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Valmiki Jayanti 2023: कौन थे महर्षि वाल्मीकि, जानिए इनके बारे में सब कुछ, कब होती है इनकी जयंती

Valmiki Jayanti 2023 Date and History: जानिए वाल्मिकी जयंती पर महर्षि वाल्मीकि के बारे में...

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 18 Oct 2023 6:30 AM IST (Updated on: 18 Oct 2023 6:30 AM IST)
Valmiki Jayanti 2023: कौन थे महर्षि वाल्मीकि, जानिए इनके बारे में सब कुछ, कब होती है  इनकी जयंती
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Valmiki Jayanti 2023 Date and History: महर्षि वाल्मीकि ( Valmiki Jayanti) का जन्म आश्विन मास की शरद पूर्णिमा के दिन हुआ था। महर्षि वाल्मीकि के जन्म के बारे में कोई स्पष्ट प्रमाण तो नहीं है लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार उनका जन्म महर्षि कश्यप और अदिति के नौवें पुत्र वरुण और उनकी पत्नी चर्षणी के पुत्न के रुप में माना जाता है। भृगु ऋषि इनके बड़े भाई थे। इस साल 2023में वाल्मीकि जयंती 28अक्टूबर को है।

धार्मिक कथाओं के अनुसार एक पक्षी के वध पर जो श्लोक महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था वह परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा से निकला था और यह बात स्वयं ब्रह्मा जी ने उन्हें बताई थी, उसी के बाद ही उन्होने रामायण की रचना की थी। माना जाता है कि रामायण वैदिक जगत का सर्वप्रथम काव्य था। रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में की थी और इसमें कुल चौबीस हजार श्लोक हैं।

वाल्मीकि जयंती तिथि (Valmiki Jayanti Kab Hai)

दिन- 28 अक्टूबर 2023

पूर्णिमा तिथि शुरू : 04:20 - 28 अक्टूबर 2023

पूर्णिमा तिथि ख़त्म : 01:50 - 29 अक्टूबर 2023

महाऋषि वाल्मिकी की जयंती और शरद पूर्णिमा का सनातन धर्म में बहुत खास स्थान है। आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को संस्कृत के आदि कवि और महाकाव्य रामायण के रचियेता महृर्षि वाल्मीकी आदि काल के महान कवियों में गिने जाते है।आश्विनी माह की पूर्णिमा के दिन वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है ।उत्तर भारत में इस दिन का अपना महत्त्व है।जानते हैं कैसे रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि बने और रामायण जैसे महान ग्रंथ की रचना कर दी।

महर्षि वाल्मीकि की कथा (Valmiki Katha in Hindi)

त्रेता युग में जन्मे वाल्मीकि का जन्म ऋषि कश्यप और अदिति के नौंवे पुत्र प्रचेता (वरुण) की पहली संतान के रुप में हुआ था। उनकी माता का नाम चर्षणी और भाई का नाम भृगु था। उनका नाम रत्नाकर पड़ा। कहा जाता है कि एक बार वाल्मिकी जी तपस्या में बैठे थे कठोर तप के बाद उनके शरीर पर दीमकों ने घर बना लिया । जब वो तपस्या से बाहर आए तो दीमक से बाहर निकलने के कारण उन्हे वाल्मिकी कहा गया है। दीमको के घर को वाल्मिकी कहते हैं। महर्षि वाल्मीकि की याद में इस दिन को वाल्मीकि जयंती के रूप में मनाया जाता है। महर्षि वाल्मीकि का पूरा जीवन बुरे कर्मों बीतने के बाद उसे त्यागकर अच्छे कर्मों और भक्ति की राह पर चलने का मार्ग प्रशस्त करता है। इसी महान संदेश को लोगों तक पहुचाने के लिए वाल्मीकि जयंती मनाई जाती है। इस मौके पर कई जगह शोभायात्रा भी निकाली जाती है और इस दिन उनके प्रतिमा स्थल पर भंडारे का आयोजन भी किया जाता है। साथ ही विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों के माध्यम से वाल्मीकि की कथा का प्रचार-प्रसार भी किया जाता है।

एक और कथा के अनुसार इन्हें बचपन में एक नि:संतान भील-भिलनी ने चुरा लिया था जिससे इनका लालन-पालन भील प्रजाति में हुआ। इसी कारण, वह बड़े हो कर डाकू रत्नाकर बनें और उन्होनें जंगलों में अपना काफी समय व्यतीत किया। महर्षि वाल्मीकि वैदिक काल के महान ऋषि हैं और धार्मिक ग्रंथों के अनुसार वाल्मीकि ने कठोर तप के बाद महर्षि पद पाया था। महर्षि वाल्मीकि खगोल विद्या और ज्योतिष शास्त्र के भी प्रकांड पंडित थे।

