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वट सावित्री व्रत: कब व क्यों की जाती है वट की पूजा, जानिए महत्व और वट का सावित्री से कनेक्शन क्या है

Vat Savitri Vrat : हिंदू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी बरगद के पेड़ का महत्वपूर्ण स्थान है। भविष्य पुराण, स्कंदपुराण के अनुसार इसे अमरता का प्रतीक भी माना जाता है। इसी वृक्ष की छाया में लिटाकर सावित्री ने पति सत्यवान की जान बचाई थी।

Suman  Mishra | Astrologer
Published on: 9 Jun 2021 7:03 AM GMT (Updated on: 9 Jun 2021 7:28 AM GMT)
कब कब व क्यों की जाती है वट की पूजा,
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सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया) 

वट सावित्री व्रत कब व क्यों की जाती है वट की पूजा

अखंड सौभाग्य का व्रत वट सावित्री 10 जून को ज्येष्ठ माह की अमावस्या को मनाया जा रहा है। इस दिन वट सावित्री के साथ सूर्य ग्रहण, शनि जयंती भी पड़ रहा है। वट सावित्री का व्रत कुछ जगहों पर ज्येष्ठ की अमावस्या तो कुछ जगहों पर ज्येष्ठ की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस व्रत की शुरुआत सावित्री ने की थी। अपने मृत पति को वट वृक्ष के नीचे तब तक लेकर बैठी रही जब तक कि यमराज ने उनके पति सत्यवान के प्राण वापस नहीं कर दिए।

हिंदू धर्म के साथ बौद्ध और जैन धर्म में भी बरगद के पेड़ का महत्वपूर्ण स्थान है। भविष्य पुराण, स्कंदपुराण के अनुसार इसे अमरता का प्रतीक भी माना जाता है। स्कंद पुराण के अनुसार वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन माना जाता है। गुजरात, महाराष्ट्र और दक्षिण भारत की स्त्रियां ज्येष्ठ पूर्णिमा को यह व्रत करती हैं। वट वृक्ष के ब्रह्मा,विष्णु और शिव का रूप माना गया है तो दूसरी ओर पद्म पुराण में इसे भगवान विष्णु का अवतार कहते हैं। अतः सौभाग्यवती महिलाएं ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा और अमावस्या को व्रत रखकर वट वृक्ष की पूजा करती हैं, जिसे वट सावित्री व्रत कहते हैं। इस दिन महिलाएं वट की पूजा-अर्चना तथा परिक्रमा पुत्र कामना तथा सुख-शांति के लिए भी करती हैं। इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसमें सूत लपेटते हुए उसकी 108 बार परिक्रमा की जाती है।

सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)

वट सावित्री व्रत में वट की पूजा का महत्व

वट सावित्री के दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा करती हैं। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश का वास रहता है। वट वृक्ष कभी ना क्षय होने वाला पेड़ है जो सदियों तक रहता है। इस वृक्ष के नीचे सबसे अधिक ऑक्सीजन मिलता है। सावित्री ने इस वृक्ष के नीचे अपने मृत पति सत्यवान को लिटाया था और अपने सूझबूझ और धैर्य से यमराज से सुहाग की रक्षा की थी और जान बचाई थी। कहते हैं कि जब सत्यवान को यमराज ने जीवित कर दिया तब सावित्री ने बरगद के पेड का फल खाकर इस दिन जल से व्रत तोड़ा था, तभी से यह व्रत मनाया जाता है और वट की पूजा की जाती है। बरगद के पेड़ के पत्ते में भगवान शिव ने मार्कंडेय ऋषि को दर्शन दिए थे।

सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)

वट वृक्ष का सावित्री से कनेक्शन

वट सावित्री व्रत अखंड सुहाग सुहागिन महिलाएं रखती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे। कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ साधारण जीवन यापन कर रहे थे। एक दिन जंगल में लकड़ी काटते समय यमराज आए और सत्यवान के प्राण हर लिए और अपने साथ लेकर जाने लगे। इस पर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी। सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए।

उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो तो सावित्री पहले अपने अंधे माता-पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा। इसके बाद अपना खोया हुआ राजपाट मांगा और फिर पुत्रवती होने का वरदान मांगा। यमराज ने सावित्री को यह वरदान तथास्तु कह कर दे दिये। थोड़ी दूर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थीं इस पर यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है, तो सावित्री बोलीं कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती कैसे होउंगी। इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए। हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। जिस जगह ये वाकया हुआ वहां वट वृक्ष था, तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए किया जाने लगा।

वट सावित्री व्रत शुभ मुहूर्त कब है

बुधवार 09 जून दोपहर 01 बजकर 57 मिनट पर अमावस्या तिथि शुरू होगी 10 जून गुरुवार शाम 04 बजकर 22 मिनट पर समाप्त होगी। इस दिन इस बीच वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है।

अमृत काल -08:09 AM से 09:57 AM, 04:42 AM

अभिजीत मुहूर्त- 11:30 AM से 12:25 PM

विजय मुहूर्त- 02:14 PM से 03:09 PM

ब्रह्म मुहूर्त- 03:44 AM

चार ग्रहों का शुभ संयोग

सांकेतिक तस्वीर( सौ. से सोशल मीडिया)

वट सावित्री पूजा विधि (Vat Savitri Vrat puja vidhi)

वट सावित्री व्रत के दिन सूर्योदय से पहले प्रात:काल पूरे घर की सफाई करके स्नान के बाद सम्पूर्ण घर को गंगाजल का छिड़काव करने से सकारात्मकता बढ़ती है। उसके बाद एक बांस की टोकरी में वट सावित्री व्रत की पूजा की सामग्री (सत्यवान – सावित्री की तस्वीर या मूर्ति, बॉस का पंखा, लाल धागा, धूप, मिट्टी का दीपक, घी, फूल, फल, चना, रोली, कपडा, सिंदूर, जल से भरा हुआ पात्र) को व्यवस्थित कर लें। उसके बाद वट वृक्ष के आस – पास भी सफाई कर लें, फिर वट सावित्री व्रत की पूजा शुरू कर दें। पहले पूजा स्थल पर सावित्री और सत्यवान की मूर्ति स्थापित करें। अब धूप, रोली, सिंदूर व दीप जलाकर पूजा करें।

लाल रंग का कपडा सावित्री और सत्यवान को अर्पित करें और फूल समर्पित करें। बांस के पंखे से सावित्री और सत्यवान को हवा करें। पंखा करने के बाद वट वृक्ष के तने पर कच्चा धागा लपेटते हुए 5, 11, 21, 51 या 108 बार परिक्रमा करें । परिक्रमा करेने के पश्चात वट सावित्री व्रत की कथा सुने।

Suman  Mishra | Astrologer

Suman Mishra | Astrologer

एस्ट्रोलॉजी एडिटर

मैं वर्तमान में न्यूजट्रैक और अपना भारत के लिए कंटेट राइटिंग कर रही हूं। इससे पहले मैने रांची, झारखंड में प्रिंट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में रिपोर्टिंग और फीचर राइटिंग किया है और ईटीवी में 5 वर्षों का डेस्क पर काम करने का अनुभव है। मैं पत्रकारिता और ज्योतिष विज्ञान में खास रुचि रखती हूं। मेरे नाना जी पंडित ललन त्रिपाठी एक प्रकांड विद्वान थे उनके सानिध्य में मुझे कर्मकांड और ज्योतिष हस्त रेखा का ज्ञान मिला और मैने इस क्षेत्र में विशेषज्ञता के लिए पढाई कर डिग्री भी ली है Author Experience- 2007 से अब तक( 17 साल) Author Education – 1. बनस्थली विद्यापीठ और विद्यापीठ से संस्कृत ज्योतिष विज्ञान में डिग्री 2. रांची विश्वविद्यालय से पत्राकरिता में जर्नलिज्म एंड मास कक्मयूनिकेश 3. विनोबा भावे विश्व विदयालय से राजनीतिक विज्ञान में स्नातक की डिग्री

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