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सनातन धर्म के प्राणाधार थे आदि गुरु शंकराचार्य, जानिए उनके जीवन से जुड़ी ये बातें
आज गुरु शंकराचार्य की जंयती है। उन्होंने हिन्दू धर्म के प्रचार के लिए देश के चारों कोनों में मठों की स्थापना की थी।
लखनऊ: आज आध्यात्मिक गुरु शंकराचार्य की जंयती है। वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उनका जन्म हुआ था। इस साल आज यानि 17 मई को शंकराचार्य की जयंती मनाई जा रही है। हिंदू धर्म की पुर्नस्थापना का काम गुरु शंकराचार्य ने किया था।
1200 साल पहले कोचि के कालटी नाम के गांव में हुआ था।वो नंबूदरी ब्राह्मण थे। उन्ही के कुल के ब्राह्मण आज के समय में बद्रीनाथ मंदिर में का रावल ( प्रधान )होते हैं। इसके अलावा ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य की गद्दी पर नम्बूदरी ब्राह्मण ही बैठते हैं।
जन्म और वैराग्य
शंकराचार्य को शिव का अवतार माना जाता है। पौराणिक कथानुसार उनके माता-पिता ने शिव भगवान की कठोर तपस्या कर उन्हें वरदान में मांगा था। इसलिए वो बचपन से ही कुशाग्र थे। आदिगुरु शंकराचार्य बचपन में ही बहुत प्रतिभाशाली थे। जन्म के कुछ साल बाद ही उनके पिता का देहांत हो गया था। कहते हैं कि गुरु शंकराचार्य ने बहुत ही कम समय और कम उम्र में वेदों को कंठस्थ कर महारथ हासिल किया था। कई ग्रंथों की रचना कर दी थी। और फिर मां की आज्ञा से वैराज्ञ्य धारण कर लिया था। बाद में कम उम्र में ही केदारनाथ में समाधी भी ले ली थी।
गुरु शंकराचार्य के जीवन की खास बातें
आध्यात्मिक गुरु शंकराचार्य ने भारत में चार मठों की स्थापना की थी। उत्तर में बद्रिकाश्रम में ज्योर्तिमठ की स्थापना की थी। पश्चिम में द्वारिका में शारदामठ की स्थापना की थी। दक्षिण में श्रंगेरी मठ की स्थापना की और पूर्व दिशा में जगन्नाथ पुरी में गोवर्धन मठ की स्थापना की थी।
दस संप्रदाय की स्थापना
दसनामी सम्प्रदाय की स्थापना भी आदि शंकराचार्य ने ही की थी यह दस संप्रदाय हैं:- गिरि, पर्वत, सागर, पुरी, भारती, सरस्वती, वन, अरण्य ,तीर्थ और आश्रम। शंकराचार्य के चार शिष्य थे पद्मपाद (सनन्दन), हस्तामलक, मंडन मिश्र, तोटक (तोटकाचार्य)। गौडपादाचार्य और गोविंदपादाचार्य शंकराचार्य के गुरु थे।
ब्रह्म वाक्य प्रचार
शंकराचार्य ने इस ब्रह्म वाक्य को प्रचारित किया था कि 'ब्रह्म ही सत्य है और जगत माया।' आत्मा की गति मोक्ष में है। ऐसा माना जाता है कि आदि गुरु शंकराचार्य ने केदारनाथ क्षेत्र में समाधी ली थी। केदारनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार भी शंकराचार्य ने ही करवाया था।