महर्षि वाल्मीकि को किसने करवाया था सत्य का ज्ञान

महर्षि वाल्मीकि का पहले नाम रत्नाकर था और लूटपाट करना उनका पेशा था। राहगीरों को लूटकर वह अपने परिवार का पालन-पोषण करते थे। उस समय लोग उनको रत्नाकर डाकू के नाम से पहचानते थे। एक बार निर्जन वन में भ्रमण करते हुए उनको नारद मुनि मिले। डाकू रत्नाकर ने उनको लूटने का प्रयत्न किया। तब महर्षि नारद ने उनसे पूछा कि तुम यह निम्न कोटी का काम क्यों करते हो? इस पर डाकू रत्नाकर ने जवाब दिया कि वह अपने परिवार का पेट पालने के लिए यह काम करते हैं। इसके बाद महर्षि नारद ने उनसे प्रश्न किया कि, जो अपराध तुम अपने परिवार का पेट पालने के लिए करते हो क्या उस पाप में तुम्हारा परिवार भी भागीदार बनने के लिए तैयार है। यह सुनकर रत्नाकर अचंभे में पड़ गए। इसके बाद महर्षि नारद ने डाकू रत्नाकर से कहा कि जिस परिवार के लिए तुम यह पापकर्म कर रहे हो, वह यदि इसमें भागीदार बनना नहीं चाहता है तो फिर किसके लिए यह गलत काम कर रहे हो? इतना सुनते ही डाकू रत्नाकर ने महर्षि नारद के चरण पकड़ लिए और तपस्या का मार्ग अपना लिया और वन में जाकर समाधि में लीन हो गए। जिस समय महर्षि नारद ने रत्नाकर को सत्य का ज्ञान करवाया था उस समय उन्होंने रत्नाकर को राम नाम के जप का उपदेश भी दिया था। लेकिन उच्चारण की दिक्कत के चलते वह राम-राम का जाप नहीं कर पा रहे थे तब महर्षि नारद ने राम-राम की जगह मरा-मरा का जाप करने की उनको आज्ञा दी। इस तरह डाकू रत्नाकर सच्चे दिल से मरा-मरा का जाप करते हुए महर्षि वाल्मीकि बन गए।

महृर्षि वाल्मिकी डाकू से महाज्ञानी बनें

धार्मिक कथाओं के अनुसार एक पक्षी के वध पर जो श्लोक महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था एक दिन ब्रह्ममूहूर्त में वाल्मीकि ऋषि स्नान, नित्य कर्मादि के लिए गंगा नदी को जा रहे थे। वाल्मीकि ऋषि के वस्त्र साथ में चल रहे उनके शिष्य भारद्वाज मुनि लिए हुए थे। मार्ग में उन्हें तमसा नामक नदी मिलती है। वाल्मीकि ने देखा कि इस धारा का जल शुद्ध और निर्मल था। वो भारद्वाज मुनि से बोले – इस नदी का जल इतना स्वच्छ है जैसे कि किसी निष्पाप मनुष्य का मन। आज मैं यही स्नान करूँगा।जब ऋषि धारा में प्रवेश करने के लिए उपयुक्त स्थान ढूंढ रहे रहे थे तो उन्होंने प्रणय-क्रिया में लीन क्रौंच पक्षी के जोड़े को देखा।प्रसन्न पक्षी युगल को देखकर वाल्मीकि ऋषि को भी हर्ष हुआ। तभी अचानक कहीं से एक बाण आकर नर पक्षी को लग जाता है। नर पक्षी चीत्कार करते, तड़पते हुए वृक्ष से गिर जाता है।मादा पक्षी इस शोक से व्याकुल होकर विलाप करने लगती है.ऋषि वाल्मीकि यह दृश्य देखकर हतप्रभ रह जाते हैं. तभी उस स्थान पर वह बहेलिया दौड़ते हुए आता है, जिसने पक्षी पर बाण चलाया था। इस दुखद घटना से क्षुब्ध होकर वाल्मीकि ऋषि के मुख से अनायास ही बहेलिये के लिए एक श्राप निकल जाता है। वह परमपिता ब्रह्मा जी की प्रेरणा से निकला था और यह बात स्वयं ब्रह्मा जी ने उन्हें बताई थी।

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगम: शाश्वती समा।

यत्क्रौचमिथुनादेकमवधी काममोहित्म।।

उसी के बाद ही उन्होने रामायण की रचना की थी। माना जाता है कि रामायण वैदिक जगत का सर्वप्रथम काव्य था।रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने संस्कृत भाषा में की थी और जिसमें कुल चौबीस हजार श्लोक है। कथाओं के अनुसार श्री राम के परित्याग के बाद महर्षि वाल्मीकि जी ने ही मां सीता को अपने आश्रम में पनाह दे कर उनकी रक्षा की थी और देवी सीता के दोनों पुत्रों लव और कुश को ज्ञान भी प्रदान किया था।

असत्य से सत्य की मार्ग पर चलकर महाज्ञानी बनने वाले महाऋषि वाल्मिकि का जीवन प्रेरणादायक है। जो क्रूरता से दया, सबलता दृढ़ता की ओर जाने वाला है। महृर्षि वाल्मिकि ने संस्कृत में महाकाव्य रामायण की रचना के साथ श्रीराम के संपूर्ण जीवन को चरितार्थ करने के साथ देवी सीता के आश्रयदाता बने और लव-कुछ के जन्म के गवाह और संरक्षक गुरु भी रहे। वाल्मिकि ने अपने कठोर तप और परिश्रम , ज्ञान से अपने जीवन के बुरे कर्मों को धूल दिया था और आखिर में महाऋषि के रूप में संसार में प्रसिद्ध हुए।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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