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महावीर जयंती पर विशेषः जाने उनसे जुड़ी दिलचस्प कहानी
आज यानी 25 अप्रैल को महावीर जयंती है। जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी दिन मंगल को बिहार के वैशाली ग्राम में हुआ।
नई दिल्लीः आज यानी 25 अप्रैल को महावीर जयंती है। जैन धर्म के 24वें तीर्थकर महावीर का जन्म चैत्र शुक्ल त्रयोदशी दिन मंगल को बिहार के वैशाली ग्राम में हुआ। यह राजा सिद्धार्थ और रानी त्रिशला के तीसरी संतान है। आज हम आपको महावीर से जुड़ी कुछ खास कहानी सुनाएंगे।
बता दें कि महावीर तीर्थकर का अवतार है। वैशाली में प्रभु जन्म से पहले चारों तरफ आनंद का वातावरण छा गया। वैशाली कुंडलपुर की शोभा अयोध्या नगरी जैसी थी। उसमें तीर्थंकर के अवतार की पूर्व सूचना से संपूर्ण नगरी की शोभा में और भी वृद्धि हो गई थी। प्रजा जनों में सुख समृद्धि और आनंद की वृद्धि होने लगी तथा महाराजा सिद्धार्थ के प्रांगण में प्रतिदिन तीन बार साढ़े तीन करोड़ रत्नों की वर्षा होती थी।
बताया जाता है जब महावीर छोटे थे तो अपने मित्रों के साथ जंगल में खेल रहे थे तभी अचानत से एक फू-फू करता विषैला नाग आ गया। जिसे देख उनके मित्र भागने लगे। लेकिन हैरत कि बात यह रही कि महावीर वहां से भागे नहीं बल्कि निर्भयता से सर्प की चेष्टाएं देखते रहे। जैसे मदारी सांप का खेल दिखाता है ठीक उसी प्रकार महावीर भी उस सांप को देख रहे। महावीर को देखकर नागदेव आश्चर्यचकित हो गया, कि वाह ! यह वर्द्धमान कुमार आयु में छोटे होने पर भी महान है। वीर हैं। उसने उन्हें डराने के लिए अनेक प्रयत्न किए।
बहुत फुफकारा। परंतु वीर तो अडिग रहे। वही दूर खड़े राजकुमार यह दृश्य देख घबराने लगे अब क्या होगा। सांप को कैसे भगाया जाए। लेकिन अचानक से सांप गायब हो गया। उसके स्थान पर एक तेजस्वी देव खड़ा था और हाथ जोड़कर वर्द्धमान की स्तुति करते हुए कह रहा था कि आप सचमुच महावीर हैं। आपके अतुल बल की प्रशंसा स्वर्ग के अंदर भी करते हैं। मैं स्वर्ग का देव हूं। मैंने अज्ञान भाव में आपके बल और धैर्य की परीक्षा हेतु नाग का रूप धारण किया। मुझे क्षमा कर दें।
ऐसे हुआ ज्ञान
बता दें कि महावीर स्वामी को ज्ञान की प्राप्ती ऋजुकला नदी के तट पर ज्ञान हुआ। कहा जाता है कि महावीर के शरीर में 1008 उत्तम चिन्ह थे। उनकी शरीर की आकृति पीली स्वर्ण का जैसा था। उनकी वाणी मधुर थी। महावीर ने पावापुरी के पदम सरोवर नामक स्थान पर मोक्ष लिए।
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