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महाशिवरात्रि को लेकर है दुविधा में तो इस दिन करें पूजा-उपवास

suman
Published on: 10 Feb 2018 8:39 AM IST
महाशिवरात्रि को लेकर है दुविधा में तो इस दिन करें पूजा-उपवास
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सहारनपुर: महाशिवरात्रि हमारा एक महत्वपूर्ण त्योहार है। हर साल इस दिन सभी शिव-भक्त इसे पूरे उत्साह और प्रसन्नता के साथ मनाते है। किन्तु साल 2018 में महाशिवरात्रि को एक नहीं, बल्कि दो दिन मनाया जाएगा और इसका कारण है इसकी तिथि को लेकर संशय।

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ज्योतिषाचार्य अनिल शाह के अनुसार साल 2018 में इस पर्व को लेकर लोगों में असमंजस व्याप्त है क्योंकि इस साल फरवरी माह की 13 एवं 14 दोनों ही तारीखों में चतुर्दशी का संयोग बन रहा है। हलांकि इस पर्व का शासकीय अवकाश 14 फरवरी को घोषित किया गया है, फिर भी इस पवित्र त्योहार को दो दिन मनाने की स्थिति बन रही है। ज्योतिषियों की राय भी इस पर्व की तिथि को लेकर एक नहीं है।

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कहा जा रहा है कि गौरीशंकर मंदिर और मारकण्डेश्वर मंदिर सहित कई अन्य मंदिरों में महाशिवरात्रि 13 फरवरी को मनाई जाएगी, जबकि अन्य मंदिरों में अभी तक इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है। इस पर्व से जुड़े कुछ ऐसे तथ्य है जिसका जानना आपके लिए बहुत ज़रूरी है। सबसे पहले हम आपको यह बता दें कि महाशिवरात्रि संक्रान्ति की तरह प्रत्येक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है जिसे मासिक शिवरात्रि कहा जाता है। जब यह फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को होती है तब इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है। हमारा मत है कि 13 फरवरी की रात 10:34 बजे तक त्रयोदशी रहेगी, इसके बाद चतुर्दशी प्रारंभ हो जाएगी और शास्त्रों की मानें तो महाशिवरात्रि त्रयोदशी युक्त चतुर्दशी को मनाई जानी चाहिए। वहीं दूसरी और कुछ पंडितों का यह मानना है कि चतुर्दशी तिथि 14 फरवरी को उदया तिथि में हैं, इसलिए इस दिन पर्व मनाया जाए।

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इस साल इस महान पर्व पर दो विशेष संयोग हैं। शिवरात्रि पर 13 फरवरी को प्रदोष रहेगा और अगले दिन यानि 14 फरवरी को वैद्यनाथ जयंती है जो की भगवान शिव का ही एक स्वरूप है। पंचांग के अनुसार वर्ष 2018 में फाल्गुन मास की चतुर्दशी तिथि 13 फ़रवरी को रात्रि 10 बजकर 34 मिनिट से प्रारंभ हो रही है जो दिनांक 14 फरवरी को रात्रि 12 बजकर 14 मिनट तक रहेगी। इसी कारण इस वर्ष यह तिथि दो रात्रियों तक रहेगा। इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व 13 फरवरी को मनाया जाना ही शुभ होगा।

शिवरात्रि का उल्लेख स्कंद पुराण, लिंग पुराण और पद्म पुराणों में किया गया है। शैव धर्म परंपरा की एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान शिव ने संरक्षण और विनाश के स्वर्गीय नृत्य का सृजन किया था किन्तु कुछ ग्रंथों में यह कहा गया है कि इस दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था। महा शिवरात्रि के दिन जलाभिषेक, दुग्धाभिषेक, रसाभिषेक को काफी अहम माना जाता है।

सनातन धर्म में महाशिवरात्रि का विशेष महत्व प्रतिपादित है। भगवान शिव की आराधना का यह विशेष पर्व माना जाता है। पौराणिक तथ्यानुसार आज ही के दिन भगवान शिव की लिंग रूप में उत्पत्ति हुई थी। प्रमाणान्तर से इसी दिन भगवान शिव का देवी पार्वती से विवाह हुआ है। अतः सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा यह व्रत एवं उत्सव दोनों में अति हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। वैसे तो सम्पूर्ण भारतवर्ष में इसकी महिमा प्रथित है परन्तु भगवान आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित द्वादश ज्योतिर्लिगों के क्षेत्र में तथा उनमें भी तीनों लोकों से अलग शिवलोक के रूप में प्रतिष्ठित काशी एवं यहाँ पर विराजमान भगवान विश्वेश्वर के सान्निध्य में तो भक्ति एवं उत्सव का समवेत स्वरूप देखते ही बनता है ।

