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इमारत या भवन निर्माण में सीढिय़ों के लिए भी हैं कुछ नियम

raghvendra
Published on: 6 Oct 2017 5:40 PM IST
इमारत या भवन निर्माण में सीढिय़ों के लिए भी हैं कुछ नियम
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किसी भी इमारत या भवन में यदि सीढिय़ां बनाते वक्त वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन किया जाए तो उस स्थान पर निवास करने वाले सदस्यों के लिए यह कामयाबी एवं सफलता की सीढिय़ां बन सकती हैं। बस इतना सा आप समझ लें कि सीढिय़ों से ही प्राणिक ऊर्जा ऊपरी मंजिल तक पहुँचती है । वास्तु में सीढिय़ों का विशेष महत्व है। भवन के दक्षिण-पश्चिम के कोने में सीढिय़ां बनाने से इस दिशा का भार बढ़ जाता है जो वास्तु की दृष्टि में बहुत शुभ माना जाता है। इसलिए इस दिशा में सीढिय़ों का निर्माण सर्वश्रेष्ठ माना गया है।

दक्षिण या पश्चिम दिशा में इनका निर्माण करवाने से भी कोई हानि नहीं है। अगर जगह का अभाव है तो वायव्य या आग्नेय कोण में भी निर्माण करवाया जा सकता है, परन्तु इससे बच्चों को परेशानी होने की अशंका होती है। घर का मध्य भाग यानी ब्रह्म स्थान अति संवेदनशील क्षेत्र माना गया है अत: भूलवश भी यहां सीढिय़ों का निर्माण नहीं कराएं नहीं तो वहाँ रहने वालों को विभिन्न प्रकार की मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है।

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ईशान कोण की हम बात करें तो इस दिशा को तो वास्तु में हल्का और खुला रखने की बात कही गई है अत: यहाँ सीढिय़ां बनवाना अत्यंत हानिकारक सिद्ध हो सकता है । ऐसा करने से पेशेगत दिक्कतें, धनहानि या कर्ज में डूबने जैसी समस्याएं सामने आती हैं। बच्चों का कॅरिअर बाधित होता है। शुभ फल की प्राप्ति के लिए ध्यान रहे कि सीढिय़ों की संख्या विषम होनी चाहिए जैसे - 5 ,7 ,9 ,11 ,15 , 17 आदि ।

सीढिय़ों के शुरू व अंत में दरवाजा होना वास्तु नियमों के अनुसार होता है लेकिन नीचे का दरवाजा ऊपर के दरवाजे के बराबर या थोड़ा बड़ा हो । इसके अलावा एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी का अंतर 9 इंच सबसे उपयुक्त माना गया है। सीढिय़ां इस प्रकार हों कि चढ़ते समय मुख पश्चिम अथवा दक्षिण दिशा की ओर हो और उतरते वक्त चेहरा उत्तर या पूर्व की ओर हो । सीढिय़ां उतरते-चढणते वक्त मध्य स्थान पर मुख उत्तर,दक्षिण-पूर्व (आग्नेय दिशा) की ओर शुभ माना जाता है ।

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ऐसा कभी न करें-

  • सीढिय़ों के नीचे किचिन, पूजाघर, शौचालय, स्टोररूम नहीं होना चाहिए अन्यथा ऐसा करने से वहां निवास करने वालों को तरह-तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • जहां तक हो सके गोलाकार सीढिय़ां नहीं बनवानी चाहिए। यदि आवश्यक हो तो, निर्माण इस प्रकार हो कि चढ़ते समय व्यक्ति दाहिनी तरफ मुड़ता हुआ जाए अर्थात क्लॉकवाइज़।
  • खुली सीढिय़ां वास्तुसम्मत नहीं होतीं अत: इनके ऊपर शेड अवश्य होना चाहिए।
  • टूटी-फू टी,असुविधाजनक सीढ़ी अशांति तथा गृह क्लेश उत्पन्न करती हैं।

अनीता जैन, वास्तुविद



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राघवेंद्र प्रसाद मिश्र जो पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के बाद एक छोटे से संस्थान से अपने कॅरियर की शुरुआत की और बाद में रायपुर से प्रकाशित दैनिक हरिभूमि व भाष्कर जैसे अखबारों में काम करने का मौका मिला। राघवेंद्र को रिपोर्टिंग व एडिटिंग का 10 साल का अनुभव है। इस दौरान इनकी कई स्टोरी व लेख छोटे बड़े अखबार व पोर्टलों में छपी, जिसकी काफी चर्चा भी हुई।

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