक्ति पूरा जीवन धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति में लगा देता है।
इन चारों में अर्थ (धन) तो तीर्थ यात्रा करने में खर्च होता है। धन पैसे को छोड़ कर धर्म, काम और मोक्ष तीर्थ यात्रा से पा सकते हैं, लेकिन खर्च होने वाला धन विवेक ,ज्ञान और कर्म प्राप्त कर सकते हैं। जो व्यक्ति निष्काम भाव से यात्रा करते है। केवल उन्हें ही मोक्ष प्राप्त होता है। जो व्यक्ति सकाम भाव से तीर्थ यात्रा करते है। उन्हें इस लोक में स्त्री- पुत्र आदि और परलोक में स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
तीर्थ यात्रा के प्रकार
12 तीर्थों की यात्रा करना मनुष्य के लिए जरूरी है। वैसे तो तीर्थ 9 प्रकार के होते है। 3 प्रकार के तीर्थ ऐसे है जो अपने स्थान सदा के लिए स्थित है और मनुष्य वहां जाता है। जैसे:- नित्य तीर्थ, भगवदीय तीर्थ, और संत तीर्थ। बाकी 6 तीर्थ ऐसे है जो सदा हमारे आस पास रहते है। जिनका महत्व किसी तीर्थ स्थलों से कम नहीं होता है।
- गुरु तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि गुरु हमे अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाते हैं। अपने शिष्य के ह्रदय में ज्ञान और रौशनी फैलाते हैं। इसलिए शिष्यो के लिए गुरू ही परम तीर्थ है।
- माता एवं पिता तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि पुत्रो के लिए इस लोक और परलोक के लिए माता पिता के समान कोई तीर्थ नहीं है। माता पिता का जिसने पूजन नही किया उसको वेदो से क्या प्रयोजन है? पुत्र के लिए माता पिता की सेवा पूजन ही धर्म है। वही तीर्थ है। वही मोक्ष है और वही जन्म का शुभ फल है।
- पति तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जो स्त्री अपने पति के दाहिने चरण को प्रयाग और बाएं चरण को पुष्कर समझकर पति के चरणोदक से स्नान करती है। उसे इन तीर्थो के स्नान का पुण्य प्राप्त होता है।
- पत्नी तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जिस घर में सुशील और व्यवहार कुशल आज्ञाकारी पत्नी होती है। उस घर में देव निवास करते है। पितृ भी उसके घर में रहकर सदा उसके कल्याण करते है।
- नित्य तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि नित्य तीर्थ वो होते है जहां की भूमि में सृष्टि के प्रारम्भ से ही दिव्य और पावनकारी शक्तियां है। अर्थात जिस स्थान पर इस सृष्टि के प्रारंम्भ से ही ईश्वर किसी न किसी रूप में वास करते है। उदाहरण के लिए कैलाश, मानसरोवर, काशी आदि नित्य तीर्थ है। इसी तरह गंगा, यमुना, नर्मदा, कावेरी आदि पवित्र नदियां भी नित्य तीर्थ की श्रेणी में आती है।
- भगवदीय तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि इस तीर्थ पर भगवान ने किसी न किसी रूप में अवतार लेते हैं। या फिर भगवान ने अपने भक्त की भक्ति से प्रसन्न होकर दर्शन दिए हो या भक्त की प्रार्थना पर सदा के लिए वहां वास किया हो, यह सभी स्थल भगवदीय तीर्थ और पवित्र है। इस धरती पर भगवान के चरण जहां पड़े वह भूमि दिव्य हो गई। अत: ऐसे सभी स्थल भगवदीय तीर्थ में आते हैं। 12 ज्योतिर्लिंग, वृंदावन, अयोध्या, आदि।
- संत तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि जो मनुष्य संत है। उनका शरीर भले ही पांच भौतिक तत्वों से निर्मित और नश्वर हो, किंतु उस देह में भी संत के दिव्यगुण ओत-प्रोत है। उस देह से उन दिव्य गुणों की उर्जा जहां पड़ते हैं, वह भूमि तीर्थ बन जाती है। संत की जन्म भूमि, संत की साधना भूमि भी तीर्थ की तरह पवित्र है।
- भक्त तीर्थ के बारे में धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि भगवान के प्रिय भक्त के दिल में तीर्थ रूप होते है और वो भक्त अपने ह्रदय में विराजित भगवान के द्वारा तीर्थो को भी महातीर्थ बनाते हुए विचरण करते है।
तीर्थ यात्रा के समय ध्यान रखें
जो भी मनुष्य तीर्थ यात्रा पर निकलता है उसे अपने जीवन में कुछ बातों का गांठ बांध लेना अनिवार्य होता है। जैेसे...
- जब हम किसी भी तीर्थ में जाते हैं तो हमेशा परिक्रमा करते वक्त भगवान के सामने कुछ देर रुककर परिक्रमा करना चाहिए।
- भगवान के श्रीविग्रह के सामने पैर करके बैठना अशुभ माना जाता है।
- मूर्ति के सामने सोना और घुटनों को ऊंचा करके उवकों हाथों से लपेटकर नहीं बैठना चाहिए।
- तीर्थ यात्रा के दौरान झूठ कभी ना बोले इससे आपको यात्रा का फल नहीं मिलता।
- श्री भगवान के श्रीविग्रह के सामने जोर से ना बोलें।
- आपस में बातचीत कर दुसरों की बुराई नहीं करना चाहिए।
- मूर्ति के सामने चिल्लाना और कलह न करें इससे आपको फल नहीं मिलता
- भगवान के दर्शन के समय अश्लील शब्द कभी ना बोलें।
- भगवान को निवेदित किए बिना किसी भी वस्तु को नहीं खाना.पीना चाहिए।
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