वैसे तो प्रतिवर्ष शिवरात्रि पर्व मनाया जाता है परन्तु इस वर्ष कुछ पंंचांगकारोंं एवं धर्माधिकारियों के द्वारा इस पर्व की तिथि को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। इस सम्बन्ध में कुछ लोग 13 फरवारी तो कुछ लोग 14 फरवरी को इसके आयोजन एवं अनुष्ठान का उपदेश कर रहे हैं। परन्तु हमारी सनातन व्यवस्था में इसका ठीक-ठीक निर्धारण ज्योतिष एवं धर्मशास्त्र के सामञ्जस्य से ही सम्भव है।फाल्गुन कृष्णपक्ष की चतुर्दशी शिवरात्रि होती है। परन्तु इसके निर्णय के प्रसंग में कुछ आचार्य प्रदोष व्यापिनी चतुर्दशी तो कुछ निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी में महाशिवरात्रि मानते है। परन्तु अधिक वचन निशीथ व्यापिनी चतुर्दशी के पक्ष में ही प्राप्त होते है। कुछ आचार्यों जिन्होने प्रदोष काल व्यापिनी को स्वीकार किया है वहाॅं उन्होने प्रदोष का अर्थ ‘अत्र प्रदोषो रात्रिः’ कहते हुए रात्रिकाल किया है। ईशान संहिता में स्पष्ट वर्णित है कि ‘‘ फाल्गुनकृष्णचतुर्दश्याम् आदि देवो महानिशि। शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।। तत्कालव्यापिनी ग्राहृा शिवरात्रिव्रते तिथिः।।’ फाल्गुनकृष्ण चतुर्दशी की मध्यरात्रि में आदिदेव भगवान शिव लिंग रूप में अमितप्रभा के साथ उद्- भूूूत हुए अतः अर्धरात्रि से युक्त चतुर्दशी ही शिवरात्रि व्रत में ग्राहृा है।

धर्मशास्त्रीय उक्त वचनों के अनुसार इस वर्ष दिनांक 13/02/2018 ई. को चतुर्दशी का आरम्भ रात्रि 10ः 22 बजे हो रहा है तथा इसकी समाप्ति अग्रिम दिन दिनांक 14/02/2017 ई. को रात्रि 12: 17 मिनट पर हो रही है। अतः ‘एकैक व्याप्तौ तु निशीथ निर्णयः’’ इस धर्मशास्त्रीय वचन के अनुसार चतुर्दशी 13 फरवरी को निशीथ काल एवं 14 फरवरी को प्रदोष काल में प्राप्त हो रही है ऐसे स्थिति में निशीथ के द्वारा ही इस वर्ष शिवरात्रि का निर्णय किया जाएगा। निशीथ का अर्थ सामान्यतया लोग अर्धरात्रि कहते हुए 12 बजे रात्रि से लेते है परन्तु निशीथ काल निर्णय हेतु भी दो वचन मिलते है माधव ने कहा है कि रात्रिकालिक चार प्रहरों में द्वितीय प्रहर की अन्त्य घटी एवं तृतीय प्रहर के आदि की एक घटी को मिलाकर दो घटी निशीथ काल होते है। मतान्तर से रात्रि कालिक पन्द्रह मुहूर्त्तो्ं में आठवां मुहूर्त निशीथ काल होता है।

अतः इस वर्ष 13 फरवरी को निशीथकाल 11: 34:30 से 12: 26: 00 तक तथा 14 फरवरी 11:35:38 से 12:27:02 तक तथा प्रमाणान्तर दोनों दिवसों में रात्रि 11 बजे से 01 बजे तक हो रहा है। अतः ‘‘ पूरे द्युः प्रागुक्तार्धरात्रस्यैकदेशव्याप्तौ पूर्वेद्युः ’’ वचन के अनुसार 14 फरवरी को (रात्रि 11:35:38 से 12: 27: 02 बजे तक) पूर्ण निशीथ काल के पूर्व 12:17 मिनट पर चतुर्दशी समाप्त हो जाने से पूर्ण निशीथ व्यापिनी नहीं मानी जा सकती। अत एव स्पष्ट से धर्मशास्त्रीय वचनानुसार दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि व्रतोत्सव मनाया जाएगा। इसी आशय से काशी के महत्वपूर्ण पंचाङगो मे काशी हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा प्रकाशित श्रीविश्वपञ्चाग एवं शिवमूर्ति हृषीकेशपंचांगो आदि में भी दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि लिखा गया है।

अत: दिनांक 13 फरवरी को ही महाशिवरात्रि मनायी जायेगी



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